जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय उमादेवी के मामले में तय कर चुका है कि अस्थाई तदर्थ आधार पर नियुक्तियां नहीं होनी चाहिए, लेकिन प्रदेश में इसकी पालना नहीं हो रही है। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार आदर्श नियोक्ता है। उससे यह आशा नहीं की जा सकती कि वह कर्मचारियों का शोषण करे। इसके बावजूद भी सालों से काम करने वाले कर्मचारियों का शोषण कर उन्हें फिक्स वेतन दिया जा रहा है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार की ओर से दायर अपील को खारिज कर दिया है।
न्यायाधीश मनीष भंडारी और न्यायाधीश डीसी सोमानी की खंडपीठ ने यह आदेश समाज कल्याण विभाग के उपनिदेशक की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने राज्य सरकार पर 25 हजार रुपए का हर्जाना लगाते हुए दो सप्ताह में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराने को कहा है। अपील में श्रम न्यायालय के जुलाई 2014 को अवार्ड जारी कर नाथीदेवी को कुक पद पर नियमित कर परिलाभ देने और एकलपीठ के सितंबर 2017 के आदेश को चुनौती दी गई थी। राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि पद नियमित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना में स्कीम बनाकर दस साल की सेवा पूरी करने वालों को नियमित किया गया है। इस पर अदालत ने कहा कि जब पद नियमित नहीं है कर्मचारियों को नियमित कैसे किया गया। कर्मचारी कई सालों से काम कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि पद स्थाई प्रकृति का है। ऐसा सरकार के कई विभागों में हो रहा है। ऐसे पदों को नियमित करने के आदेश दिए जा चुके हैं, लेकिन सरकार काम चलाऊ व्यवस्था से काम चला रही है। स्वीकृत पदों पर इस तरह काम लेना अपने आप में न्यायालय की अवमानना है। सरकार का यह काम भत्र्सना योग्य है। ऐसे मामले में तो सरकार के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करनी चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने अपील खारिज कर सरकार पर 25 हजार का हर्जाना लगाया है।