जयपुर। शहरों-कस्बों में जब अफ सरों की लाल-नीली बत्ती वाली गाड़ी हूटर बजाते हुए निकलती हैं तो हर कोई जगह छोड़ देता है। जिस भी घर-प्रतिष्ठान के सामने हूटर बजाती लाल-नीली बत्ती गाड़ी खड़ी हो जाती हैं तो डर के मारे अगले वाले सांसें ऊपर-नीचे होने लगती है। सांसें धौकनी की तरह होने लगती है। यह सोचकर डर सताने लगता है कि ऐसी क्या खता हो गई, जो अफसर उसके यहां आए हैं। राम जाने अब क्या गाज गिरेगी। देश के हर हिस्से में अफसरों की यही धाक है। वे लाल-पीली-नीली लगी महंगी लग्जरी गाड़ी में घूमते हैं और पूरे धाक से औचक निरीक्षण और अपने कार्य को अंजाम देने निकलते हैं। अफसरों में बत्ती लगी गाड़ी का काफी क्रेज भी है। इन सबके बावजूद देश में कुछ ऐसे भी अफसर हैं, जो इन्हें फिजूलखर्ची और दिखावा मानते हैं। वे बसों व दूसरे परिवहन साधनों से अपने कार्यों को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। ना तो उन्हें बत्ती लगी गाड़ी का मोह हैं और ना ही स्टेटस सिंबल दिखाने की चाह। वे आम आदमी की तरह सरकारी सेवा का आनन्द ले रहे हैं। ऐसे ही एक अफसर हैं, जो साइकिल पर ही अपने कार्य को अंजाम देते हैं और साइकिल पर लगी घंटी की आवाज सुनकर अच्छे-अच्छे प्रतिष्ठानों और सेठों के पसीने छूट जाते हैं। यह अफसर है रिजवान, जो ग्वालियर में केन्द्रीय भविष्य निधि संगठन आयुक्त के पद पर नियुक्त हैं। रिजवान की साइकिल की घंटी किसी लाल-पीली-नीली बत्ती से कम नहीं है। घंटी की आवाज सुनते ही प्रतिष्ठान मालिक हिल उठते हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें सरकारी गाड़ी नहीं मिली हुई है और कार्य क्षेत्र काफी छोटा हो। उनके पास सरकार की ओर से गाड़ी भी उपलब्ध है और ग्वालियर, चंबल और उसके आस-पास का क्षेत्र भी उनके कार्यक्षेत्र में आता है, लेकिन रिजवान सरकारी गाड़ी लेने से बचते हैं और साइकिल पर ही कार्यों को निबटाते हैं, चाहे वह औचक निरीक्षण हो या किसी प्रतिष्ठान में मजदूरों की कोई समस्या, वे ही एक सौ से सवा सौ किलोमीटर तक साइकिल पर ही चलते हैं। सवा सौ किलोमीटर का सफ र पैडल मारते हुए साइकिल पर ही तय करते हैं। स्टाफ भी साथ चलता है साइकिल पर ही, लेकिन यदि कोई थक जाए तो उसके लिए राहत वाहन भी रहता है। इस दौरान वह खुद पूरा सफ र साइकिल पर ही पूरा करते हैं। कई बार तो अपनी यात्रा शुरू करने के लिए हरी झंडी दिखाने जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को बुला लेते हैं। कुछ दूरी तक वे भी साथ चलते हैं। रिजवान का कहना है कि साइकिल से सेहत दुरुस्त रहती है। सेहत दुरुस्त होने से काम में भी फुर्ती रहती है। ग्वालियर में रहते हुए इन्होंने हजारों पीडि़तों को पीएफ से संबंधित मामले सुलटाए। इनकी खासियत है कि इनके दफ्तर में पीडित पहुंचना चाहिए। शिकायत सही पाई जाती है तो तत्काल कार्रवाई होती है और पीडित को राहत दिलवाते हैं। रिजवान का कहना है कि पीएफ हर कामगार का हक है। उसे ना केवल मिलना चाहिए वरन समय से मिलना चाहिए। हज़ारों लोगों को वह पीएफ के दायरे में ला चुके हैं। सैकड़ों संस्थानों के नट बोल्ट कस चुके हैं यह। पीएफ ना काटने वाले संस्थानों के मुखिया इनकी साइकिल देख ही डर जाते हैं कि पता नहीं कब वे आएं और घण्टी बज़ा जाएं। रिजवान का कहना है कि साइकिल अपनी सेहत ठीक रखने के लिए चलाता हूं और सेहत ठीक रखते हुए वो काम भी करता हूं जिससे अपनी मेहनत से चार पैसे जोडऩे वालों की भी सेहत ठीक रहे।

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