(विवेक वैश्णव, अधिस्वीकृत पत्रकार)
समय के फेर में तेजी से बदली दुनिया में मायने और मकसद भी बदले है। जीवन में कई अवसर ऐसे आते है जब हमें भावनात्मक तौर पर दोहरी जिन्दगी जीनी पड़ती है। अर्थव्यवस्था भी आज नए रूप में हमारे सामने है। आज के दौर में अटेंषन को भी एक पूंजी माना गया है और इसे इकोनमी मानते हुए पूंजी की ही भांति बटोरने की होड़ सी लगी हुई है। अटेंषन एकोनमी अर्थात ध्यान अर्थव्यवस्था को सभी तरह का मीडिया आकर्शित करने में लगा हुआ है। अटेंषन एकोनमी आज के सूचना प्रबन्धन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। अटेंषन आज के सूचना क्रांति के दौर की सबसे बड़ी पूंजी है। तेज रफ्तार पकड़ती तकनीक – प्रौद्योगिकी के इस दौर में वर्चुअल वल्र्ड आपकी समस्त ख्वाहिषों का पूरा ध्यान रखती है। अटेंषन एकोनमी के इस टर्म को प्रतिश्ठित अर्थषास्त्री, मनोवैज्ञानिक एवं नोबल लायेट हर्बर्ट ए साइमन ने दिया था।
आभासी दुनिया में तकनीक हमारी रोजमर्रा जिन्दगी का अहम् हिस्सा बन चुकी है। वैष्विक महामारी कोरोनाकाल में तो कई सारे काम वर्चुअल मोड पर आ गये थे। वर्चुअल दुनिया में बचपन का आउटडोर तो लगभग समाप्त ही कर दिया है। कई कम्पनियांे ने अब काॅल सेन्टर्स पर अब वर्चुअल एजेन्ट्स की तैनाती की ओर प्रयास भी प्रारंभ कर दिया है।
अटेंषन एकोनमी का एक दूसरा रूप क्लिकबेट है, जिसमें पब्लिषर इंटरनेट के माध्यम से उसकी वेबसाईट पर अच्छा खासा ट्रैफिक जनरेट करता है। षाब्दिक अर्थ में इसे समझे तो क्लिक का अर्थ वेबसाईट तक ले जाना और बेट का अर्थ जाल में फसाना है। गूगल के साथ ही फेसबुक, ट्विट्र और इंस्टाग्राम जैसी सोषल साईट्स ने हमारे आस पास एक जाल सा बुना हुआ है। इन्हे हमारा वक्त चाहिए और ये नित्य नये प्रयोग से हमारा ध्यान अपनी ओर खींचने की होड़ में लगे हुए है। अधिकांषतः देखने में मिलता है कि कोई व्यक्ति किसी लिंक पर क्लिक करता है और उसे उस वेबसाईट पर ऐसा कुछ नही मिलता है जिसकी उसने उम्मीद की हो, यानि खोदा पहाड निकली चुहिया वाली कहावत चरितार्थ होती है। क्लिकबेट के माध्यम से पब्लिषर एक बार तो वेबसाईट पर ट्रैफिक लाने में कामयाब हो जाता है लेकिन इस षार्टकट के चक्कर में आडियन्स से लांगटर्म तक रिष्ते कायम रखने में नाकाम रहता है।
इंटरनेट के जरिए वर्चुअल दुनिया की सैर भी अटेंषन ही है। साधारण षब्दों में इसे वेब सर्फिंग कहते है। वेब सर्फिंग की तीन परते सर्फेस वेब, डीप वेब और डार्क वेब होती है। सर्फेस वेब को विजिबल, इंडेक्स्ड या लाइट नेट के नाम से भी जाना जाता है। अगर हम वेब वल्र्ड को एक ओषन मान ले तो सर्फेस वेब उस ओषन के टिप आॅफ द आइसबर्ग की तरह होता है। इसका महज एक छोटा हिस्सा ही हमें नजर आता है जैसे गूगल या अन्य कोई सोषल साईट्। डीप वेब को हम गूगल, याहू जैसे सर्च इंजन के जरिए नही ढूंढ पाते है। इसके लिए हमें या तो लाॅग इन करना पड़ता है या फिर सब्सक्राइब या फिर यूआरएल या आईपी एड्रेस के जरिए किसी जानकारी को हासिल करना पड़ता है। इंटरनेट बैंकिंग, ओटीटी प्लेटफार्म, ई पत्रिका या अखबार आदि इसके उदाहरण है। डार्क वेब को इंटरनेट के अंधियारे गलियारे कहते है। वो दुनिया जहां साइबर क्राइम को अंजाम दिया है और साइबर अपराधी के आईपी ऐड्रेस को ढूंढ पाना भी बड़ा कठिन काम होता है।
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