नई दिल्ली। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने विवाह के उद्देश्य के लिए धर्म परिवर्तन करने की प्रथा पर रोक लगाने को कहा है। हालांकि, इस संबंध में उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यह आदेश नहीं बल्कि एक सुझाव है। अन्तरधर्मीय विवाह से संबंधित एक याचिका का कल निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति राजीव शर्मा ने कहा कि अदालत के पास अक्सर ऐसे मामले आते हैं जहां अन्तरधर्मीय विवाह आयोजित होते हैं।
उन्होंने कहा कि कभी-कभी एक धर्म से दूसरे में परिवर्तन केवल विवाह करने के लिए किया जाता है। इस प्रथा पर रोक लगाने के लिए अदालत राज्य सरकार से मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 और हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2006 की तर्ज पर स्वतंत्रता अधिनियम बनाने की अपेक्षा करती है। अदालत द्वारा उल्लिखित दोनों अधिनियम जबरन धर्मांतरण को रोकते हैं जिनसे समाज के कई वर्गों में विरोध होता है और धार्मिक भावनाएं भड़कती हैं।
न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि ऐसा अधिनियम बनाये जाते समय नागरिकों की धार्मिक भावनाओं पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिये। उन्होंने हालांकि कहा कि यह आदेश न होकर एक सुझाव है।