नयी दिल्ली : अनाधिकृत निर्माण पर हर दिन जनहित याचिका दाखिल किये जाने के बीच दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाराजगी प्रकट करते हुए पूछा कि शहर का नगर निगम मामला अदालत की जांच के दायरे में आने के बाद ही कदम क्यों उठाता है । अदालत ने कहा कि नगर निकाय ‘‘छूट’’ के साथ कानून तोड़ रहा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि वे काम शुरू होते समय अनाधिकृत निर्माण और यहां तक कि कई मंजिल निर्माण के बाद भी इस्तेमाल होने वाली भवन सामग्री को ‘‘नहीं देख सकते’’। हालांकि, जनहित याचिका दायर होने के बाद निगम कार्रवाई की हड़बड़ी दिखाता है जिससे कई बार ऐसी अवैध इमारतों के बेकसूर खरीदारों को अपना घर छोड़ना पड़ता है जो बहुत कष्टदायक है ।
अदालत ने कहा, ‘‘जनहित याचिका दायर होने से पहले ही आप काम शुरू क्यों नहीं करते ? यह दुखद है कि आप अनाधिकृत निर्माण की अनुमति देते हैं और अतिक्रमण होने देते हैं और (याचिका दायर होने के बाद) तब आप निर्दोष खरीदारों को घरों से बाहर करते हैं। ’’ पीठ ने दक्षिण दिल्ली नगर निगम, दिल्ली जल बोर्ड और बिजली वितरण कंपनी बीएसईएस राजधानी से अपने इलाके में अनाधिकृत निर्माण के खिलाफ की गयी कार्रवाई पर स्थिति रिपोर्ट की मांग की। दक्षिण दिल्ली के विभिन्न हिस्से में कथित अनाधिकृत निर्माण का आरोप लगाने वाले एनजीओ की ओर से दायर याचिका पर अदालत ने यह टिप्पणी की ।