नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज कहा कि जीवनसाथी की मर्जी के बगैर उसके पति द्वारा उसके साथ यौन संबंध बनाने से जुड़ा ‘वैवाहिक बलात्कार’ का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है। उच्च न्यायालय ने इस मामले में आगे की दलीलें सुनने के लिए अगले साल दो जनवरी की तारीख तय की। इस मामले में महिला अधिकारों से जुड़े कुछ एनजीओ ने भारत में वैवाहिक रिश्ते में यौन हिंसा का मुद्दा उठाया।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के सामने मामले को सूचीबद्ध किया गया। पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के दौरान एनजीओ ‘आरआईटी फाउंडेशन’ और ‘आल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमन्स एसोसिएशन’ की चिंताओं पर संज्ञान लिया। अदालत ने इस मामले के न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन से इस मुद्दे पर अपना नजरिया स्वतंत्र रूप से बताने को कहा।
इस मुद्दे पर केन्द्र का कहना है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता क्येांकि इससे वैवाहिक व्यवस्था अस्थिर हो सकती है और यह पतियों को परेशान करने का आसान रास्ता बन सकता है। रामचंद्रन ने पीठ को बताया कि केन्द्र और एनजीओ की दलीलें सुनने के बाद वह अपना नजरिया बताएंगे।