– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। तमाशा बन गई पुलिस। राज्य सरकार भी। एक गुण्डे ने नचा कर रख दिया। मंत्रियों के चेहरे पर न कोई शिकन आई और न ही कोई शर्म। खुद की पीठ खुद ही थपथपा रहे हैं। बड़े-बड़े पद पर बैठे पुलिस अधिकारी आनंदपाल के आगे लाचार दिख रहे हैं। छह महीने पहले पहरे में लगे कमांडो व पुलिसकर्मियों से सांठगांठ करके फरार हुए कुख्यात बदमाश आनन्द पाल सिंह व उसके गुर्गे अपने खूनी खेल के जरिए फिर पूरे सूबे में सुर्खियों में है। 21 मार्च को नागौर जिले के सुखवासी गांव में नाकेबंदी में घिरने पर इस गैंगस्टर व उसके गुर्गों ने पुलिसकर्मियों पर ए.के. 47 से गोलियां दागी, जिसमें एक कांस्टेबल खुमाराम शहीद हो गया और कुछ पुलिसकर्मी घायल हो गए। चारों तरफ से घिरे होने के बावजूद हमलावर बदमाश पकड़े नहीं जा सके। आज तक राजस्थान पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं। सरेआम दिनदहाडे अत्याधुनिक हथियारों से पुलिसकर्मियों पर फायरिंग की इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जिसमें सबसे बड़ा सवाल तो जनमानस के साथ पुलिस और प्रशासन में बैठे लोगों में कौंधता है कि सरकार और पुलिस के पास इतने संसाधन होने के बावजूद एक कुख्यात बदमाश और उसके गुर्गे एक राजनेता परिवार के सदस्य से लूटी गई लग्जरी गाड़ी में खुलेआम कैसे घूम सकते हैं। लोगों का मानना है कि या तो आनन्दपाल सिंह और उसका गिरोह राजस्थान पुलिस बेडे से भी तेज है या इस गिरोह को किसी तरह का राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, जो कड़े पुलिस पहरे में से भी पुलिसकर्मियों के हथियार लूटकर फिल्मी अंदाज में फरार हो जाता है। कांग्रेस तो राजनीतिक संरक्षण का आरोप लगाती रही है, वहीं भाजपा के सांसद कर्नल सोनाराम ने भी यह आरोप लगाकर राज्य सरकार और राजस्थान पुलिस को कठघरे में खड़ा कर दिया है। डीडवाना में पेशी के दौरान फरारी के छह महीने बाद नाकेबंदी में पुलिस से आमना-सामना होता है तो पुलिस पर फायरिंग करके फिर गायब हो जाता है। वो भी ऐसे हालात में जब पूरे सूबे में एक श्रेणी की नाकेबंदी और पुलिसकर्मियों पर फायरिंग के बाद सैकड़ों जवान पैदल ही भागे बदमाशों के पीछे लगे हो। चारों तरफ से घिरे होने के बावजूद बदमाश व उसके साथी ना जाने कैसे गायब हो जाते हैं? फरारी में राजस्थान में रहकर आपराधिक वारदातें करते रहे और रंगदारी वसूलते रहे, लेकिन पुलिस को भनक तक नहीं लग पाती है। ऐसे कई सवाल है, जो राजस्थान की जनता में तो है ही, साथ ही इन बदमाशों से लोहा लेते हुए शहीद हुए कांस्टेबल खुमाराम के पुलिस बेडे के जवानों और अफसरों में भी है। एक आला अफसर ने नाम नहीं छपने की शर्त पर बताया कि सुखवासी गांव में पुलिस पर फायरिंग के बाद चार बदमाश पैदल ही रेतले धोरों में भागे। ग्रामीणों ने भी वहां लोहा लिया। पूरे जिले में नाकेबंदी थी और आला अफसरों को सूचना भी थी कि बदमाशों से मुठभेड हो गई और फायरिंग करके भागे हैं। जवान व ग्रामीण इनके पीछे थे, लेकिन फिर भी वे गायब हो गए। यह बात समझ से परे हैं।
यहीं नहीं फायरिंग के बाद बदमाश अपने साथियों को फोन पर अपनी लोकेशन देते रहे, लेकिन पुलिस ने उस क्षेत्र की मोबाइल लोकेशन और मोबाइल से हो रही बातचीत के आधार पर उन्हें पकडऩे की जहमत नहीं उठाई। यह भी बात सामने आई है कि जब बदमाशों कार से पीछा कर रहे पुलिस वाहन पर फायरिंग की तो जवानों ने अपने अफसरों को फोन करके जवाबी फायरिंग की अनुमति मांगी। बताया जाता है कि अफसरों ने उन्हें जवाबी फायरिंग की अनुमति नहीं दी। नतीजा राजस्थान पुलिस का एक जवान शहीद हो गया। पीछा कर रही पुलिस टीम सिर्फ पिस्टल और एसएलआर से लैस थी। जबकि बदमाश एके 47 जैसे हथियारों से लैस थे, जो ताबडतोड गोलियां बरसा रहे थे। पुलिस पर फायरिंग के बाद भाग रहे बदमाशों ने सहायता लेने के लिए अपने साथियों को किए। हालांकि तमाम कयासों व आरोप-प्रत्यारोप के बावजूद यह भी सच्चाई है कि नागौर पुलिस ने आनन्दपाल सिंह व उसके गुर्गों को ना केवल रोका, बल्कि उन्हें पकडऩे की भरसक कोशिश भी की है। यह अलग बात है कि नाकेबंदी के बावजूद बदमाश फरार हो गए।
पुलिस ने फरारी क्षेत्र की लोकेशन से किए गए मोबाइल फोनों की पडताल की तो यह पता चला कि उन्होंने डेढ़ सौ से ज्यादा फोन किए। पुलिस ने कई लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की और बदमाशों की सहायता करने पर कुछ को गिरफ्तार भी किया। पूछताछ में यह सामने आया कि छह महीने पहले डीडवाना में पेशी से फरार होने के बाद आनन्दपाल सिंह व उसके साथी कहीं राज्य और देश से बाहर नहीं गए, बल्कि राजस्थान में ही रहकर वसूली करते रहे है और अपने विरोधी गैंगस्टर पर हमले को अंजाम देने के षडयंत्र में लगे रहे। फरारी के दौरान जोधपुर के जसवंत हॉस्टल में कई बार उसके ठहरने की बात भी सामने आई है। इसी तरह जोधपुर, नागौर, बीकानेर और शेखावाटी के अन्य क्षेत्रों में वह आता-जाता रहा और होटलोंं तक में भी ठहरता रहा। इन छह महीनों की फरारी के दौरान आनन्दपाल सिंह के बारे में यह कयास लगते रहे कि वह राजस्थान से भाग गया है और उत्तरप्रदेश, बिहार में शरण लिए हुए। वहीं यह भी चर्चा रही कि वह दुबई, नेपाल और बैंकाक चला गया। वहां से गिरोह को संचालित कर रहा है। नागौर में फायरिंग के बाद यह तो साफ हो गया कि फरारी के बाद वह और उसके गुर्गे राजस्थान में छिपे रहे, लेकिन राजस्थान पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाई और ना ही उसके संपर्कों को पकड़ पाई। जबकि आनन्दपाल सिंह जब से फरार हुआ है, तब राज्य सरकार और राजस्थान पुलिस को खासी शर्मिंंदगी उठानी पडी है। गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया तो आनन्दपाल सिंह की गिरफ्तारी के संबंध में पूछे जाने वाले मीडिया के सवालों पर अपनी खीझ उतारते हुए कह चुके हैं कि मैं भगवान नहीं हूं या मेरे पास जादू की छड़ी नहीं है, जो घूमाते ही उसे पकड़ लूं। एक बार तो कटारिया ने यह बयान देकर चौंका दिया था कि मैं बयान दे-देकर खुद ही आनन्दपाल सिंह हो गया हूं। हालांकि वे यह भी दावा करते हैं कि आनन्दपाल सिंह ज्यादा दिन छिप नहीं सकता। किसी भी सूरत में पकड़ा जाएगा। राजस्थान पुलिस पूरी मुस्तैदी से उसे पकडऩे में लगी है। उधर, बदमाशों की फायरिंग में जवान खुमाराम की शहादत के बाद पूरी पुलिस फोर्स में जबरदस्त गुस्सा है। राजस्थान पुलिस के अफसरों और जवानों ने इस बार होली नहीं खेलकर इस जवान की शहादत को तो नमन किया है, साथ ही अपने गुस्से को भी इजहार किया है। अगर जल्द ही हमलावर बदमाश पकड़े नहीं जाते हैं तो फोर्स का मनोबल कमजोर होगा, बल्कि आमजन में भी इसका गलत मैसेज पहुंचेगा।
सर्च ऑपरेशन पर उठे सवाल
21 मार्च को नागौर में पुलिस पर फायरिंग के बाद यह तो तय हो गया था कि हमलावर आनन्दपाल सिंह व उसके साथियों ने किया था और वे पैदल ही गांवों में भाग निकले। इनमें से दो घायल भी थे। नागौर पुलिस का दावा है कि हमले के बाद करीब ग्यारह सौ जवान और अफसरों को सर्च ऑपरेशन में लगाया, लेकिन बदमाश पकडऩा तो दूर वे एक छोटे से जिले के एक हिस्से में मौजूद होने के बावजूद कैसे गायब हो गए। कहीं उन्हें कोई शरण तो नहीं दे रखा है या उनके साथी सर्च ऑपरेशन के दौरान ही वहां से निकाल ले गए। ए श्रेणी की नाकेबंदी के बावजूद जयपुर से नागौर तक शातिर बदमाश लग्जरी गाड़ी में पहुंच जाते हैं और फिर पुलिस टीम पर ही हमला करके बच निकलते हैं, लेकिन पुलिस कुछ नहीं कर पाती है। सर्च ऑपरेशन पर सवाल उठ रहे हैं। नागौर के सुखवासी गांव में पुलिस टीम पर हमला करने के आधे घंटे बाद ही नागौर पुलिस ने सर्च ऑपरेशन शुरु करने का दावा तो कर रही है, लेकिन पैदल भागे बदमाशों को पकड़ नहीं पाई। राजस्थान सरकार और राजस्थान पुलिस के लिए खुली चुनौती बने आनन्दपाल को पकडऩे के लिए क्यों नहीं दूसरे जिलों की पुलिस फोर्स और अफसरों को क्यों नहीं सर्च ऑपरेशन में नहीं लगाया। नागौर कोई बड़ा जिला नहीं है और ना ही वह क्षेत्र, जहां पुलिस की बदमाशों से मुठेभेड हुई थी। नागौर के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि अगर गांव-ढाणी में सघन तलाशी अभियान चलाया होता तो आनन्दपाल व उसके साथी पकड़े जा सकते थे। पुलिस पर हमले के एक घंटे बाद पुलिस ने गांव ढाणी की तरफ रुख किया, लेकिन तब तक बदमाश दूसरे गांव-ढाणी में पहुंचते रहे। गांवों के रास्तों में भी नाकेबंदी ठीक नहीं थी। जिस तरह पेरिस हमले के बाद एक फरार आतंकी सालाह अब्दे सलाम को ढूंढने के लिए वहां की पुलिस ने घर-घर तलाशी अभियान चलाकर उसे पकड़ लिया था, वैसा ही सघन तलाशी अभियान चलाया जाना चाहिए इस शातिर बदमाश को पकडऩे के लिए, जिसने ना केवल पुलिस पर हमला करके, बल्कि एक सिपाही की जान लेकर प्रदेश की कानून व्यवस्था को खुलेआम चुनौती दे रखी है। पुलिस सूत्रों का यह भी कहना है कि छह महीने पहले डीडवाना में फरारी के बाद जैसे आनन्दपाल शेखावाटी और मेवाड क्षेत्र में ही रह रहा था, वैसे ही अभी भी वह नागौर में ही है। अभी भी उसे कहीं न कहीं शरण मिली हुई है। अगर पुलिस मुस्तैदी से सर्च ऑपरेशन चालू रखे तो वह पकड़ा जा सकता है।
आनन्दपाल था या दूसरा कोई गैंगस्टर
नागौर के सुखवासी गांव में पुलिस टीम पर फायरिंग करने वाले बदमाश किस गिरोह से थे, अभी तक यह पुलिस जांच में सामने नहीं आया है। फायरिंग के दिन 21 मार्च को तो जेल में बंद कुख्यात गैंगस्टर राजू ठेहठ से जुड़े बदमाशों पर शक जाहिर किया, लेकिन दूसरे दिन ही पुलिस ने आनन्दपाल सिंह और तीन साथियों के हमले में शामिल होने संबंधी संदेह जताया। पुलिस का मानना है कि एके 47 जैसे हथियार आनन्दपाल सिंह व उसके गिरोह के पास है। जो गोलियां दागी गई है वह छह महीने पहले फरारी के दौरान कमांडों से छीने गए एके47 की बताई जाती है।
जिस लग्जरी फॉच्र्यूनर गाडी में बदमाश सवार थे, उसमें आधा दर्जन मोबाइल, सिमकार्ड, कपड़े और हथियार, किताब व दूसरे साक्ष्य मिले हैं, जो आनन्दपाल सिंह व उसके गुर्गों के पास ही होने का शक जाहिर करते हैं। फायरिंग में घायल हुए पुलिसकर्मियों व वहां मौजूद गांववासियों ने भी बयान दिया है कि हमला करके भाग रहे बदमाशों में से एक आनन्दपाल सिंह लगता था। उसने ही एके 47 ले रखी थी और वह पुलिस पर फायरिंग कर रहा था। हालांकि इस घटना के इतने दिनों के बाद भी राजस्थान पुलिस जांच में यह खुलासा नहीं कर पा रही है कि हमलावर बदमाश कौन थे। यहीं नहीं हमलावर बदमाश जिस लग्जरी कार में थे, वह नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के चाचा आशाराम डूडी की है। करीब सवा महीने पहले यह गाड़ी बीकानेर में लूट ली गई थी। इस लूट को लेकर थाने में मामला भी दर्ज है। ताज्जुब की बात है कि बीकानेर संभाग में यह लूटी लग्जरी गाड़ी घूमती रही, लेकिन पुलिस ना तो गाड़ी और लूटने वाले बदमाशों को पकड़ पाई। जबकि फॉच्र्यूनर जैसी लग्जरी गाड़ी पूरे क्षेत्र में कुछ ही लोगों के पास है। बायपास और सड़कों पर दौड़ती ऐसी गाड़ी को रोककर उनके दस्तावेज जांच करवाई जाती तो बदमाश पहले भी पकड़े जा सकते थे।
राजनीतिक संरक्षण के आरोप
आनन्दपाल सिंह और उसके गिरोह को राजनीतिक संरक्षण दिए जाने के आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे है। अब तक तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ही राजनीतिक संरक्षण के आरोप लगाते रहे हैं। अब तो भाजपा के बाडमेर सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी ने भी आनन्दपाल को राजनीतिक संरक्षण का बयान देकर सरकार और पुलिस को कठघरे में खडा कर दिया है। अजमेर में एक कार्यक्रम के दौरान सांसद सोनाराम ने तल्ख अंदाज में कहा कि कुख्यात बदमाश आनन्दपाल को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है। इसमें जो भी लिप्त है, उन लोगों की जांच होनी चाहिए। चाहे वह मंत्री हो या अधिकारी। आनन्दपाल की फरारी के बाद से ही सरकार और पार्टी की छवि खराब हो रही है। सांसद कर्नल सोनाराम के इस बयान के बाद पार्टी व सरकार सांसत में है। अब तक तो कांग्रेस ही यह आरोप लगाती रही है, अब पार्टी नेता भी इस तरह के आरोप लगाने लगे हैं। वहीं इससे पहले राजस्थान विधानसभा में भी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी, निर्दलीय विधायक हनुमान बेनी वाल आनन्दपाल सिंह गिरोह को राजनीतिक संरक्षण का आरोप लगाते हुए भाजपा सरकार के दो केबिनेट मंत्रियों को कठघरे में खड़े कर चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, रामेेश्वर डूडी व हनुमान बेनीवाल तक तो यहां तक कह चुके हैं कि डीडवाना में कोर्ट पेशी के बाद अजमेर जेल ले जाते वक्त रास्ते में आनन्दपाल सिंह व उसके साथियों की फरारी में बड़ा षड्यंत्र रचा गया है। इनका यह भी कहना था कि राज्य के एक केबिनेट मंत्री का बीकानेर जेल में जाकर आनन्दपाल सिंह से मिलना, इस मुलाकात के अगले ही महीने जेल में ही विरोधी गुट राजू ठेहट गैंग से आनन्दपाल सिंह गिरोह से गैंगवार होना और फिर कुछ दिनों बाद पेशी के दौरान फरार होना एक षडयंत्र का हिस्सा लगता है। आनन्दपाल सिंह व उसके साथियों का पुलिस कस्टडी से फ रार होना प्रदेश की कानून व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। नागौर में पुलिस फायरिंग के बाद फिर से आनन्दपाल सिंह के गायब होने के बाद की घटना को लेकर भी कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष राज्य सरकार पर यह आरोप लगाने से नहीं चूक रहे है कि आनन्दपाल सिंह को पुलिस बचाने का प्रयास कर रही है और उसके संरक्षण में ही बार-बार फरार हो जाता है। आनन्दपाल सिंह की गिरफ्तारी को लेकर शेखावाटी क्षेत्रों में काफी धरने-प्रदर्शन भी हो चुके हैं।
सरकार की आफत बना आनन्दपाल
जब से आनन्दपाल फरार हुआ, तभी से राज्य सरकार और राजस्थान पुलिस के लिए आफत बना हुआ है। हाल ही नागौर में इस गिरोह की फायरिंग में एक जवान शहीद हुआ है, तब से विधानसभा के अंदर और बाहर सरकार को खासी शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है। विपक्षी दल सरकार पर कानून व्यवस्था में फेल होने और आनन्दपाल सिंह को राजनीतिक संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए आए दिन सरकार को घेरे हुए हैं। मीडिया में भी यह मसला खूब उछल रहा है। इस मामले में सरकार और राजस्थान पुलिस को जवाब देते नहीं बना पा रहा है। अपराध से प्रभावित जिलों में बदमाशों से लोहा लेने वाली पुलिस टीमों के पास अत्याधुनिक हथियार नहीं होने के आरोप लग रहे हैं। विधानसभा में तो नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी और वरिष्ठ कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न सिंह ने हथियारों का मामला उठाते हुए कहा कि आनन्दपाल गिरोह का पीछा करने वाले नागौर पुलिस टीम के पास बदमाशों का मुकाबला करने के लिए अच्छे हथियार और संसाधन तक नहीं थे। पुलिस के लिए आने वाले वाहन मुख्यालय में रख लिए जाते हैं। खटारा वाहनों को जिलों में भेज देते हैं। अगर नागौर फायरिंग के दिन पुलिस टीम के पास बेहतर हथियार व संसाधन होते तो यह गिरोह उसी दिन खत्म हो जाता। खुद गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया और राजस्थान पुलिस के आला अफसर स्वीकार कर चुके हैं कि फायरिंग करने वाले बदमाशों का पीछा कर रही नागौर पुलिस टीम के पास अत्याधुनिक हथियार नहीं थे। फरारी मामले की जांच रिपोर्ट को लेकर भी विपक्ष कई बार सरकार को घेर चुका है, हालांकि 31 मार्च को यह रिपोर्ट सरकार को पेश कर दी गई है। सरकार रिपोर्ट का अध्ययन करवा रही है और फिलहाल कुछ कहने से बच रही है।
कई हत्याकाण्डों को दिया अंजाम
आनंदपाल पर हत्या, लूट, डकैती, रंगदारी जैसे 25 आपराधिक मामले नागौर, बीकानेर समेत दूसरे जिलों के थानों में दर्ज है। करीब साढ़े तीन साल पहले उसे एसओजी और एटीएस ने जयपुर के फागी क्षेत्र में मोहब्बतपुरा गांव में एक फार्म हाउस से गिरफ्तार किया था। तब उसके पास से एके 47 सरीखे खतरनाक हथियार, ऑटोमैटिक मशीन गन, बम व बुलेटप्रफू जैकेट मिली थी। 2006 में डीडवाना में जीवनराम गोदारा की गोलियों से भूनकर हत्या करने के बाद अपराध जगत में खासा दबदबा हो गया था। सीकर के गोपाल फ ोगावट हत्याकांड को भी आनंद पाल ने ही अंजाम दिया। 29 जून, 2011 को आनंद पाल ने सुजानगढ़ में भोजलाई चौराहे पर गोलियां चलाकर तीन लोगों को घायल कर दिया। उसी दिन गनौड़ा में एक शराब की दुकान पर सेल्समैन के भाई की हत्या कर दी थी। आनन्दपाल पर एक लाख का ईनाम घोषित है। बीकानेर जेल में राजू ठेहट गैंग के दो सदस्यों ने आनन्दपाल पर गोलियां चलाई थी तो बलवीर बानूडा ने आगे उसे बचाया था। आनन्दपाल ने दोनों को जेल में ही मार डाला था। हालांकि उसका खास साथी बानूडा भी गोली लगने से मारा गया। आनन्दपाल सिंह व उसका गिरोह शेखावाटी के अलावा अब दूसरे जिलों में भी धनाढ्य सेठों से फिरौती और खनन माफिया व मालिकों से रंगदारी वसूलने के कृत्यों को भी अंजाम देने लगा है। सेठों व व्यापारियों के अपहरण, डकैती, जमीनों पर कब्जे करना और हटाना इनके लिए आम बात होने लगी है। सीकर के विनोद सर्राफा अपहरण काण्ड को इस गिरोह से ही जुड़ी लेडी डॉन अनुराधा ने अंजाम दिया था। फिलहाल वह जेल में है। इस गिरोह के तार उत्तरप्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश के आपराधिक गिरोह से भी जुड़े हुए। मुम्बई से संचालित क्रिकेट सटोरियों के भी इनसे संबंध है और शेखावाटी क्षेत्र में क्रिकेट समेत अन्य सट्टेबाजी की गतिविधियों में भी ये लिप्त हैं।
सांठगांठ करके फिल्मी अंदाज में फरार
डीडवाना में नानूराम हत्याकाण्ड मामले की पेशी के बाद अजमेर ले जाते वक्त उसके साथियों ने फि ल्मी अंदाज में आनन्दपाल सिंह व उसके दो साथियों को छुड़ा ले गए थे। मकराना के मंगलाना गांव के पास साथियों ने पुलिस वैन को घेरकर फायरिंग कर दी थी। फिर आनन्दपाल सिंह को अपने साथ लेकर फ रार हो गए। इस घटना में पांच जवान भी घायल हुए, लेकिन बाद में पता चला कि पेशी पर आए कमांडों और पुलिसकर्मियों से सांठगांठ करके आनन्दपाल सिंह ने फरारी को अंजाम दिया था। कुछ पुलिसकर्मियों को नशीली मिठाई खिलाकर बेहोश कर दिया। फरारी की घटना सही लगे, इसके लिए कुछ जवानों के पांवों पर गोलियां भी दागी। इस मामले में आधा दर्जन पुलिसकर्मी गिरफ्तार भी हुए।
राजनीति में आजमा चुका है हाथ
कांस्टेबल खुमाराम की गोली मारकर हत्या करके भाग निकले आनन्दपाल सिंह की कहानी भी किसी फि ल्मी पटकथा से कम नहीं है। नागौर जिले के डीडवाना रोड का एक छोटा सा गांव आज पूरे सूबे में आनन्दपाल सिंह के गांव से जाना जाता है। घर पर आनन्दपाल को पप्पू के नाम से बुलाते हैं। डीडवाना में स्नातक करने के बाद आनन्दपाल ने प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी की। पढ़ाई के दौरान ही उसका रुझान राजनीति की तरफ चला गया। 2000 में हुए पंचायत समिति सदस्य का चुनाव जीता, लेकिन प्रधान का चुनाव पूर्व मंत्री हरजीराम बुरडक के बेटे जग्गनाथ से दो वोट से हार गया। फिर पंचायत समिति की स्थायी समितियों के चुनाव में वहां के एक बड़े कांग्रेस नेता से विवाद हो गया और उस पर राजकार्य में बाधा डालने का केस लगा। धीरे-धीरे आनन्दपाल शराब तस्करी में चला गया और कुछ समय में ही शेखावाटी का अवैध लीकर किंग के रुप में उसकी पहचान होने लगी। शराब के अवैध धंधे में ही जीवण राम गोदारा, गोपाल फोगावाट, नानूराम की हत्या मामलों को अंजाम देने से उसका अपराध जगत में नाम होने लगा। शराब, रंगदारी, लूट-खसोट, जमीनों के कब्जों को लेकर आनन्दपाल की शेखावाटी के ही गैंगस्टर राजू ठेहट गिरोह से अनबन चल रही है और एक-दूसरे पर हमले करने से नहीं चूकते है। राजस्थान पुलिस के लिए चुनौती बनी गैंगस्टर आनंदपाल सिंह और राजू ठेहट गिरोह एक-दूसरे के सदस्यों पर हमले और कत्लेआम में नहीं चूक रही है। बीकानेर जेल में आनन्दपाल व बलवीर बानूडा पर हमला राजू ठेहट गैंग ने ही करवाया था। हालांकि दोनों हमलावर राजपाल और जयप्रकाश आनन्द पाल व उसके साथियों के हाथों मारे गए, लेकिन इस घटना में उसका साथी बानूडा भी मर गया। इन दोनों गिरोह का दबदबा शेखावाटी से पूरे प्रदेश में फैलने लगा है। छोटे-बड़े बदमाश भी इनसे जुडऩे लगे हैं। जब से आनन्दपाल की फरारी हुई है, तब इन दोनों गिरोह में गैंगवार की संभावना बनी हुई है। इन दोनों गिरोहों के कारण शेखावाटी क्षेत्र में जातीय तनाव भी होने लगा है और कई बार इन जातियों का उग्र प्रदर्शन इन गिरोहों के लिए होते रहे हैं। अपराध जगत में नाम कमाने के बाद दूसरे राज्यों के आपराधिक गिरोह से मिलकर उनसे एके 47 जैसे अत्याधुनिक हथियार भी हथिया रखे हैं, जिनके दम पर विरोधी गिरोहों को धमकाता रहता है और इन्हीं हथियारों के दम पर उसने हाल ही नागौर में पुलिस टीम पर भी हमला करके वहां से बच निकला।
यहीं नहीं फायरिंग के बाद बदमाश अपने साथियों को फोन पर अपनी लोकेशन देते रहे, लेकिन पुलिस ने उस क्षेत्र की मोबाइल लोकेशन और मोबाइल से हो रही बातचीत के आधार पर उन्हें पकडऩे की जहमत नहीं उठाई। यह भी बात सामने आई है कि जब बदमाशों कार से पीछा कर रहे पुलिस वाहन पर फायरिंग की तो जवानों ने अपने अफसरों को फोन करके जवाबी फायरिंग की अनुमति मांगी। बताया जाता है कि अफसरों ने उन्हें जवाबी फायरिंग की अनुमति नहीं दी। नतीजा राजस्थान पुलिस का एक जवान शहीद हो गया। पीछा कर रही पुलिस टीम सिर्फ पिस्टल और एसएलआर से लैस थी। जबकि बदमाश एके 47 जैसे हथियारों से लैस थे, जो ताबडतोड गोलियां बरसा रहे थे। पुलिस पर फायरिंग के बाद भाग रहे बदमाशों ने सहायता लेने के लिए अपने साथियों को किए। हालांकि तमाम कयासों व आरोप-प्रत्यारोप के बावजूद यह भी सच्चाई है कि नागौर पुलिस ने आनन्दपाल सिंह व उसके गुर्गों को ना केवल रोका, बल्कि उन्हें पकडऩे की भरसक कोशिश भी की है। यह अलग बात है कि नाकेबंदी के बावजूद बदमाश फरार हो गए।
पुलिस ने फरारी क्षेत्र की लोकेशन से किए गए मोबाइल फोनों की पडताल की तो यह पता चला कि उन्होंने डेढ़ सौ से ज्यादा फोन किए। पुलिस ने कई लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की और बदमाशों की सहायता करने पर कुछ को गिरफ्तार भी किया। पूछताछ में यह सामने आया कि छह महीने पहले डीडवाना में पेशी से फरार होने के बाद आनन्दपाल सिंह व उसके साथी कहीं राज्य और देश से बाहर नहीं गए, बल्कि राजस्थान में ही रहकर वसूली करते रहे है और अपने विरोधी गैंगस्टर पर हमले को अंजाम देने के षडयंत्र में लगे रहे। फरारी के दौरान जोधपुर के जसवंत हॉस्टल में कई बार उसके ठहरने की बात भी सामने आई है। इसी तरह जोधपुर, नागौर, बीकानेर और शेखावाटी के अन्य क्षेत्रों में वह आता-जाता रहा और होटलोंं तक में भी ठहरता रहा। इन छह महीनों की फरारी के दौरान आनन्दपाल सिंह के बारे में यह कयास लगते रहे कि वह राजस्थान से भाग गया है और उत्तरप्रदेश, बिहार में शरण लिए हुए। वहीं यह भी चर्चा रही कि वह दुबई, नेपाल और बैंकाक चला गया। वहां से गिरोह को संचालित कर रहा है। नागौर में फायरिंग के बाद यह तो साफ हो गया कि फरारी के बाद वह और उसके गुर्गे राजस्थान में छिपे रहे, लेकिन राजस्थान पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाई और ना ही उसके संपर्कों को पकड़ पाई। जबकि आनन्दपाल सिंह जब से फरार हुआ है, तब राज्य सरकार और राजस्थान पुलिस को खासी शर्मिंंदगी उठानी पडी है। गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया तो आनन्दपाल सिंह की गिरफ्तारी के संबंध में पूछे जाने वाले मीडिया के सवालों पर अपनी खीझ उतारते हुए कह चुके हैं कि मैं भगवान नहीं हूं या मेरे पास जादू की छड़ी नहीं है, जो घूमाते ही उसे पकड़ लूं। एक बार तो कटारिया ने यह बयान देकर चौंका दिया था कि मैं बयान दे-देकर खुद ही आनन्दपाल सिंह हो गया हूं। हालांकि वे यह भी दावा करते हैं कि आनन्दपाल सिंह ज्यादा दिन छिप नहीं सकता। किसी भी सूरत में पकड़ा जाएगा। राजस्थान पुलिस पूरी मुस्तैदी से उसे पकडऩे में लगी है। उधर, बदमाशों की फायरिंग में जवान खुमाराम की शहादत के बाद पूरी पुलिस फोर्स में जबरदस्त गुस्सा है। राजस्थान पुलिस के अफसरों और जवानों ने इस बार होली नहीं खेलकर इस जवान की शहादत को तो नमन किया है, साथ ही अपने गुस्से को भी इजहार किया है। अगर जल्द ही हमलावर बदमाश पकड़े नहीं जाते हैं तो फोर्स का मनोबल कमजोर होगा, बल्कि आमजन में भी इसका गलत मैसेज पहुंचेगा।
सर्च ऑपरेशन पर उठे सवाल
21 मार्च को नागौर में पुलिस पर फायरिंग के बाद यह तो तय हो गया था कि हमलावर आनन्दपाल सिंह व उसके साथियों ने किया था और वे पैदल ही गांवों में भाग निकले। इनमें से दो घायल भी थे। नागौर पुलिस का दावा है कि हमले के बाद करीब ग्यारह सौ जवान और अफसरों को सर्च ऑपरेशन में लगाया, लेकिन बदमाश पकडऩा तो दूर वे एक छोटे से जिले के एक हिस्से में मौजूद होने के बावजूद कैसे गायब हो गए। कहीं उन्हें कोई शरण तो नहीं दे रखा है या उनके साथी सर्च ऑपरेशन के दौरान ही वहां से निकाल ले गए। ए श्रेणी की नाकेबंदी के बावजूद जयपुर से नागौर तक शातिर बदमाश लग्जरी गाड़ी में पहुंच जाते हैं और फिर पुलिस टीम पर ही हमला करके बच निकलते हैं, लेकिन पुलिस कुछ नहीं कर पाती है। सर्च ऑपरेशन पर सवाल उठ रहे हैं। नागौर के सुखवासी गांव में पुलिस टीम पर हमला करने के आधे घंटे बाद ही नागौर पुलिस ने सर्च ऑपरेशन शुरु करने का दावा तो कर रही है, लेकिन पैदल भागे बदमाशों को पकड़ नहीं पाई। राजस्थान सरकार और राजस्थान पुलिस के लिए खुली चुनौती बने आनन्दपाल को पकडऩे के लिए क्यों नहीं दूसरे जिलों की पुलिस फोर्स और अफसरों को क्यों नहीं सर्च ऑपरेशन में नहीं लगाया। नागौर कोई बड़ा जिला नहीं है और ना ही वह क्षेत्र, जहां पुलिस की बदमाशों से मुठेभेड हुई थी। नागौर के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि अगर गांव-ढाणी में सघन तलाशी अभियान चलाया होता तो आनन्दपाल व उसके साथी पकड़े जा सकते थे। पुलिस पर हमले के एक घंटे बाद पुलिस ने गांव ढाणी की तरफ रुख किया, लेकिन तब तक बदमाश दूसरे गांव-ढाणी में पहुंचते रहे। गांवों के रास्तों में भी नाकेबंदी ठीक नहीं थी। जिस तरह पेरिस हमले के बाद एक फरार आतंकी सालाह अब्दे सलाम को ढूंढने के लिए वहां की पुलिस ने घर-घर तलाशी अभियान चलाकर उसे पकड़ लिया था, वैसा ही सघन तलाशी अभियान चलाया जाना चाहिए इस शातिर बदमाश को पकडऩे के लिए, जिसने ना केवल पुलिस पर हमला करके, बल्कि एक सिपाही की जान लेकर प्रदेश की कानून व्यवस्था को खुलेआम चुनौती दे रखी है। पुलिस सूत्रों का यह भी कहना है कि छह महीने पहले डीडवाना में फरारी के बाद जैसे आनन्दपाल शेखावाटी और मेवाड क्षेत्र में ही रह रहा था, वैसे ही अभी भी वह नागौर में ही है। अभी भी उसे कहीं न कहीं शरण मिली हुई है। अगर पुलिस मुस्तैदी से सर्च ऑपरेशन चालू रखे तो वह पकड़ा जा सकता है।
आनन्दपाल था या दूसरा कोई गैंगस्टर
नागौर के सुखवासी गांव में पुलिस टीम पर फायरिंग करने वाले बदमाश किस गिरोह से थे, अभी तक यह पुलिस जांच में सामने नहीं आया है। फायरिंग के दिन 21 मार्च को तो जेल में बंद कुख्यात गैंगस्टर राजू ठेहठ से जुड़े बदमाशों पर शक जाहिर किया, लेकिन दूसरे दिन ही पुलिस ने आनन्दपाल सिंह और तीन साथियों के हमले में शामिल होने संबंधी संदेह जताया। पुलिस का मानना है कि एके 47 जैसे हथियार आनन्दपाल सिंह व उसके गिरोह के पास है। जो गोलियां दागी गई है वह छह महीने पहले फरारी के दौरान कमांडों से छीने गए एके47 की बताई जाती है।
जिस लग्जरी फॉच्र्यूनर गाडी में बदमाश सवार थे, उसमें आधा दर्जन मोबाइल, सिमकार्ड, कपड़े और हथियार, किताब व दूसरे साक्ष्य मिले हैं, जो आनन्दपाल सिंह व उसके गुर्गों के पास ही होने का शक जाहिर करते हैं। फायरिंग में घायल हुए पुलिसकर्मियों व वहां मौजूद गांववासियों ने भी बयान दिया है कि हमला करके भाग रहे बदमाशों में से एक आनन्दपाल सिंह लगता था। उसने ही एके 47 ले रखी थी और वह पुलिस पर फायरिंग कर रहा था। हालांकि इस घटना के इतने दिनों के बाद भी राजस्थान पुलिस जांच में यह खुलासा नहीं कर पा रही है कि हमलावर बदमाश कौन थे। यहीं नहीं हमलावर बदमाश जिस लग्जरी कार में थे, वह नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के चाचा आशाराम डूडी की है। करीब सवा महीने पहले यह गाड़ी बीकानेर में लूट ली गई थी। इस लूट को लेकर थाने में मामला भी दर्ज है। ताज्जुब की बात है कि बीकानेर संभाग में यह लूटी लग्जरी गाड़ी घूमती रही, लेकिन पुलिस ना तो गाड़ी और लूटने वाले बदमाशों को पकड़ पाई। जबकि फॉच्र्यूनर जैसी लग्जरी गाड़ी पूरे क्षेत्र में कुछ ही लोगों के पास है। बायपास और सड़कों पर दौड़ती ऐसी गाड़ी को रोककर उनके दस्तावेज जांच करवाई जाती तो बदमाश पहले भी पकड़े जा सकते थे।
राजनीतिक संरक्षण के आरोप
आनन्दपाल सिंह और उसके गिरोह को राजनीतिक संरक्षण दिए जाने के आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे है। अब तक तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ही राजनीतिक संरक्षण के आरोप लगाते रहे हैं। अब तो भाजपा के बाडमेर सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी ने भी आनन्दपाल को राजनीतिक संरक्षण का बयान देकर सरकार और पुलिस को कठघरे में खडा कर दिया है। अजमेर में एक कार्यक्रम के दौरान सांसद सोनाराम ने तल्ख अंदाज में कहा कि कुख्यात बदमाश आनन्दपाल को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है। इसमें जो भी लिप्त है, उन लोगों की जांच होनी चाहिए। चाहे वह मंत्री हो या अधिकारी। आनन्दपाल की फरारी के बाद से ही सरकार और पार्टी की छवि खराब हो रही है। सांसद कर्नल सोनाराम के इस बयान के बाद पार्टी व सरकार सांसत में है। अब तक तो कांग्रेस ही यह आरोप लगाती रही है, अब पार्टी नेता भी इस तरह के आरोप लगाने लगे हैं। वहीं इससे पहले राजस्थान विधानसभा में भी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी, निर्दलीय विधायक हनुमान बेनी वाल आनन्दपाल सिंह गिरोह को राजनीतिक संरक्षण का आरोप लगाते हुए भाजपा सरकार के दो केबिनेट मंत्रियों को कठघरे में खड़े कर चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, रामेेश्वर डूडी व हनुमान बेनीवाल तक तो यहां तक कह चुके हैं कि डीडवाना में कोर्ट पेशी के बाद अजमेर जेल ले जाते वक्त रास्ते में आनन्दपाल सिंह व उसके साथियों की फरारी में बड़ा षड्यंत्र रचा गया है। इनका यह भी कहना था कि राज्य के एक केबिनेट मंत्री का बीकानेर जेल में जाकर आनन्दपाल सिंह से मिलना, इस मुलाकात के अगले ही महीने जेल में ही विरोधी गुट राजू ठेहट गैंग से आनन्दपाल सिंह गिरोह से गैंगवार होना और फिर कुछ दिनों बाद पेशी के दौरान फरार होना एक षडयंत्र का हिस्सा लगता है। आनन्दपाल सिंह व उसके साथियों का पुलिस कस्टडी से फ रार होना प्रदेश की कानून व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। नागौर में पुलिस फायरिंग के बाद फिर से आनन्दपाल सिंह के गायब होने के बाद की घटना को लेकर भी कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष राज्य सरकार पर यह आरोप लगाने से नहीं चूक रहे है कि आनन्दपाल सिंह को पुलिस बचाने का प्रयास कर रही है और उसके संरक्षण में ही बार-बार फरार हो जाता है। आनन्दपाल सिंह की गिरफ्तारी को लेकर शेखावाटी क्षेत्रों में काफी धरने-प्रदर्शन भी हो चुके हैं।
सरकार की आफत बना आनन्दपाल
जब से आनन्दपाल फरार हुआ, तभी से राज्य सरकार और राजस्थान पुलिस के लिए आफत बना हुआ है। हाल ही नागौर में इस गिरोह की फायरिंग में एक जवान शहीद हुआ है, तब से विधानसभा के अंदर और बाहर सरकार को खासी शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है। विपक्षी दल सरकार पर कानून व्यवस्था में फेल होने और आनन्दपाल सिंह को राजनीतिक संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए आए दिन सरकार को घेरे हुए हैं। मीडिया में भी यह मसला खूब उछल रहा है। इस मामले में सरकार और राजस्थान पुलिस को जवाब देते नहीं बना पा रहा है। अपराध से प्रभावित जिलों में बदमाशों से लोहा लेने वाली पुलिस टीमों के पास अत्याधुनिक हथियार नहीं होने के आरोप लग रहे हैं। विधानसभा में तो नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी और वरिष्ठ कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न सिंह ने हथियारों का मामला उठाते हुए कहा कि आनन्दपाल गिरोह का पीछा करने वाले नागौर पुलिस टीम के पास बदमाशों का मुकाबला करने के लिए अच्छे हथियार और संसाधन तक नहीं थे। पुलिस के लिए आने वाले वाहन मुख्यालय में रख लिए जाते हैं। खटारा वाहनों को जिलों में भेज देते हैं। अगर नागौर फायरिंग के दिन पुलिस टीम के पास बेहतर हथियार व संसाधन होते तो यह गिरोह उसी दिन खत्म हो जाता। खुद गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया और राजस्थान पुलिस के आला अफसर स्वीकार कर चुके हैं कि फायरिंग करने वाले बदमाशों का पीछा कर रही नागौर पुलिस टीम के पास अत्याधुनिक हथियार नहीं थे। फरारी मामले की जांच रिपोर्ट को लेकर भी विपक्ष कई बार सरकार को घेर चुका है, हालांकि 31 मार्च को यह रिपोर्ट सरकार को पेश कर दी गई है। सरकार रिपोर्ट का अध्ययन करवा रही है और फिलहाल कुछ कहने से बच रही है।
कई हत्याकाण्डों को दिया अंजाम
आनंदपाल पर हत्या, लूट, डकैती, रंगदारी जैसे 25 आपराधिक मामले नागौर, बीकानेर समेत दूसरे जिलों के थानों में दर्ज है। करीब साढ़े तीन साल पहले उसे एसओजी और एटीएस ने जयपुर के फागी क्षेत्र में मोहब्बतपुरा गांव में एक फार्म हाउस से गिरफ्तार किया था। तब उसके पास से एके 47 सरीखे खतरनाक हथियार, ऑटोमैटिक मशीन गन, बम व बुलेटप्रफू जैकेट मिली थी। 2006 में डीडवाना में जीवनराम गोदारा की गोलियों से भूनकर हत्या करने के बाद अपराध जगत में खासा दबदबा हो गया था। सीकर के गोपाल फ ोगावट हत्याकांड को भी आनंद पाल ने ही अंजाम दिया। 29 जून, 2011 को आनंद पाल ने सुजानगढ़ में भोजलाई चौराहे पर गोलियां चलाकर तीन लोगों को घायल कर दिया। उसी दिन गनौड़ा में एक शराब की दुकान पर सेल्समैन के भाई की हत्या कर दी थी। आनन्दपाल पर एक लाख का ईनाम घोषित है। बीकानेर जेल में राजू ठेहट गैंग के दो सदस्यों ने आनन्दपाल पर गोलियां चलाई थी तो बलवीर बानूडा ने आगे उसे बचाया था। आनन्दपाल ने दोनों को जेल में ही मार डाला था। हालांकि उसका खास साथी बानूडा भी गोली लगने से मारा गया। आनन्दपाल सिंह व उसका गिरोह शेखावाटी के अलावा अब दूसरे जिलों में भी धनाढ्य सेठों से फिरौती और खनन माफिया व मालिकों से रंगदारी वसूलने के कृत्यों को भी अंजाम देने लगा है। सेठों व व्यापारियों के अपहरण, डकैती, जमीनों पर कब्जे करना और हटाना इनके लिए आम बात होने लगी है। सीकर के विनोद सर्राफा अपहरण काण्ड को इस गिरोह से ही जुड़ी लेडी डॉन अनुराधा ने अंजाम दिया था। फिलहाल वह जेल में है। इस गिरोह के तार उत्तरप्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश के आपराधिक गिरोह से भी जुड़े हुए। मुम्बई से संचालित क्रिकेट सटोरियों के भी इनसे संबंध है और शेखावाटी क्षेत्र में क्रिकेट समेत अन्य सट्टेबाजी की गतिविधियों में भी ये लिप्त हैं।
सांठगांठ करके फिल्मी अंदाज में फरार
डीडवाना में नानूराम हत्याकाण्ड मामले की पेशी के बाद अजमेर ले जाते वक्त उसके साथियों ने फि ल्मी अंदाज में आनन्दपाल सिंह व उसके दो साथियों को छुड़ा ले गए थे। मकराना के मंगलाना गांव के पास साथियों ने पुलिस वैन को घेरकर फायरिंग कर दी थी। फिर आनन्दपाल सिंह को अपने साथ लेकर फ रार हो गए। इस घटना में पांच जवान भी घायल हुए, लेकिन बाद में पता चला कि पेशी पर आए कमांडों और पुलिसकर्मियों से सांठगांठ करके आनन्दपाल सिंह ने फरारी को अंजाम दिया था। कुछ पुलिसकर्मियों को नशीली मिठाई खिलाकर बेहोश कर दिया। फरारी की घटना सही लगे, इसके लिए कुछ जवानों के पांवों पर गोलियां भी दागी। इस मामले में आधा दर्जन पुलिसकर्मी गिरफ्तार भी हुए।
राजनीति में आजमा चुका है हाथ
कांस्टेबल खुमाराम की गोली मारकर हत्या करके भाग निकले आनन्दपाल सिंह की कहानी भी किसी फि ल्मी पटकथा से कम नहीं है। नागौर जिले के डीडवाना रोड का एक छोटा सा गांव आज पूरे सूबे में आनन्दपाल सिंह के गांव से जाना जाता है। घर पर आनन्दपाल को पप्पू के नाम से बुलाते हैं। डीडवाना में स्नातक करने के बाद आनन्दपाल ने प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी की। पढ़ाई के दौरान ही उसका रुझान राजनीति की तरफ चला गया। 2000 में हुए पंचायत समिति सदस्य का चुनाव जीता, लेकिन प्रधान का चुनाव पूर्व मंत्री हरजीराम बुरडक के बेटे जग्गनाथ से दो वोट से हार गया। फिर पंचायत समिति की स्थायी समितियों के चुनाव में वहां के एक बड़े कांग्रेस नेता से विवाद हो गया और उस पर राजकार्य में बाधा डालने का केस लगा। धीरे-धीरे आनन्दपाल शराब तस्करी में चला गया और कुछ समय में ही शेखावाटी का अवैध लीकर किंग के रुप में उसकी पहचान होने लगी। शराब के अवैध धंधे में ही जीवण राम गोदारा, गोपाल फोगावाट, नानूराम की हत्या मामलों को अंजाम देने से उसका अपराध जगत में नाम होने लगा। शराब, रंगदारी, लूट-खसोट, जमीनों के कब्जों को लेकर आनन्दपाल की शेखावाटी के ही गैंगस्टर राजू ठेहट गिरोह से अनबन चल रही है और एक-दूसरे पर हमले करने से नहीं चूकते है। राजस्थान पुलिस के लिए चुनौती बनी गैंगस्टर आनंदपाल सिंह और राजू ठेहट गिरोह एक-दूसरे के सदस्यों पर हमले और कत्लेआम में नहीं चूक रही है। बीकानेर जेल में आनन्दपाल व बलवीर बानूडा पर हमला राजू ठेहट गैंग ने ही करवाया था। हालांकि दोनों हमलावर राजपाल और जयप्रकाश आनन्द पाल व उसके साथियों के हाथों मारे गए, लेकिन इस घटना में उसका साथी बानूडा भी मर गया। इन दोनों गिरोह का दबदबा शेखावाटी से पूरे प्रदेश में फैलने लगा है। छोटे-बड़े बदमाश भी इनसे जुडऩे लगे हैं। जब से आनन्दपाल की फरारी हुई है, तब इन दोनों गिरोह में गैंगवार की संभावना बनी हुई है। इन दोनों गिरोहों के कारण शेखावाटी क्षेत्र में जातीय तनाव भी होने लगा है और कई बार इन जातियों का उग्र प्रदर्शन इन गिरोहों के लिए होते रहे हैं। अपराध जगत में नाम कमाने के बाद दूसरे राज्यों के आपराधिक गिरोह से मिलकर उनसे एके 47 जैसे अत्याधुनिक हथियार भी हथिया रखे हैं, जिनके दम पर विरोधी गिरोहों को धमकाता रहता है और इन्हीं हथियारों के दम पर उसने हाल ही नागौर में पुलिस टीम पर भी हमला करके वहां से बच निकला।