नई दिल्ली। देश में जिस तरह से जनसंख्या का ग्राफ बढ़ता जा रहा है उससे आने वाले समय देश को और भी ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ेगा। बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार इन सबका सीधा-सीधा सम्बन्ध जनसंख्या से है। अगर जनसंख्या बढ़ेगी तो यह सारी समस्याएं तो आएंगी ही दुनिया के किसी भी देश को देख लिजिए जहां आबादी कम है वहां सारा काम सिस्टमेटिक तरीके से होता है और वहां की सरकारों को अपने देशवासियों की समस्याओं को जानकर उन्हें दूर करनें में दिक्कत नहीं आती, मगर हमारी जनसंख्या इतनी है कि अगर सरकार कोई योजना बनाती है तो उसे बहुत सारा होमवर्क करना पड़ता है जिस कारण योजनाओं में देरी भी होती है। अब असम की सरकार ने इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने नई जनसंख्या नीति बनाई है जिसके तहत ऐसे लोग पंचायत, नगरपालिका चुनाव और सरकारी नौकरी के लिए अपात्र होंगे जिनके दो से ज्यादा बच्चे होंगे। असम विधान सभा में शुक्रवार (15 सितंबर) को लंबी बहस के बाद ये कानून पारित किया गया। असम के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री हेमंत बिस्व सर्मा ने विधेयक को विधान सभा में पेश करते हुए कहा कि राज्य की सेवा शर्तों को जल्द ही नए कानून के हिसाब से बदला जाएगा। इस विधेयक के पारित होने के बाद असम के सभी सरकारी कर्मचारियों पर ह्लदो बच्चोंह्व की नीति लागू होगी। असम में बीजेपी की सरबानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली सरकारी है।
असम में बीजेपी पहली बार सत्ता में आई है। हेमंत बिस्व सर्मा ने सदन में कहा कि राज्य की नई जनसंख्या नीति जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाने और सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य बेहतरी के लिए बनाई गई है। बीजेपी मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार केंद्र सरकार से मांग करेगी कि विधान सभा चुनाव लड़ने के लिए ऐसा ही कानून बनाया जाए जिससे जिनके दो बच्चों से ज्यादा हों वो विधायक का चुनाव नहीं लड़ सकें। नए कानून के अनुसार शादी के लिए निर्धारित न्यूनतम उम्र का पालन न करने वालों को भी सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। असम की जनसंख्या साल 2001 की जनगणना में 2.66 करोड़ थी। साल 2011 की जनगणना में राज्य की जनसंख्या 3.12 करोड़ थी। राज्य सरकार के अनुसार 10 सालों में जनसंख्या में हुई 17.07 प्रतिशत की वृद्धि को वहन करने में राज्य अक्षम है, इसलिए इस पर लगाम लगाना जरूरी है। शुक्रवार को ही असम सरकार ने बुजुर्गों और विकलांग भाई-बहनों की देखभाल से जुड़ा एक विधेयक भी पारित किया। ह्यप्रणामह्ण (पैरेन्ट्स रेस्पॉन्सिबिलिटी एंड नॉर्म्स फॉर अकाउंटेबिलिटी एंड मॉनिटरिंग) विधेयक के तहत अगर किसी सरकारी कर्मचारी ने अपने बुजुर्ग मां-बाप या विकलांग भाई-बहन (सहोदर) की देख-रेख नहीं की तो उसकी सैलरी से 10-15 प्रतिशत की कटौती कर ली जाएगी और रकम पीड़ितों के खाते में ट्रांसफर कर दी जाएगी। विधेयक के अनुसार वंचित माता-पिता को लिखित रूप से इसकी शिकायत सरकार से करनी होगी। सरकार 90 दिन के अंदर शिकायत की छानबीन करके मामले का निपटारा करेगी।