नई दिल्ली। उनकी तरफ आशा भरी नजरों से देख रहा है। सबको उम्मीद है कि जिन अच्छे दिनों का वादा कर केंद्र में भाजपा की सरकार ने सत्ता सम्भाली है, उस वादे को सरकार पूरा करेगी लेकिन राजस्थान को केंद्र से कुछ विशेष उम्मीदें है और इसके पीेछे कारण यह है कि राजस्थान इस समय बडे आर्थिक संकट से गुजर रहा है। पिछली सरकार की योजनाओं को जारी रखनेे की राजनीतिक मजबूरी, क्रूड ऑयल की लगातार गिरती कीमतों, बिजली कम्पनियों के घाटे और केंद्र सरकार की योजनाओं के बदले हुए फं डिंग पैटर्न ने प्रदेश की अर्थ व्यवस्था की सांसे घोंट दी हैं और ऐसे समय में एक मात्र आस केंद्र सरकार से है। यह आस राजस्थान इस हक से रख रहा है कि दोनों जगह एक ही दल की सरकार है और राजस्थान ने केंद्र को पूरे 25 सांसद दिए हैं।
यह हैं हालात
राजस्थान की आर्थिक स्थिति इस समय खराब ही कही जा सकती है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था की छमाही समीक्षा के अनुसार इस बार पांच वर्ष में पहली बार वित्तीय वर्ष के पहले छह माह में राजस्व घाटे की स्थिति बनी है। मौजूदा वित्तीय वर्ष के अप्रेल से सितम्बर तक के आंकडों के अनुसार 1237.89 करोड का राजस्व घाटा हो चुका है। यही नहीं गैर कर राजस्व में भी 16.80 प्रतिशत की कमी आई है। प्रदेश पर कर्ज का भार 1.53 लाख करोड रूपए हो चुका है। बिजली कम्पनियों का घाटा 85 हजार करोड के आस-पास पहुंच गया है। मौसम की मार के कारण इस बार खरीफ में होने वाले खाद्यान्न उत्पादन में 9.56 प्रतिशत की कमी आ गई है। पिछले वर्ष यह 68.81 लाख टन था, जो इस बार घट कर 62.23 लाख टन रह गया है। बडे उद्योगों में निवेश बढा है और पिछले वर्ष के मुकाबले इस बार लगभग दोगुनी राशि के निवेश का अनुमान है, लेकिन सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगो में निवेश 21.35 प्रतिशत तक कम हो गया है। इसी के चलते रोजगार के अवसरों में भी कमी आई है और रोजगार के अवसर 57.83 प्रतिषत तक घट गए हैं। इस छमाही समीक्षा में माना गया है कि बिजली कम्पनियों के लिए पैसे की बढती जरूरत और तेल के दामों में गिरावट के कारण घाटे को काबू में करना मुश्किल रहेगा।यही कारण है कि हाल में ही सरकार ने आम उपभोग की करीब एक हजार वस्तुओं पर वैट की दर पांच से बढा 5.5 प्रतिशत कर दी है। बजट से ऐन पहले की गई इस बढोतरी से हालांकि कोई खुश नहीं है, लेकिन सरकारी अधिकारियों की मानें तो इसके सिवा कोई चारा भी नहंी है। यही नहीं कुछ और भार भी सरकार पर आने वाले है। जैसे हाल में दिल्ली मुम्बई औद्योगिक कॉरीडोर के लिए अधिग्रहित की जाने वाली भूमि के मुआवजे की भरपाई केंद्र ने करने से मना कर दिया है। इस कॉरीडोर का 39 प्रतिशत हिस्सा राज्य से हो कर गुजरेगा और इसके लिए बडे पैमाने पर भूमि अधिग्रहित की जानी है। इसके लिए सरकार को करीब 3200 करोड रूपए का मुआावजा देना पडेगा। इसी तरह इस वर्ष सातवें वेतन आयेाग की सिफारिशें लागू होनी हैं। यह अपने आप में बहुत बडा भार आने वाला है।
क्यों बने ये हालात
प्रदेश की मौजूदा आर्थिक हालत के पीछे चार प्रमुख कारण है और इन चारों में से तीन में केंद्र सरकार चाहे तो बहुत हद तक सहायता कर सकती है। मौजूदा स्थिति के पीछे एक बडा कारण है कि पिछली कांग्रेस सरकार की वे योजनाएं जो उस सरकार ने कार्यकाल के अंतिम दिनों में लागू की और इन्हें जारी रखना मौजूदा सरकार की राजनीतिक मजबूरी है। सामाजिक पेंशन, निशुल्क दवा और जांच और सामाजिक क्षेत्र की अन्य योजनाओं पर सरकार को करीब साढे तीन हजार करोड रूपए खर्च करने पड़ रहे है। पहले यह भार काफ ी कम था। पिछले दो साल में लोकसभा, विधानसभा उपचुनाव, नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों के कारण सरकार के लिए इन योजनाओं को जारी रखना राजनीतिक मजबूरी रही। वैसे भी एक बार ऐसी योजनाएं शुरु होने के बाद बंद करना लगभग असम्भव होता है।दूसरा कारण है बिजली कम्पनियों का घाटा। पिछली सरकार ने कृषि में बिजली के दाम एक बार भी नहंी बढाए। घरेलू व औद्योगिक बिजली के दाम भी एक बार ही बढाए गए। इस बीच छीजत व घाटे को रोकने के लिए कोई खास कदम नहीं उठाए गए और आज बिजली वितरण कम्पनियों का घाटा 85 हजार करोड रूपए तक जा पहुंचा है। कोई भी बैंक इन कम्पनियों को उधार देने को तैयार नहीं है। इनका यह घाटा सरकार को ही पूरा करना है। केंद्र सरकार की उदय योजना के तहत राज्य सरकार में दो वर्ष में इन कम्पनियों के उधार को टेकओवर करना है। यह बहुत बडा भार है। हाल में वित्तीय मंत्रियों की बैठक में राज्य का प्रतिनिधित्व करने गए स्वायत्त शासन मंत्री राजपाल सिंह शेखावत ने केंद्र से मांग की है कि उधार टेकओवर करने की समय सीमा दो से बढा कर चार वर्ष की जाए। राज्य की छमाही समीक्षा में भी इसे बडा भार माना गया है। तीसरा कारण है कि क्रूड ऑयल की लगातार कम होती कीमतें। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतेंं 30 डॉलर प्रति बैरल तक लुढक गई है। इसके चलते राज्य सरकार को बाडमेर में निकल रहे तेल की रॉयल्टी और पेट्रोल उत्पादों की बिक्री से मिलने वाले वैट में काफ ी नुकसान झेलना पड रहा है। पेट्रोलियम से सरकार को पिछले वित्तीय वर्ष के पहले छह माह में 2933.66 करोड रूपए मिले थे, जो मौजूदा वित्तीय वर्ष के पहले छह माह में घट कर 1531.47 करोड रूपए रह गए। इसका असर गैर कर राजस्व पर भी पडा है और प्रदेश के गैर कर राजस्व में 16.80 प्रतिशत की कमी आई है। चौथा कारण है केंद्रीय योजनाओं के फं डिंग पैटर्न में बदलाव,।चौहदवें वित्त आयेाग की सिफारिशों के बाद राज्यों को मिलने वाले केंद्रीय करों के अंशदान में दस प्रतिशत की बढोतरी हो गई है। पहले केंद्रीय करों में से राज्यों को 32 प्रतिशत अंश मिलता था जो अब बढ कर 42 प्रतिशत हो गया है। लेकिन इस बढोतरी के एवज में केंद्र सरकार ने केंद्र प्रवर्तित योजनाओं में अपना अंशदान कम कर दिया है। केंद्र प्रवर्तित योजनाएं वे योजनाएं है जो केंद्र सरकार चलाती है, लेकिन इनमें राज्यों की भागीदारी भी होती है। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य समाज कल्याण कई बडी योजनाएं हैं। अब तक इन योजनाओं में केंद्र की भागीदारी 75 से 85 प्रतिशत तक रहती थी। राज्यों को 15 से 20 प्रतिशत तक ही अंशदान देना होता था। अब केंद्र ने अपनी भागीदारी घटा कर 55 से 65 प्रतिशत कर दी है। कई योजनाओं में तो केंद्रीय सहायता बंद भी कर दी गई है। ऐसे में राज्यों पर भार बढ गया है। सूत्रों का कहना है कि राजस्थान को इस बदलाव के कारण एक हजार करोड रूपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही कई योजनाओं में राज्य सरकार के करीब पांच हजार करोड रूपए पैसा केंद्र के पास अटके हुए हैं।
क्या उम्मीद है केंद्र से
मौजूदा आर्थिक हालात में केंद्र सरकार से राज्य का काफ ी उम्मीदे हैं। राजस्थान अपनी भौगोलिक परिस्थितियों केे कारण लम्बे समय से विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है। हालांकि इसे नकारा जा चुका है और अब इसकी कोई सम्भावना भी नहीं है, लेकिन पेयजल और बिजली दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें केंद्र सरकार चाहे तो राजस्थान को बडी सहायता दे सकती है। राजस्थान को अपने जल संसाधनों को बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार से बडी सहायता की जरूरत है, ताकि हर गांव ढाणी तक पानी पहुंचाया जा सके। इसी तरह बिजली कम्पनियों के घाटे को समाप्त करने के लिए भी केंद्र सरकार चाहे तो अनुदान या ़ऋण के रूप में राज्य की सहायता कर सकती है। एक बार यह सहायता मिल जाए तो राज्य का बहुत बडा बोझ कम हो सकता है। इसी तरह क्रूड ऑयल के मामले में भी केंद्र राज्य की सहायता कर सकता है। क्रूड ऑयल की कीमतें कम होने से केंद्र सरकार को कोई नुकसान नहीं हो रहा है, बल्कि उसका आयात का खर्च कम हो गया है। इसके अलााव एक्साइज ड्यूटी में भी बढोतरी की गई है। केंद्र सरकार चाहे तो अपने इस फ ायदे का कुछ अंश राज्य सरकार को दे सकती है। इसके साथ ही केंद्रीय योजनाओं के बदले हुए फं डिंग पैटर्न की भी समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि इससे राजस्थान ही नहीं अन्य राज्य भी प्रभावित हो रहे हैं। इसके अलावा सातवें वेतन आयेाग की सिफ ारिशों का कुछ हिस्सा भी केंद्र सरकार वहन कर सकती है।कुल मिला कर देखा जाए तो प्रदेश जिस आर्थिक हालात से मौजूदा दौर में गुजर रहा है, उन्हें सम्भालने की प्राथमिक जिम्मेदारी वैसे तो राज्य सरकार की ही है, लेकिन इस हालत में भी केंद्र से अतिरिक्त मदद न मिले तो फिर दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार होने का कोई फ ायदा नहीं है। यह बात केंद्र सरकार को भी समझनी चाहिए ताकि कडी से कडी जोडने का नारा भविष्य में भी प्रासंगिक रह सके।