मुंबई। उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर ने कहा है कि सरकार को उन्हीं लोगों को पुलिस संरक्षण मुहैया कराना चाहिए जिन्हें इसकी वास्तविक जरुरत है। उन्होंने कहा कि इस बारे में महाराष्ट्र सरकार को प्राइवेट लोगों को पुलिस संरक्षण प्रदान करने की अपनी नीति की समीक्षा करनी चाहिए। न्यायालय ने इस बारे में सरकार को निर्देश दिया है कि वह अपना हलफनामा इस बारे में तीन सप्ताह में दे दे। साथ ही वह यह भी बताए कि इस बारे में अपनी प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए वह क्या-क्या कदम उठा रही है। यह निर्देश न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई पर दिया जो कि एक वकील ने दायर की है। याचिका में महत्वपूर्ण लोगों जिनमें राजनेता, फिल्मी हस्तियां आदि शामिल हैं से वह शुल्क वसूल करने की मांग की गई है जो उन्हें पुलिस संरक्षण प्राप्त होने की ऐवज में देना है।
याचिका में कहा गया है कि करीब 1000 पुलिसकर्मी इन लोगों की सुरक्षा में लगे हुए हैं। इनमें से अकेले मुंबई में 600 पुलिसकर्मी तथाकथित महत्वपूर्ण लोगों की सुरक्षा में लगे हुए हैं। न्यायालय ने कहा कि ‘मान लीजिए की कल कोई आपात स्थिति आ जाती है। जैसे कि पिछले महीने की तरह बाढ़ आ जाती है और सब चीजें रुक जारी हैं। क्या सभी पुलिसकर्मियों को राहत काम में लगाया जा सकता है। क्या इन सभी 1000 पुलिसकर्मियों को इस राहत काम के लिए बुलाया जा सकता है’। न्यायालय ने कहा कि इसका मतलब यह है कि यदि प्राइवेट लोगों को सुरक्षा के लिए इनको नहीं लगाया गया होता तो इन्हें आम लोगों की भलाई के लिए लगाया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि ‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि आप सभी को पुलिस संरक्षण नहीं दो। लेकिन यह सही जरुरतमंद को मिलनी चाहिए। यदि किसी गरीब से गरीब आदमी को सुरक्षा चाहिए तो आप उसे सुरक्षा प्रदान करो। लेकिन इस तरह के संरक्षण की भी समीक्षा की जाती रहे’। मंगलवार को ही इसी न्यायालय ने यह भी कहा था कि पुलिस कोई ‘प्राइवेट सुरक्षाकर्मी’ नहीं है। इसका मुख्य काम कानून-व्यवस्था को बनाए रखना है।