Court rejected

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने बिल्डिंग के कब्जे से जुडे मामले को एडीजे कोर्ट की ओर से तय करने पर नाराजगी जताई है। अदालत ने इस संबंध में आदेश देने वाले एडीजे क्रम-8 से पूछा है कि जब कब्जा तय करने का अधिकार एसडीएम के पास था तो उन्होंने यह आदेश कैसे दिया। इसके साथ ही अदालत ने माणक चौक थानाधिकारी से भी पूछा है कि उन्होंने इस संबंध में सीआरपीसी की धारा 145 के तहत एसडीएम के समक्ष प्रार्थना पत्र पेश क्यों नहीं किया गया। न्यायाधीश केएस अहलुवालिया की एकलपीठ ने यह आदेश पंकज नाहर की ओर से दायर आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

याचिका में अधिवक्ता दिनेश पारीक ने बताया कि याचिकाकर्ता की जौहरी बाजार में संपत्ति है। जिसे वर्ष 2016 में उसने पार्टनरशिप में काराबार के लिए पन्द्रह हजार रुपए मासिक में नकुल कोठारी को किराए पर दी। दोनों के बीच विवाद होने पर जब याचिकाकर्ता ने अपनी चाबी से परिसर खोलने की कोशिश की तो कोठारी ने 20 नवंबर 2017 को याचिकाकर्ता के खिलाफ माणकचौक थाना पुलिस में चोरी का मामला दर्ज करा दिया। वहीं याचिकाकर्ता और कोठारी की ओर से निचली अदालत में प्रार्थना पत्र पेश कर पुलिस के पास जब्त चाबी दिलाने की गुहार की।

जिसे निचली अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह अदालत कब्जा का विवाद तय नहीं कर सकती। इस आदेश के खिलाफ दोनों की ओर से एडीजे क्रम-8 अदालत में प्रार्थना पत्र पेश किया। एडीजे क्रम-8 अदालत ने याचिकाकर्ता का प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया और कोठारी को चाबी का कब्जा सौंप दिया। इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि फौजदारी अदालत को संपत्ति का कब्जा तय करने का अधिकार नहीं है। इस संबंध में सिविल कोर्ट में मामला लंबित रहने के दौरान सीआरपीसी की धारा 145 के तहत एसडीएम को अंतरिम रूप से कब्जा तय करने का अधिकार होता है। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने एडीजे क्रम-8 अदालत और माणकचौक थानाधिकारी से अपना स्पष्टीकरण देने को कहा है।

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