नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज केन्द्र सरकार से कहा कि दूसरे देशों में मृत्यु दंड पाने वाले कैदियों की सजा पर अमल के प्रचलित विभिन्न तरीकों से उसे अवगत कराया जाये।प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इसके साथ ही स्पष्ट किया कि शीर्ष अदालत यह निर्णय नहीं करेगा कि भारत में मृत्यु दंड पाने वाले कैदियों की सजा पर अमल करने का कौन सा तरीका होना चाहिए।पीठ ने कहा, ‘‘हम नहीं कह सकते कि क्या तरीका होना चाहिए। हमे बतायें कि दूसरे देशों में क्या हो रहा है।’’ केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पिन्की आनंद ने मृत्यु दंड पाने वाले कैदी को फांसी पर लटकाने के कानूनी प्रावधान निरस्त करने के लिये दायर याचिका का जवाब देने के लिये कुछ समय देने का अनुरोध किया।
इस याचिका पर संक्षिप्त सुनवाई के दौरान आनंद ने कहा कि ऐसे कैदी को फांसी पर लटकाना एक व्यावहारिक तरीका है क्योंकि प्राणघातक इंजेक्शन देना कारगर नहीं है।पीठ ने अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा की जनहित पर केन्द्र को जवाब देने के लिये चार सप्ताह का वक्त दे दिया। इस याचिका में विधि आयोग की 187वीं रिपोर्टका भी हवाला दिया गया है जिसमे मौत की सजा देने के मौजूदा तरीके को कानून से हटाने की सिफारिश की गयी थी।इस याचिका पर न्यायालय ने पिछले साल छह अक्तूबर को केन्द्र से जवाब मांगा था। इस याचिका में संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने के अधिकार का जिक्र करते हुये कहा गया है कि मृत्यु दण्ड पाने वाले कैदी का भी गरिमा पूर्ण तरीके से सजा पर अमल का अधिकार है ताकि मौत कम पीडा दायक हो।
याचिका के अनुसार विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अनेक देशों ने मौत की सजा पर अमल के लिये फांसी के फंदे पर लटकाने का तरीका खत्म करके बिजली का करेन्ट देना, गोली मारने या घातक इंजेक्शन देने के तरीके अपनाये है। याचिका में कहा गया है कि गरिमा के साथ मौत भी जीने के अधिकार का ही हिस्सा है और फांसी के फंदे पर लटकाने का मौजूदा तरीका कैदी की पीडा को लंबा खींचता है।