जयपुर। गोविन्द के दरबार में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा का बुधवार को हर्षोल्लास और सद्मार्ग पर चलने के संकल्प के साथ समापन हो गया। भागवत कथा वाचक स्वामी प्रज्ञानानन्द जी महाराज ने कहा की लक्ष्मी को बेटी और मां समझे कभी भी लक्ष्मी पति नही बने। जब आपका धन अपव्यय होने लगे तो समझो आपने लक्ष्मी का सही उपयोग नही किया है। लक्ष्मी का उपयोग दीनहीन के कल्याण और बेटी के लिए योग्य वर व घर ढूंढने में करे। उन्होंने ने कहा की भागवत समाधि की भाषा है। जहां चर्म चक्षु कामना व लोभ को बढाते है। वहीं भगवान षिव के तरह तीसरा नेत्र जो साधना का नेत्र है। उसी से काम-क्रोध पर काबू पाया जा सकता है।
स्वामी जी ने प्रद्युम्न के जन्म की कथा सुनाते हुए कहां की जब षिव के पास काम आया तो उन्हें क्रोध आया और काम देव को जला दिया पर जब रति आई तो प्रसन्न होकर वरदान दिया और वो कृष्ण के पुत्र के रूप में काम देव का जन्म हुआ उन्होंने कहा की प्रकृति परमात्मा की दासी है। हम प्रकृति के अधीन है। भागवत कथा में भगवान कृष्ण पर लगे मणि चोरी के आरोप की कथा सुनाई साथ ही भगवान कृष्ण के आठो विवाह की कथा सुनाई। उन्होंने कहां की जब जीवन मंे विपत्ति आये तो भगवान को नहीं भूले अगर आप भगवान को भूलते है तो यह दुर्भाग्य हैं।
भक्ति में प्रेम की महिमा को सर्वोपरि बताते हुए उद्वव प्रसंग सुनाया और कहां की ज्ञान पर गोपिकाओं की अविरल प्रेम की भक्ति बारी पडी। कृष्ण-सुदामा के प्रसंग सुनाते हुए कहां की जो सच्चा मित्र होता है वो अपने मित्र को हमेषा अपने से ऊपर देखना चाहता है। इस अवसर पर कृष्ण सुदामा के चरित्र का सजीव नाटक के द्वारा प्रदर्षित किया गया और शरद खण्डेलवाल ने अपनी मधुर आवाज में जब ’’अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो की दर पर सुदामा गरीब आ गया है’’ सुनाया तो सारा पाण्डाल झूम उठा। कृष्ण-रूकमणि सुदामा के पाद प्रक्षालन किये। इस अवसर पर ’’भरदे श्याम झोली भर दे’’ जैसे भजनों पर भक्तो ने भगवत भक्ति के रस मंे डूब कर अपने अराध्य गोविन्द को रिझाया।
भागवत का समापन महाआरती के साथ हुआ। इस अवसर पर आये सन्त महात्माओ का शरद खण्डेलवाल और पूर्व महापौर ज्योति खण्डेलवाल ने दुपट्टा पहनाकर सम्मान किया इसे पूर्व जगद्गुरू श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी का जन्म दिवस उनकी चरण पादुका का पूजन कर, दरबार में सभी भक्तगणों तथा आयोजक मण्डल/संयोजक समिति के सदस्यों द्वारा आरती उतार कर मनाया गया, तत्पष्चात कार्यक्रम की संयोजक समिति के सदस्यांे ने अपने अपने दिये सहयोग के लिए स्वामी जी से आर्षीवाद लिया। आर्षीवाद स्वरूप सभी को श्रीयंत्र रूद्राक्ष की माला,प्रसाद तथा महिलाओं को साडी भी दी गई। साथ गौसवार्थ आयोजित इस कार्यक्रम का समापन हुआ।