जयपुर, 08 अगस्त। राज्य सरकार मत्स्य विकास के कार्य के साथ-साथ मछली के रूप में प्रोटीन युक्त आहार तथा कमजोर ग्रामीण वर्ग को रोजगार भी उपलब्ध कराने के लिये प्रयासरत है। मत्स्य विभाग द्वारा संसाधनों का विकास एवं सरंक्षण तथा प्रोटीन युक्त आहार उत्पादन, उत्तम किस्म के मत्स्य बीज की उपलब्धता, रोजगार के अवसर, जलकृषि के विविधिकरण को प्रोत्साहन देकर राज्य के लिए राजस्व अर्जित करने के लिये विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही है।
जल संसाधनों के आधार पर राजस्थान देश में ग्यारहवें स्थान पर है। राज्य में लगभग 4.23 लाख हैक्टर जलक्षेत्र उपलब्ध है। इस जलक्षेत्र में 3.29 लाख हैक्टर बडे़ व माध्यम जलाशयों के रूप में 0.94 लाख हैक्टर छोटे जलाशयों एवं तालाबों के रूप मेें उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त 0.87 लाख हैक्टर जलक्षेत्र नदियों एवं नहराें के रूप में उपलब्ध है। केन्द्रीय मात्सि्यकी शिक्षण संस्थान, मुंबई द्वारा किये गये अध्ययन के अनुसार राज्य में 80 हजार मैट्रिक टन से अधिक मत्स्य उत्पादन की क्षमता है।
राज्य में लगभग 60 प्रतिशत भाग उपलब्ध प्रभावी जलक्षेत्र का मत्स्य विकास की विभिन्न गातिविधियों में उपयोग किया जा रहा है तथा वर्ष 2018-19 में मत्स्य उत्पादन 55848.99 मैट्रिक टन तक पहुंच गया है।
राज्य में छोटे जलाशयों व तालाबों के रूप में लगभग 0.94 लाख हैक्टर जलक्षेत्र उपलब्ध है वर्ष 2022 तक इन जलाशयों से मत्स्य पालन कार्य किये जाने के लिए विभाग प्रयासरत है। नहरी क्षेत्र में स्थित र्डिग्गियों व जल संग्रहण क्षेत्रों में भी मत्स्य पालन का कार्य प्रारम्भ कर स्थानीय कृषकों को मत्स्य पालन से जोड़कर कृषि के अतिरिक्त मत्स्य पालन के माध्यम से आय हेतु नये स्त्रोत का विकास किया जाएगा है, ताकि मत्स्य कृषकों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।
मत्स्य विभाग द्वारा मत्स्य पालन में रूचि रखने वाले व्यक्तियों को चयनित कर मत्स्य पालन की आधुनिक विकसित तकनीकी जानकारी देकर प्रशिक्षित मछुआरा वर्ग तैयार किया जायेगा। राज्य में ऎसे जलाशय जिन में 6 माह या अधिक समय तक पानी ठहरात है उनमें स्थानीय व्यक्तियों को जलाशय आवंटन कर मत्स्य पालन करवाया जायेगा । जिन जलाशयों में 2-4 माह तक पानी रहता है, ऎसे जलाशयों में मत्स्य कृषकों के द्वारा मत्स्य बीज पालन का कार्य करवाया जायेगा।
इंदिरा गांधी नहरी क्षेत्र में निर्मित डिग्गियों में स्थानीय व्यक्तियों को मत्स्य पालन का प्रशिक्षण देकर मत्स्य पालन एवं मत्स्य बीज पालन का कार्य प्रारम्भ करवाया जायेगा, ताकि डिग्गियों में उपलब्ध पानी का सिंचाई के साथ साथ मत्स्य पालन में भी उपयोग हो सके।
मत्स्य बीज उत्पादन में आत्म निर्भर बनाने के लिए राजकीय मत्स्य हैचरियों का जीर्णेद्वार कार्य करवाया जा रहा है एवं राज्य में मत्स्य अभिजनक बैंक का कार्र्य निर्माणाधीन है। इसके अतिरिक्त मौसमी जलाशायों में मत्स्य बीज पालन कर फिंगरलिंग स्तर तक विकसित कर जलाशयों में संग्राहित किया जायेगा, जिससे मत्स्य बीज की उत्तरजीविता बढ़ने से मत्स्य उत्पादन बढ़ेगा।
राज्य में वर्ष 2022 तक मत्स्य पालन से शेष रहे जलाशयों एवं नवनिर्मित जलाशयों,पोंड, फार्म, र्डिग्गियों में मत्स्य पालन शुरू कर लगभग 1.00 लाख हैक्ट्रर नये क्षेत्र को मत्स्य पालन हेतु उपयोग मेे लिया जायेगा। इसके अतिरिक्त मत्स्य पालन की आधुनिक विधाओं, आर.ए.एस., सघन कल्चर कार्यो को बढ़ावा दिया जायेगा साथ ही लगभग 50,000 परिवारों को मत्स्य पालन से जोड़ा जायेगा।
मत्स्य विभाग आदिवासी मछुआरों के सामाजिक आर्थिक उत्थान हेतु आदिवासी क्षेत्र में स्थित पंचायत राज के जलाशयों को आदिवासी मत्स्य सहकारी समितियों को आरक्षित राशि पर जलाशय आवंटन करने के लिये मत्स्य नियमों में संशोधन की प्रक्रिया चला रहे है। विभाग द्वारा निजी क्षेत्र में मत्स्य बीज उत्पादन हैचरी स्थापित करने के लिये अनुदान देकर स्थापित करने के प्रयास किये जायेंगे। मोती पालन को बढ़ावा देने के लिए विभागीय स्तर पर मत्स्य फार्म चन्दलाई पर प्रदर्शन इकाई स्थापित की जा रही है।
वर्तमान में रंगीन, सजावटी मछलियां दूसरे राज्यों से आयातित की जा रही हैं। राज्य में रंगीन मछली हैचरी का कार्य टोंक जिले के बीसलपुर बांध में निर्माणाधीन है। उक्त हैचरी का निर्माण होने पर राज्य में रंगीन मछली व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा एवं इसके माध्यम से मत्स्य कृषक, बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा।