Petrol or diesel

जयपुर. राजस्थान में पेट्रोल-डीजल पर वैट दरों में कमी नहीं होगी। गुरुवार को विधानसभा में सरकार ने ये साफ कर दिया है। इसके बाद इस पर जमकर बहस हुई। उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया के सवाल के जवाब में संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने कहा- राज्य सरकार वैट के राजस्व पर प्रभाव को देखते हुए जरूरी होने पर समय पर फैसला करेगी। उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया ने पड़ोसी राज्यों की तुलना में राजस्थान में पेट्रोल-डीजल पर वैट कम करने से जुड़ा सवाल पूछा था। मंत्री के जवाब के बाद बीजेपी ने कुछ देर सदन में हंगामा किया। इस मसले पर नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा आपने यह माना कि सीमावर्ती राज्यों से वैट ज्यादा है। दिसंबर 2018 से वैट की रेट क्या थी और आज की तारीख में वैट कितना है। राठौड़ ने कहा कि 2019 में डीजल पर वैट 18% था, जो आज 19.4 फीसदी है। पेट्रोल पर 26 पर्सेंट था, जो 31 फीसदी है। क्या यह सही है कि आपने राजस्थान में आने के बाद छह बार डीजल पेट्रोल पर वैट बढ़ाया और आपने कहा था जीएसटी काउंसिल में लेकर जाएंगे। आप ने लगातार छह बार बढ़ाया है। संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने कहा वैट की दरों में घटत-बढ़त चलती रहती है। सेंट्रल एक्साइज है। वह भी कई बार कम ज्यादा करता रहता है। मंत्री के जवाब के बाद नेता प्रतिपक्ष और बीजेपी विधायकों ने कहा कि सरकार लगातार महंगाई का बोझ आम जनता पर डाल रही है। उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनिया ने कहा- आप पेट्रोल-डीजल पर सेंट्रल और स्टेट के टैक्स का आंकड़ा बता दीजिए। इस मुद्दे पर बीजेपी विधायकों ने कुछ देर के लिए सदन में हंगामा किया। विधानसभा में सरकार को लगातार घेरने वाले विपक्ष ने गुरुवार को वन मंत्री हेमाराम चौधरी के जवाब की जमकर तारीफ की। बीजेपी विधायक समाराम गरासिया के सवाल के जवाब में हेमाराम चौधरी ने सदन में खुलकर कहा कि जमीन वन विभाग की है ही नहीं। जमीन किसानों की है। गरीब किसान रो रहे हैं। किसानों की जमीन उन्हें मिलनी चाहिए। वन मंत्री ने अपने ही विभाग के अफसरों की संवदेनशीलता पर भी सवाल उठाए। समाराम गरासिया ने सिरोही जिले की पिण्डवाड़ा तहसील के गांव मुदरला में किसानों की जमीन गलत तरीके से वन विभाग के नाम रेवेन्यू रिकॉर्ड में शामिल करने से होने वाली दिक्कतों पर सवाल पूछा था।
– किसान दो पाटों के बीच पिस रहा है…
हेमाराम ने कहा किसान हाईकोर्ट जा नहीं सकते। बेकार में उनको लटकाए रखा। यह वन विभाग ऐसा विभाग है, जिसमें एक पाट राजस्थान सरकार और दूसरा पाट भारत सरकार है। इन दो पाटों के बीच में किसान पिसता है। राजस्थान सरकार कहती है- भारत सरकार करेगी, भारत सरकार मामला राजस्थान सरकार पर डालती है। किसानों की जमीन गलती से वन विभाग के नाम दर्ज हो गई। किसानों की कोई सुनवाई नहीं हो रही, तो बेचारा किसान जाए तो जाए कहां? मैं विधायक का धन्यवाद करता हूं, जिसने मामला उठाया। मैंने तो यही कहा कि आप करते क्या हो? किसान की आप सुनवाई नहीं करते हो, वह गलत है तो मत करो, लेकिन निस्तारण तो करो। आप मान रहे हो जमीन गलती से विभाग के नाम दर्ज हो गई, जमीन आपकी नहीं है।

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