जयपुर। मकान हर एक के लिए सपना होता है। लोग पाई पाई जोड़ कर मकान बनाते हैं । मकान ही घटिया बने हो तो आम आदमी का विश्वास डगमगा जाता है। कुछ ऐसा ही राजस्थान हाउसिंग बोर्ड की ओर से बनाए जा रहे मकानों के साथ हो रहा है। हाउसिंग बोर्ड की मौजूदा आवासीय योजनाओं में आवास आवंटन में लेटलतीफी, महंगे मकान, निर्माण में गुणवत्ता की कमी और विकसित कॉलोनियों में सुविधाओं के अभाव ने हाउसिंग बोर्ड की छवि को भारी नुकसान पहुंचाया है। अनाप-शनाप खर्चों के कारण मकानों की लागत बढ़ रही है और सस्ता मकान केवल सपना बनकर रह गया है। ऐसे में हाउसिंग बोर्ड पर से जनता का विश्वास खत्म होना वाजिब है। प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधराराजे ने जब नागौर में हाउसिंग बोर्ड के मकानों का घटिया निर्माण देखा तो काम को बंद कर थर्ड पार्टी से जांच के आदेश दिए थे। इस आदेश के बाद बोर्ड के अधिकारियों की नींद खुली। बोर्ड ने जयपुर, जोधपुर, अजमेर के इंजीनियरिंग कॉलेजों, सार्वजनिक निर्माण विभाग के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर्स से जब थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन कराया तो सारी खामियां सामने आ गई। बोर्ड के अधिकारियों ने इस रिपोर्ट को दबाने का काफी प्रयास किया। राजस्थान सम्राट ने खोजबीन कर इस रिपोर्ट को प्राप्त किया तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह था कि बोर्ड के अधिकारी और ठेकेदार इस कदर भ्रष्टाचार में डूबे हुए हुए हैं कि उन्हें आम आदमी की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं है। रिपोर्ट में ऐसी खामियां थी कि इनको सुधारा नहीं गया तो बोर्ड के मल्टीस्टोरी फ्लेटों में रहने वाले लोगों की जान जोखिम में पड़ जाए। सबसे खराब हालत नागौर, जयपुर और दौसा में मिली। ईंटों की चिनाई, प्लास्टर इस कदर खराब थी कि हाथ लगाते ही झड़ जाता। ईटें की क्वालिटी भी इस कदर खराब थी कि वो वजन भी नहीं सहन कर पा रही थी। जयपुर के विक्रमादित्य मार्ग मानसरोवर में बन रहे मल्टीस्टोरी बनाने में बोर्ड के इंजीनियरों ने इस कदर भ्रष्टाचार किया कि आम आदमी का जीवन ही जोखिम में पड़ गया। इन मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में पिलर्स पर लगने वाले सरिए ही वजन सहन नहीं करने लायक थे। थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन में जब इन सरियों का सेम्पल चैक किया गया तो ये फेल निकले। बोर्ड ने 8 एमएम, 10 एमएम, 12 एमएम, 16 एमएम के सरिए वजन नहीं सहन कर पा रहे थे। मानसरोवर में ही सेक्टर 8 में बन रहे मल्टीस्टोरी फ्लैटों में लगे 20 एमएम के सरिए सेम्पल जांच में जब फेल हुए तो बोर्ड के एडीशनल चीफ इंजीनियर (एसीई) को अपनी रिपोर्ट में यह लिखना पड़ा कि भविष्य में इन सरियों का उपयोग नहीं किया जाए। यहां स्टोन की ग्रेड भी जो बताई गई थी वह नहीं मिली। बोर्ड के अधिकारी इस कदर लापरवाह रहे कि मौके पर निर्माण सामग्री की जांच के लिए बनाई गई प्रयोगशाला भी बिड में बताए गए उपकरणों से सुसज्जित नहीं थी। यहां पर भी आधा अधूरा सामान था। जयपुर और नागौर में घटिया निर्माण को देखते हुए अफसरों के भ्रष्टाचार और नाकाबलियत का एक और नमूना सामने आया कि यहां सेम्पल टेस्ट के लिए लगाए गए इंस्पेक्टर्स ने कभी भी मौके पर जाकर सेम्पल लेने की जहमत तक नहीं समझी। घटिया निर्माण को देखते हुए एसीई ने जयपुर और नागौर में कई जगह तैयार हो चुके काम को तोडऩे का आदेश दिया।

-भूकंप से सुरक्षित नहीं

बोर्ड ने इन मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का डिजाइन तो भूंकपरोधी बनाया लेकिन इनमें सरिया ऐसा लगाया कि जो भारी वजन नहीं सहन कर पाया। ईटों की क्वालिटी भी ऐसी ही थी। कई जगहों पर फ्लोरिंग भी ढंग से नहीं लगाई थी। फर्श पर लगने वाली टाइलों की क्वालिटी खराब थी। ऐसे में ये इमारत भूकंप से कब गिर जाए। इसका अंदाजा भी नहीं है। हाउसिंग बोर्ड के मकानों की घटिया निर्माण का यह पहला मामला नहीं है। लोगों को पता है कि हाउसिंग बोर्ड के मकान घटिया ही होते हैं। घटिया निर्माण की पोल की हाउसिंग बोर्ड की कई दफा खुल चुकी है लेकिन, बोर्ड के इंजीनियरों पर जूं तक नहीं रेंगती। स्थिति यह है कि स्वतंत्र आवासों की जितनी भी योजनाएं है उनमें अधिकांश आवंटियों ने आशियानें का कब्जा लेने के बाद मोटा पैसा मकान की मरम्मत पर खर्च किया है। बहुमंजिला इमारतों में तो स्थिति और भी खराब है। कहा जाता है कि फ्लैट की दीवार में कील ठोंके तो उससे पड़ोस के फ्लैट का प्लास्टर उखड़ जाता है। इनमें सीलन की समस्या और आवंटन के बाद रखरखाव को लेकर रहवासी परेशान रहते है। घटिया निर्माणों के चलते सैकड़ों फ्लैट व भूखण्डों को आवंटी पसंद नहीं कर रहे हैं और कब्जा लेने से इंकार कर चुके हैं। बोर्ड ने इन बिना बिके फ्लैटों को बेचने के लिए बोर्ड ने नीलामी भी निकाली लेकिन मकान की लागत ज्यादा होने के कारण आम आदमी ने रूचि नहीं ली। बोर्ड अब इन मकानों को खुली बिक्री में बेचने जा रहा है। बोर्ड की स्थिति यह है कि रजिस्ट्रेशन के बाद मकान दो साल में देने को कहा जाता है लेकिन मिलने में ही पांच साल लग जाते हैं। आवास आवंटन में देरी उपभोक्ताओं का बजट बिगाड़ रही है। आवेदन के समय बताई अनुमानित कीमत और कब्जा सौंपने के समय वसूली जाने वाली कीमत में रात-दिन का अंतर होता है। स्ववित्त पोषित योजनाओं में आवेदन के वक्त जिस अल्प आय वर्ग मकान की कीमत 15 लाख रूपए बताई जाती है, वह कब्जा सौंपे जाने तक तीन-चार साल में 18 लाख रूपए तक पहुंच जाती है। जबकि नियम ये है कि आवास का कब्जा आवेदन के दो साल में मिल जाना चाहिए। निर्माण में देरी की वजह ठेकेदार और बोर्ड की नीतियां होती है लेकिन, उपभोक्ता की जेब कटती है और उसका बजट बिगड़ जाता है।

-कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति

इन सबके बावजूद बोर्ड के अधिकारियों ने थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन की जांच के बाद कार्रवाई करने में सिर्फ खानापूर्ति की। जिन दो कंपनियों भास्कर और शर्मा ब्रांड के सरियों की क्वालिटी खराब मिली। सेम्पल में फेल होने वाली कंपनियों को ब्लैक लिस्ट तक नहीं किया गया। घटिया निर्माण करने वाले बोर्ड के इंजीनियर्स और ठेकेदार आज भी वहीं काम कर रहे हैं। बोर्ड ने बाहर के चार अधिकारियों को निलंबित कर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया लेकिन जनता के प्रति उनकी जवाबदेही को वे भूल गए।

LEAVE A REPLY