नयी दिल्ली। फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच लेखक किरण नागरकर ने कहा कि मौजूदा दौर में शायद वह 1997 में आया अपना उपन्यास ‘ककओल्ड’ नहीं लिख पाते। किताब राजपूत राजा ठाकुर भोजराज पर आधारित एक काल्पनिक किरदार के इर्द गिर्द घूमती है। यहां चल रहे ‘टाइम्स लिटफेस्ट’ में 75 साल के लेखक ने अपने संबोधन में कहा कि वह कुछ भी ऐसा लिखने को लेकर भयभीत है जिससे ‘‘उन लोगों को बुरा लग जाए जिन्हें साहित्य या इतिहास की समझ नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं एक मिनट के लिए भी निर्भय होने का झूठा दिखावा नही करना चाहता । मैं उन लोगों का शिकार नहीं बनना चाहता जिनमें साहित्य या अपने अतीत के मूल्य की समझ तक नहीं है।’’ साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखक ने हिंदी के अलावा दूसरी भारतीय भाषाओं के भी सम्मान करने की अपील की।
उन्होंने कहा कि हिंदी की ‘‘शान’’ को लेकर पूरी चर्चा गैरजरूरी है और यह भाषा नहीं जानना कोई शर्मिंदगी का विषय नहीं है। लेखक ने कहा, ‘‘हमारे देश में 24 भाषाएं हैं। हम उन्हें शर्मिंदा क्यों नहीं करते? हम दक्षिण (भारत) के लोगों को हिंदी सीखने के लिए क्यों कहते हैं?’’ उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी कोई भाषा नहीं है जो बेहतरीन नहीं है। आप उससे कैसे लेते हैं, उसके साथ क्या करते हैं और क्या कहानियां बयां करते हैं, यही चीज आपको महान बनाती है।’’