जयपुर। राजधानी जयपुर के गोपालपुरा इलाके में हाल एक बालिका की दूषित पानी के सेवन से मौत हो गई। हसनपुरा समेत कई इलाकों में हैजा फैल गया। सरकार की ओर से संचालित विमंदित गृह में एक दर्जन से ज्यादा बच्चों की मौत की एक बड़ी वजह भी दूषित पानी ही रहा है। यहां दूषित पानी के कारण बच्चे डायरिया जैसी बीमारी के शिकार हुए और पर्याप्त इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई। कई बच्चे अभी भी बीमार है। इससे पहले जयपुर के कमेले वाली गली में कई दिन तक दूषित पानी का तांडव रहा। विभिन्न इलाकों से दूषित पानी की शिकायतें भी खूब आए दिन मिलती रहती है। यह तो राजधानी जयपुर के हाल है। जिसे स्मार्ट सिटी बनाने का ख्वाब दिखाया जा रहा है। पेयजल की दो तरह से मिलता है। भूजल से या फिर बांधों-तालाब-टांकों में संचित वर्षा जल से। भूजल प्राकृतिक तौर पर शुद्ध होता है और बांध-तालाब के पानी को कैमिकली ट्रीटमेंट कर पीने लायक बनाया जाता है। लेकिन, वर्तमान में ये दोनों ही अशुद्ध हो रहे है। जानकारों की मानें तो डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार पीने का पानी नहीं मिल रहा है। प्रदेश में जो पेयजल उपलब्ध है उसमें फ्लोराइड, नाइट्रेट, टीडीएस आदि की मात्रा मानकों से कही ज्यादा है। उसमें जानलेवा बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया की मात्रा लगातार बढ़ रही है।
लाल निशान को पार कर गया पानी
जयपुर के विभिन्न इलाकों में पेयजल की शुद्धता के जांचने के लिए सरकार-गैरसरकारी स्तर पर नमूने लिए गए है। इनमें से कुछ की रिपोर्ट आई तो कुछ की रिपोर्ट फाइलों में दब कर ही रह गई। जो रिपोर्ट सामने आई वे चौकाने वाली है। इस रिपोर्ट के अनुसार, जयपुर का भूजल अब पीने लायक नहीं रह गया है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से जयपुर के भूजल की स्थिति को जांचने के लिए रामगढ़ से सीतापुरा तक अलग अलग जगहों के सेम्पल लेकर सर्वे किया गया। इसमें भी यहीं बात सामने आई। पानी में नाइट्रेट की निर्धारित मात्रा 40 से 100 पीपीएम है। चांदपोल, चारदीवारी, सूरजपोल, गंगापोल, सोड़ाला, बनीपार्क, सी-स्कीम, महाराजा कॉलेज, घाटगेट, ब्रह्मपुरी, नाहरी का नाका, करतारपुरा, जवाहरनगर, गुर्जर की थड़ी, गोपालपुरा, जगतपुरा में नाइट्रेट की मात्रा 700 पीपीएम तक मिली। बापूनगर में 470, करतारपुरा में 270 और सोडाला में 320 पीपीएम तक मिली है। फ्लोराइड की निर्धारित मात्रा 0.5 से 1 पीपीएम तक है। सीतापुरा, जगतपुरा, सांगानेर, आमेर रोड पर जलमहल के आसपास का इलाका, जमवारामगढ़, सिसोदिया गार्डन, लालवास, सरवाड में यह मात्रा 2.5 पीपीएम तक पहुंच गई है। इसी तरह पानी में टीडीएस (घुले हुए ठोस पदार्थ) की मानक मात्रा 500 पीपीएम तक है। करतारपुरा, सोडाला, चारदीवारी, चांदपोल, शास्त्रीनगर, जलमहल, गलताजी, सांगानेर, करतारपुरा, बापूनगर में टीडीएस की मात्रा 1800 पीपीएम तक मिली। करतारपुरा-सोडाला में 1400, लालवास, जलमहल में 1800, चांदपोल में 1000 और सांगानेर में 1000 से 1400 टीडीएस की मात्रा मिली है।
इसमें सबसे खतरनाक बात यह है कि ज्यादातर इलाकों में पीने के पानी की सप्लाई सीधे हो रही है। यानि जिन इलाकों में बीसलपुर बांध से पानी नहीं दिया जाता वहां नलकूपों से बिना साफ किए पानी घरों में सप्लाई हो रहा है। जलदाय विभाग के सूत्रों की मानें तो गरमी में पानी की आपूर्ति को बनाए रखने के लिए बीसलपुर से सप्लाई होने वाले पानी के साथ-साथ नलकूल का पानी भी सप्लाई किया जाता है। इससे बीसलपुर से जो पानी कथित तौर पर शुद्ध होकर मिलता है वह भी अशुद्ध हो जाता है।
पेयजल में बैक्टीरिया की मात्रा नहीं होनी चाहिए। इसकी जांच के लिए छह स्थानों पर लिए गए सेम्पल फेल हो गए। एक निजी विश्वविद्यालय की लैब में हुए परीक्षण में सामने आया कि मालवीय नगर और रामगंज एरिया से लिए गए सेम्पल में ईकोलाई बैक्टीरिया मिला। यह पानी में अकेले नहीं बढ़ता बल्कि दूसरे बैक्टीरिया को भी बढ़ाने में मदद करता है।
यूं दूषित हो रहा है पानी
भूजल सबसे ज्यादा दूषित उसके अंधाधुंध दोहन की वजह से हो रहा है। ऐसे में अधिकांश जगह भूजल उस स्तर तक पहुंच गया है जहां उसका दोहन करने पर फ्लोराइड़, नाइट्रेट और टीडीएस साथ आ रहा है। भूजल रिचार्ज नहीं हो रहा है। रामगढ़ बांध के सूख जाने के बाद बीसलपुर से जयपुर में पानी सप्लाई किया जा रहा है। इसको शुद्ध करने के लिए कई पम्पहाउस पर ट्रीटमेंट किया जाता है। लेकिन, पानी की मांग को देखते हुए सप्लाई बढ़ाने के लिए बीसलपुर के पानी के साथ सीधे नलकूपों का पानी बिना किसी ट्रीटमेंट के सप्लाई किया जा रहा है।
जयपुर में पुरानी अबादी वाले इलाकों में सीवरलाइन करीब 40 साल पहले डाली गई थी। ये लाइनें कई जगह टूट चुकी है। पानी की लाइन भी इनके साथ ही चल रही है। ऐेसे में सीवरेज पानी की लाइन में मिल रहा है। रामगंज बाजार, चारदरवाजा, सुभाष चौक, पुरानी बस्ती, जौहरी बाजार, हसनपुरा समेत कई इलाकों में इस तरह की समस्याएं आए दिन आती है। इससे पानी में बैक्टीरिया पॉल्यूशन हो रहा है। सीवरलाइन बदलने की योजना भी बनी हुई है लेकिन राजनीतिक कारणों से अमलीजामा नहीं पहन पा रही है। सीवरेज लाइनों में ये लीकेज भूजल को भी दूषित कर रहा है।
सांगानेर, विश्वकर्मा, करतारपुरा, सुदर्शनपुरा, अमानीशाह समेत कई इलाके ऐसे है जहां कारखानों का पानी जमीन में रिसकर भूजल को कैमिकली प्रदूषित कर रहा है। इस तरह के प्रदूषण को रोकने के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल की स्थापना की गई है लेकिन, देखा जाए तो ये संस्था केवल कागजी कार्रवाई तक ही सीमित है। भ्रष्टाचार और राजनीतिक कारणों से मंडल की कार्रवाई खानापूर्ति बन जाती है। शहर में छोटे-बड़े 700 नाले हैं। इनमें ज्यादातर कच्चे है। इनमें गन्दगी डाली जा रही है। कई जगह तो सीवरेज का पानी भी इसमें छोड़ा जा रहा है। यह पानी रिसकर भूजल को दूषित कर रहा है।
पीने के पानी में फ्लोराइड, टीडीएस और बीमारियों जकड़ रही है
नाइट्रेट की मात्रा अधिक होने से कई गंभीर बीमारियों की चपेट में लोग आ रहे है। इस दूषित पेयजल से दांत एवं हड्डियों कमजोर हो जाती है। पीठ पर कूबड़ निकलने लगती है। प्रजनन क्षमात प्रभावित होती है। इसका असर पशुओं पर भी पड़ता है। उनकी दुग्ध उत्पादन की क्षमता कम हो जाती है। जयपुर जिले का सांगानेर, चाकसू, फागी, दूदू में इसका जबरदस्त असर है। अब तो परकोटा इलाके में भी इन बीमारियों का असर देखने को मिल रहा है।
पानी में नाइट्रेट और अन्य कैमिकल की मात्रा अधिक होने से कैंसर और चर्म रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। किडऩी पर भी असर पड़ता है एवं व्यक्ति की याददाश्त में कमी आ जाती है। सांगानेर और औद्योगिक इलाकों में रह रही आबादी पर इसका असर नजर आ रहा है।
बैक्टीरिया की मात्रा अधिक होने से पेचिश, हैजा, हैपेटाइटस, डायरिया जैसी बीमारियां फैलती है। रूंगटा अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डा. विवेक शर्मा कहते हैं कि 2 से 5 साल के बच्चे इन बीमारियों की चपेट में अधिक आते है। इन छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। टीकाकरण से भी पूरी तरह बचाव संभव नहीं है। यदि प्रदूषण तत्व लगातार शरीर में जाने से वे विभिन्न अंगों में जम जाते हैं। यहां तक कि किडनी के रास्ते बाहर नहीं निकल पाते। ऐसे में गुर्दे संबंधी रोग होने की आशंका रहती है। उन्होंने बताया कि पिछले 50 साल में लगभग 50 लाख नए केमिकल पर्यावरण में घुले है। इनमें से 70 हजार केमिकल ऐसे है जो स्वास्थ्य पर सीध असर डालते है।
समझे अपनी जिम्मेदारी
भूजल को सुरक्षित एवं संरक्षित करने की जिम्मेदारी सरकार और आम जनता दोनों की साझा तौर पर है। देखा जाए तो इस समस्याओं बढ़ाने में जितना जिम्मेदार सरकारी तंत्र है उतनी ही जनता। राज्य सरकार ने जलनीति बना दी लेकिन, प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाई। इसके राजनीतिक कारण है। भूजल बोर्ड की चेतावनी के बाद जयपुर के जिला कलक्टर ने शहर में नए नलकूप खोदने पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन, इसका रसूखदारों के आगे प्रतिबंध के ये आदेश केवल कागजी साबित हो रहे है। यहां तक सरकार की योजनाओं में ही डार्क जोन में नलकूप खोदने की शिकायतें आ रही है। पीने के पानी के किफायती उपयोग के लिए सरकार की कोई योजना नहीं है। स्थिति यह है कि पीने के पानी का उपयोग उद्योगों या ऐसी जगह हो रहा है जहां उपचारित पानी का उपयोग संभव है। उदाहरण के तौर पर शहर के बाग-बगीचों को उपचारित पानी से सींचा जा सकता है लेकिन, 95 फीसदी में पीने का पानी काम में आ रहा है। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित है पर वे क्षमता के मुताबिक काम नहीं कर रहे है। लाखों लीटर पानी रोजाना बर्बाद कर दिया जाता है।

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