जयपुर। राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी को छोटी काशी के तौर पर जाना जाता है। शहर से होकर गुजरने वाली हर गली में देवालय होने से हर कोई भक्ति के रंग में डूबा हुआ नजर आता है। जयपुर नगरी में छोटे-छोटे मंदिरों के साथ बड़े मंदिर भी स्थापित है। जिनकी स्थापना रियासतकाल में हुई। जहां दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। कुछ इसी तरह का अनूठा मंदिर है।
शहर की हृदयस्थली के बीच पहाड़ी पर स्थापित गढ़ गणेश मंदिर। जिसकी स्थापना के साथ ही जयपुर नगरी की स्थापना की गई। रियासतकालिन यह मंदिर 290 साल पुराना है। इस मंदिर में दो विग्रह हैं। जिसमें पहला विग्रह आकड़े की जड़ का तो दूसरा अश्वमेघ यज्ञ की भस्म से बना हुआ है। महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ करवा कर नाहरगढ़ की पहाड़ी पर भगवान गणेश के बाल्य रुप वाली बिना सूंड प्रतिमा की पूरे विधि विधान से स्थापना कराई। मंदिर में भगवान गणेश को इस प्रकार प्रतिष्ठित कराया गया कि सिटी पैलेस के इंद्र महल से दूरबीन की सहायता से साफ दर्शन किए जा सके। महाराजा दूरबीन से इंद्र महल में खड़े होकर भगवान गणेश के दर्शन करते थे। मंदिर परिसर में ही पाषाण से निर्मित दो मूषक है। भक्तजन अपनी मनोकामना मूषक को बताते हैं तो मूषक भगवान गणेश तक उसे पहुंचा देते हैं। यहां भगवान को अपनी मनोकामना बताने के साथ ही वह पूरी भी होती है। पूरे भारत वर्ष में बिना सूंड वाले भगवान गणेश का एक यही मंदिर है।