नई दिल्ली। देश के साथ विश्वजगत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मजबूत होती छवि ने पड़ौसी मुल्क के माथे पर चिंता की रेखाएं खेंच दी है। विशेषकर भारत ने जिस तरह अपने दुश्मनों के खिलाफ परमाणु हथियारों को लेकर नो फस्र्ट यूज की नीति त्यागने के जो संकेत दिए हैं। उसके बाद तो पड़ौसी देश पाकिस्तान की रातों की नींद उड़ गई है। विशेषकर भाजपा के नेतृत्व में कट्टर हिंदुत्ववादी एजेंडा जिस तरह से देश में मजबूत होता जा रहा है। उसके बाद तो पाकिस्तान की सरकार पसोपेश में नजर आ रही है। गौरतलब है कि हाल ही न्यूक्लियर एक्सपर्टस की जो रिपोर्ट सामने आई उसके अनुसार भारत अब अपनी बरसों से चली आ रही न्यूक्लियर पॉलिसी में बदलाव कर सकता है। आशंका जताई गई कि किसी हमले की आशंका में भारत पहले ही अपने दुश्मन के खिलाफ व्यापक स्तर पर न्यूक्लिर हमला कर सकता है। इसी को लेकर पाकिस्तान अब चिंतित है। इसके संकेत हाल ही देश के ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टॉफ समिति के पूर्व अध्यक्ष एहसान उल हक ने दिए। लर्निंग टु लिव विद ए बॉम्ब पाकिस्तान 1998-2016 शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक का विमोचन करते हुए हक ने कहा कि यह चिंताजनक है कि ऐसा भाजपा की कट्टर हिंदुत्व एजेंडे वाली सरकार की पृष्ठभूमि में हो रहा है। वैसे पाक की यह परेशानी मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के विद्वान विपिन नारंग और भारत के पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के उस बयान से बढ़ी जिसमें कहा गया कि भारत अपने दुश्मन को छोटी रेंज के न्यूक्लियर मिसाइल की बजाय एक बड़े व्यापक हमे तबाह कर देगा। इसका मकसद पाक के न्यूक्लियर जखीरे बर्बाद करना होगा। ताकि भारत को बार-बार जवाबी हमले न करने पड़े न उसके शहरों पर परमाणु हमलों का खतरा मंडराए। वहीं पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने भी कहा कि परमाणु ताकत संपन्न देश के खिलाफ भारत न्यूक्लियर हथियार कब प्रयोग करेगा इसको लेकर स्थिति साफ नहीं है। ऐसे में न्यूक्लियर एक्सपर्ट इस बात को सोचने के लिए मजबूर हो गए कि क्या भारत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के सिद्धांतों को नई दिशा दे रहा है? वैसे पाकिस्तान अपने न्यूक्लियर हथियारों के दम पर भारत के खिलाफ आतंक को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता आ रहा है। ऐसे जानकारों का कहना है कि अगर यह स्थिति बरकरार रही तो भारत का सब्र टूट जाएगा और वह न्यूक्लियर हथियारों के प्रयोग को लेकर अपनी नीति की समीक्षा कर सकता है।
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