High court

जयपुर। थाने में दर्ज मुकदमें में बिना कोई जांच किये कोर्ट में एफआर पेश कर इतिश्री करने के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट में न्यायाधीश महेन्द्र माहेश्वरी की एकलपीठ ने आदेश में कहा है कि माल और मुल्जिम के पता नहीं चलने के आधार पर पुलिस की ओर से अदालत में पेश की गई एफआर को स्वीकार करने के बजाए न्यायिक अधिकारियों को मामले में किये गये अनुसंधान की प्रगति रिपोर्ट मांगनी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि मामले में बिना प्रगति रिपोर्ट के यदि अनुसंधान बंद कर दिया जाता है तो जांच अधिकारी का दायित्व भी खत्म हो जाता है। इसलिए इस आदेश की पालना के लिए सभी अधीनस्थ अदालतों को आदेश की प्रति भेजी जाय। याची देवप्रकाश की ओर से दायर आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने साइबर ठगी के मुकदमें में निचली कोर्ट के एफआर स्वीकार करने के आदेश को रद्द करते हुए आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने तक केस बंद नहीं करने को कहा है।

यह था मामला
याची के बैंक खाते से साईबर ठगी कर 1.10 रुपए निकालने की 2016 में भट्टा बस्ती थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। पुलिस ने कोई जांच नहीं की। याची ने अपने स्तर पर रिजर्व बैंक से जानकारी लेकर पुलिस को बताया कि आरोपी केरल में मैट्रोकर्मी हैं। फिर भी पुलिस ने अदम पता माल-मुल्जिमान में एफआर कोर्ट में पेश कर दी। जिसे निचली कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और उसकी अपील भी खारिज हो गई।

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