नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गोरखपुर अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी को लेकर हुए मासूमों की मौत के मामले में स्वत: संज्ञान लेने इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने की बात कही। कोर्ट ने कहा कि यूपी सीएम मामले को स्वयं देख रहे हैं। वैसे यह मामला राज्य के एक अस्पताल का है, ऐसे में बेहतर होगा कि याचिकाकर्ता संबंधित हाईकोर्ट जाए।
कानून के जानकारों का कहना है कि इस प्रकरण में अस्पताल प्रशासन व आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी दोनों पर ही लापरवाही व गैर इरादतन हत्या का मामला बनता है। कंपनी नोटिस का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती, इसके पीछे कारण यह है कि कंपनी को यह पता था कि आक्सीजन की सप्लाई रुकने का परिणाम क्या होगा? यह एक मैनमेड त्रासदी है। इस मामले में कानून साफ है कि अगर जानबूझकर हुई लापरवाही में किसी की जान जाती है तो दोषी व्यक्ति क्रिमिनल निग्लीजेंस का जिम्मेदार होता है।
-बोले कानून के जानकार-बनता है आपराधिक मामला
गोरखपुर में बच्चों की मौत के मामले में कानून के जानकारों का कहना है कि इस प्रकरण सीधे सीधे आपराधिक मामला है। वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने कहा कि अस्पताल में आक्सीजन की कमी होने की बात जिस-जिस की जानकारी में आई, फिर भी उन्होंने जरुरी उपाय नहीं किए, उन सभी पर आपराधिक मामला बनता है। कंपनी भी जिम्मेदार है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह ने कहा कि नोटिस देने भर से कंपनी बच नहीं सकती। कानून ये मान कर चलेगा कि कंपनी को आक्सीजन की कमी होने के गंभीर परिणामों की जानकारी थी। जानकारी होने की स्थिति में कंपनी पर भी गैर इरादतन हत्या में मामला बनेगा, जिसमें 10 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। क्रिमिनल निग्लीजेंस का केस है। अस्पताल प्रबंधन भी जिम्मेदार है।