जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के उद्घाटन समारोह में गुरुवार को गीतकार गुलजार अपने रंग में दिखे। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के संबोधन के बाद गुलजार ने सियासत और सियासत के गहरी चालों पर बाण चलाते हुए कहा कि मुझे सियासत नहीं आती है। मुझे उन ऊंची कुर्सियों पर बैठने से भी डर लगता है, जिन पर बैठने के बाद पांव जमीन पर नहीं रहते हैं। हां कॉमन मैन की तरह सियासत से प्रभावित जरूर रहता हूं। गुलजार ने कहा कि फूल कितनी ही ऊंची टहनी पर हो, लेकिन अपनी जमीन से जुड़ा रहता है। इस वजह से वह खिला रहता है और महकता है। सियासत पर तंज कसते हुए गुलजार ने कहा कि जमाने को बहलाना आसान नहीं है। आप किसी छोटे हलके (समूह) को तो बहला सकते हैं, लेकिन पूरे समाज को नहीं। जब गुलजार अपने पूरे शबाब में अपनी बात कह रहे थे, तब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सामने बैठी हुई थी। कार्यक्रम की शुरुआत तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन के साथ कम्पोज की गई जुगलबंदी से की गई। गुलजार ने कहा कि अब तक नज्म सुनाकर चला जाता था, लेकिन इस बार मुझे आयोजकों ने स्पीकर बना दिया। हिन्दुस्तान में तीज-त्यौहारों का अपना अलग मजा है। पतंग हैं तो त्योहार है, रंग हैं तो रंग का त्योहार है। अब किताबों का भी त्योहार है। हर लैंग्वेज नेशनल है। आप किसी भाषा को किसी रीजन में कैसे बांट सकते हैं। गुलजार के शब्दों पर कई बार दर्शकों ने तालियां बजाकर हौंसला अफजाई की।

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