delhi. केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली ने आज संसद के पटल पर आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 प्रस्तुत किया। पिछले वर्ष के दौरान किए गए अनेक प्रमुख सुधारों से इस वित्त वर्ष में जीडीपी बढ़कर 6.75 प्रतिशत और 2018-19 में 7.0 से 7.5 प्रतिशत होगी, जिसके कारण भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में पुन:स्थापित होगी। इसका उल्लेख आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में किया गया है जिसे माननीय वित्त और कारपोरेट मामले मंत्री, अरुण जेटली ने आज संसद में प्रस्तुत किया था। सर्वेक्षण में यह उल्लेख किया गया है कि 2017-18 में किए गए सुधारों को 2018-19 में और अधिक सुदृढ़ किया जा सकता है।
सर्वेक्षण इस बात को रेखांकित करता है कि 1 जुलाई 2017 को शुरू किए गए युगांतकारी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सुधार के कारण, न्यू इंडियन बैंकरप्सी कोड के तहत आर्थिक दबाव झेल रही प्रमुख कंपनियों को समाधान के लिए भेजकर,लंबे वक्त से चली आ रही ट्विन बैलेंसशीट (टीबीएस) का समाधान कर, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम बैंकों के सुदृढ़ीकरण हेतु एक प्रमुख पुन:पूंजीकरण पैकेज को लागू कर, एफबीआई का और अधिक उदारीकरण कर तथा ग्लोबल रिकवरी से निर्यात को बढ़ाकर वर्ष की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था में तेजी आने लगी और इस वर्ष जीडीपी 6.75 प्रतिशत दर्ज की जा सकती है। सर्वेक्षण में यह दशार्या गया है कि तिमाही अनुमानों के अनुसार, औद्योगिक क्षेत्र की अगुवाई में 2017-18 के दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर में गिरावट की प्रवृत्ति में वापसी सुधार आने लगा। स्थाई प्राथमिक मूल्यों पर ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) में 2016-17 में 6.6 प्रतिशत की तुलना में 2017-18 में 6.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने की उम्मीद है। इसी प्रकार से, 2017-18 में कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों में क्रमश: 2.1 प्रतिशत, 4.4 प्रतिशत और 8.3 प्रतिशत दर की वृद्धि होने की उम्मीद है। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि दो वर्षों तक नकारात्मक स्तर पर रहने के बावजूद, 2016-17 के दौरान निर्यातों में वृद्धि सकारात्मक स्तर पर आ गई थी और 2017-18 में इसमें तेजी से वृद्धि की उम्मीद जताई गई थी। तथापि, आयातों में कुछ प्रत्याशित वृद्धि के बावजूद, वस्तु और सेवाओं के शुद्ध निर्यातों में 2017-18 में गिरावट आने की संभावना है। इसी प्रकार से, शानदार आर्थिक वृद्धि के बावजूद, जीडीपी के अनुपात के रूप में बचत और निवेश में सामान्य रूप से गिरावट आई। निवेश दर में बड़ी गिरावट 2013-14 में आई, हालांकि 2015-16 में भी गिरावट आई थी। इसके अंतर्गत हाउसहोल्ड क्षेत्र में गिरावट आई, जबकि निजी कारपोरेट क्षेत्र में वृद्धि हुई थी।
सर्वेक्षण में यह वर्णन किया गया है कि भारत को विश्व में सबसे अच्छा निष्पादन करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक माना जा सकता है, क्योंकि पिछले तीन वर्षों के दौरान औसत विकास दर वैश्विक विकास दर की तुलना में लगभग 4 प्रतिशत अधिक है और उभरते बाजार एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में लगभग 3 प्रतिशत अधिक है। सर्वेक्षण यह दर्शाता है कि 2014-15 से 2017-18 की अवधि के लिए जीडीपी विकास दर औसतन 7.3 प्रतिशत रही है, जो कि विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सर्वाधिक है। इस विकास दर को कम महंगाई दर,बेहतर करंट अकाउंट बैलेंस तथा जीडीपी अनुपात की तुलना में वित्तीय घाटे में उल्लेखनीय गिरावट के चलते हासिल किया गया है जो कि एक उल्लेखनीय वृद्धि है। हालांकि कुछ देशों में बढ़ते संरक्षणवाद की प्रवृत्तियों के बारे में चिंता जताई गई थी, लेकिन यह देखा जाना है कि स्थिति किस प्रकार रहती है। आने वाले वर्ष में कुछ कारको, जैसे कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना के कारण जीडीपी विकास दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। तथापि 2018 में विश्व विकास दर में मामूली सुधार आने की संभावना के साथ जीएसटी में बढ़ते स्थायित्व, निवेश स्तरों में संभावित रिकवरी तथा अन्य बातों के साथ चालू ढांचागत सुधारों से उच्च विकास दर प्राप्त किए जाने की संभावना है। समग्र रूप से, देश की अर्थव्यवस्था के निष्पादन में 2018-19 में सुधार आना चाहिए।
सर्वेक्षण में यह उजागर किया गया है कि उभरते मैक्रो इकोनॉमिक चिंताओं के संबंध में आने वाले वर्ष में नीतिगत निगरानी आवश्यक होगी, विशेष रूप से जब अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें ऊंचे स्तरों पर बनी रहती हैं या उच्च स्तरों पर स्टॉक मूल्यों में तेजी से गिरावट आती है, जिसके कारण पूंजी प्रभाव में एक अचानक ‘सुस्ती’ आ सकती है। परिणामस्वरूप, आगामी वर्ष के लिए एजेंडा परिपूर्ण है : जीएसटी में स्थायित्व लाना, टीबीएस कार्यों को पूरा करना, एयर इंडिया का निजीकरण तथा मैक्रो इकोनॉमिक स्थिरता के खतरों का सामाधान करना। टीबीएस कार्यों, जो कि लंबे समय से चली आ रही ‘एग्जिट’ समस्या से निजात पाने के लिए उल्लेखनीय है, में घाटा झेल रहे बैंकों के समाधान के लिए और निजी क्षेत्र की बढ़ती प्रतिभागिता के लिए आवश्यक सुधारों की आवश्यकता है। जीएसटी परिषद ने अन्य अनेक नीति सुधारों का अनुसारण करने हेतु कोऑपरेटिव फैडरेलिज्म का एक मॉडल ‘टेक्नोलॉजी’ प्रदान किया है। मध्यावधि में नीति में तीन क्षेत्रों पर इसे ध्यान दिया जाएगा: रोजगार, युवाओं और बढ़ते कार्यबल, विशेष रूप से महिलाओं के लिए अच्छी नौकरियां ढूढंना, शिक्षा : एक शिक्षित एवं स्वस्थ कार्यबल का सृजन, कृषि : अनुकूलन का सुदृढ़ीकरण करते हुए फार्म उत्पादकता को बढ़ाना। सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि भारत को वास्तविक रूप से दो स्थाई मुद्दों- निजी निवेश और निर्यात के आधार पर त्वरित आर्थिक विकास के लिए जलवायु में सुधार लाने पर निरंतर प्रयास करना चाहिए।