Delhi. हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि कैसे सौर वातावरण में सूर्य के किरीट (कोरोना) से उत्सर्जित होने वाले पदार्थ (कोरोनल मास इजेक्शन) जैसी स्थितियां और घटनाएं अंतरिक्ष के मौसम पूर्वानुमानों की उस सटीकता को प्रभावित करते हैं जो हमारे उपग्रहों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। यह समझ भारत के पहले सौर मिशन आगामी आदित्य-एल1 से प्राप्त होने वाले आंकड़ों (डेटा) की व्याख्या में सहायता करेगी।
अंतरिक्ष का मौसम सौर वायु और पृथ्वी के निकट के अंतरिक्ष की उन स्थितियों को संदर्भित करता है जिनसे अंतरिक्ष-में भेजी गई और भूमि पर स्थापित तकनीकी प्रणालियों के प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष का मौसम मुख्य रूप से सूर्य के किरीट (कोरोना) से उत्सर्जित होने वाले उन प्लाज्मा पदार्थों (अर्थात कोरोनल मास इजेक्शन –सीएमई) के कारण होता है जो सूर्य के अपने परिवेश में विशाल चुंबकीय प्लाज्मा के लगातार हो रहे विस्फोटों के कारण अंतरिक्ष में प्रक्षेपित होते रहते हैं और जिनसे पृथ्वी के कई भाग प्रभावित हो सकते हैं। अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं का ऐसा ही एक उदाहरण भू-चुंबकीय तूफान है जिससे पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र गडबड़ा जाता है और जिसका प्रभाव कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक रह सकता है। अतः इसे समझना आवश्यक है कि हमारे उपग्रहों की निगरानी और रखरखाव के लिए सौर वातावरण में होने वाली घटनाएं अंतरिक्ष के मौसम को कैसे प्रभावित करती हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए), बेंगलुरु के डॉ. वागीश मिश्रा के नेतृत्व में खगोलविदों ने अपने वर्तमान कार्यों से यह दिखाया है कि सूर्य से उत्सर्जित सीएमई के प्लाज्मा गुण और पृथ्वी पर उनके पहुँचने का समय में अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में अनुदैर्ध्य स्थानों के साथ काफी भिन्नता हो सकती है। यह शोध रॉयल एस्ट्रोनॉमी जर्नल के मासिक नोटिसों में प्रकाशित हुआ है और इसे सीयू शाह विश्वविद्यालय, गुजरात के कुंजाल दवे, भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, उदयपुर की प्रो. नंदिता श्रीवास्तव और मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ सोलर सिस्टम रिसर्च, जर्मनी से प्रो. लुका टेरियाका ने मिलकर लिखा है।
इस शोध में खगोलविदों के दल ने पृथ्वी-निर्देशित सूर्य के किरीट (कोरोना) से उत्सर्जित होने वाले पदार्थों (कोरोनल मास इजेक्शन- सीएमई) और सीएमई के अंतरग्रहीय (इंटरप्लेनेटरी) भागों (आईसीएमई) का अध्ययन किया। सौर मंडल में यथा अवस्थित तीन स्थानों– नासा (एनएएसए) के दो स्टीरियो (एसटीईआरईओ) अंतरिक्ष यान और सूर्य-पृथ्वी रेखा पर पहले लैग्रैंगियन बिंदु (एल1) के पास स्थित एसओएचओ जहाज पर एलएएससीओ कोरोनाग्राफ से उन्होंने सीएमई और आईसीएमई के एक त्रि-आयामी 3डी दृश्य का पुनर्निर्माण किया। वर्तमान अध्ययन का आधार जो दो घटनाएँ हैं, वे हैं 11 मार्च और 06 अगस्त 2011 के आईसीएमई (जब वे पृथ्वी पर पहुंचे थे)। इन बहु-बिंदु (मल्टी-पॉइंट) रिमोट और इन सीटू अवलोकनों का उपयोग करते हुए इस अध्ययन ने हेलिओस्फीयर में उन स्थानों पर आईसीएमई संरचनाओं की गतिशीलता, आगमन समय, प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र मापदंडों में अंतर की जांच की जहां विभिन्न उपग्रह स्थित हैं।
टीम बताती है कि सूर्य अपनी सतह से सौर पवन नामक आवेशित कणों की एक सतत धारा का उत्सर्जन करता है। यह दो चयनित घटनाएं सौर पवन के माध्यम से चलने वाले सीएमई के झटकों के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए आदर्श थे।
मुख्य लेखक वागीश मिश्रा ने कहा, “हमने पाया कि पूर्व-अनुकूलित विषम माध्यम में प्रसारित सीएमई- से उत्पन्न झटकों की प्लाज्मा विशेषताओं और उनके आगमन के समय, हेलीओस्फीयर में विभिन्न अनुदैर्ध्य स्थानों पर भिन्न हो सकते हैं।”
यह अध्ययन आईसीएमई के स्थानीय प्रेक्षणों को यथा स्थान पर उपस्थित अंतरिक्ष यान से उसकी वैश्विक संरचनाओं से जोड़ने में आने वाली कठिनाइयों पर प्रकाश डालता है और यह बताता है कि हेलियोस्फीयर में किसी भी स्थान पर बड़े आकार वाली बड़ी सीएमई संरचनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाना चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसने बल देकर कहा है कि पूर्व-अनुकूलित परिवेश सौर पवन माध्यम के बारे में जानकारी की कमी सीएमई के आगमन समय और अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान की सटीकता को गंभीर रूप से सीमित कर सकती है। यह नई समझ अंतरिक्ष मिशनों के आंकड़ों (डेटा) की व्याख्या में मदद करेगी।