जितेन्द्र शर्मा
जयपुर। प्रदेश में 1067 करोड़ के अमृत टेंडरों में हुए घोटाले का जनप्रहरी एक्सप्रेस द्वारा खुलासा किए जाने के बाद जलदाय विभाग के इंजीनियर और आलाधिकारी खुद को बचाने में जुट गए हैं। अमृत योजना के टेंडरो में जलदाय विभाग में ऊपर से नीचे तक मिलीभगत कर मोटे कमीशन के दम पर ठेका कंपनियों ने सीधे-सीधे 150 करोड़ का भ्रष्टाचार किया है। मिलीभगत के इस भ्रष्टाचार को लेकर अमृत टेंडरों से जुड़े ऊपर से नीचे तक के सारे अधिकारी एक हो गए हैं और अब अमृत टेंडरों की 20 प्रतिशत ऊंची दरों को सही ठहराने में जुट गए हैं। अमृत टेंडरों का ये खेल जलदाय विभाग में एक संस्थागत भ्रष्टाचार का बड़ा नमूना है, जो अधिकारियों और इंजीनियर्स की मिलीभगत और कमीशनखोरी को खुलेआम साबित कर रहा है। दरअसल अमृत मिशन के टेंडरों में 20 प्रतिशत ऊंची दरें देकर 150 करोड़ के भ्रष्टाचार का जनप्रहरी एक्सप्रेस द्वारा खुलासा करने के बाद विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र खुद के साथ सभी अधिकारी और इंजीनियर्स को क्लीनचिट देने में जुटे हैं। जलदाय विभाग के अमृत टेंडरों की ऊंची दरें पूरे विभाग में किसी से छिपी हुई नहीं है। अधिकारियों ने अमृत के घोटाले को अंजाम देने के लिए नियमों को दरकिनार किया और बिना बीएसआर के टेंडर तैयार होने के बाद भी आइटमों की ऊंची दरों को स्वीकृत दिया। अमृत टेंडरों में डीआई पाइपों की बीएसआर से डेढ़ गुना ज्यादा रेट दी गई। वॉल्व की रेट भी बाजार रेट से तीन गुना ज्यादा दी गई। इंटर कनेक्शन की रेट को 10 गुना से भी ज्यादा दी गई है। एमएस फेब्रीकेशन की रेट दुगनी से ज्यादा दी गई। मीटर लगाने का कार्य दुगनी से भी ज्यादा दरों पर दिया गया। ये सारा खेल सिर्फ अमृत टेंडरों की ऊंची दरों को जस्टीफाई करने के लिए किया गया। इतना बड़ा घोटाला होने के बाद भी विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र को अमृत टेंडरों में कोई गड़बड़ी नजर नहीं आ रही है। अमृत टेंडर की 20 प्रतिशत ज्यादा दरों का जनप्रहरी एक्सप्रेस द्वारा खुलासा किए जाने के बाद विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र ने अमृत टेंडरों की ऊंची दरें आने के जो कारण गिनाए उनकी हकीकत ये हैं-
1. प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र का कहना है कि – धौलपुर, हिण्डौनसिटी जैसे शहरों के लिए पर्याप्त रेसपोन्स और दरें नहीं मिलने के कारण 2 से 4 बार टेंडर हुए।
जनप्रहरी एक्सप्रेस का खुलासा – अमृत के 11 शहरों के टेंडरों में 8 ठेका फर्मों ने पूल बना लिया था, और विभाग के द्वारा कई फर्मों पर टेडर में शामिल नहीं होने का पूरा दबाव बनाया गया था, जिसके कारण इन 8 फर्मों के अलावा कोई और फर्म टेंडर में शामिल नहीं हुई और हर बार टेंडर की दरें ज्यादा आई। यह एक संस्थागत भ्रष्टाचार था, जिसमें अमृत टेंडर से जुड़े जलदाय विभाग के नीचे से ऊपर तक के सभी लोग शामिल थे।
2. प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र का कहना है कि – विभिन्न टेंडर के बाद भी ज्यादा रेट आने पर दर विश्लेषण के बाद कमेटी की सिफारिश पर उचित दरें मंजूर की जा सकती है। नियम-68 यह भी कहता है कि अगर एक ही टेंडर हो तो भी खरीदने वाली वस्तु या उसका अस्तित्व पूरी जांच के बाद अगर विश्वसनीय पाया जाता है, तो टेंडर मंजूर किया जा सकता है।
जनप्रहरी एक्सप्रेस का खुलासा – नियमों की पालना करने वाले ही ठेका फर्मों के साथ मिलीभगत कर ले तो फिर कमेटी को 20 प्रतिशत ऊंची दरें भी उचित ही दिखेगी। इसी दर विश्लेषण कमेटी द्वारा इसी नेचर के कार्य उसी शहर में उसी समय में 5 से 19 प्रतिशत तक कम दरों पर भी स्वीकृत किए गए थे। अमृत के अलावा दूसरे टेंडरों में दर विश्लेषण करते समय कमेटी के मापदण्ड क्यों बदल जाते हैं। एक ही नेचर और आइटमों के कार्य की दरों में 19 प्रतिशत कम और 20 प्रतिशत ज्यादा तक का अंतर कैसे आ जाता है।
3. प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र का कहना है कि- कंपनी के नहीं मानने पर सर्वोच्च अधिकृत नेगोसिएशन कमेटी, फायनेंस कमेटी की मंजूरी से लास्ट एण्ड फाइनल मौके के रूप में काउंटर आॅफर दिया जाता है।
जनप्रहरी एक्सप्रेस का खुलासा – नेगोसिएशन कमेटी के अधिकारियों की मिलीभगत से ही पूरे खेल को फाइनल रूप दिया गया था। अधिकारियों ने ठेका फर्मों को पाबंद कर दिया था कि कोई भी फर्म नेगोसिएशन के बाद भी 28 प्रतिशत से नीचे नहीं आएगी। और ऐसा ही हुआ और विभाग को विकल्पहीन बनाते हुए इन्हीं अधिकारियों ने 20 प्रतिशत ज्यादा दरों के काउंटर आॅफर का सुझाव दे दिया। क्योंकि जितनी ज्यादा दरें ठेका कंपनियों को मिली उतना ही ज्यादा कमीशन सबको बांटा गया।
4. प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र का कहना है कि – आरटीपीपी एक्ट के अनुसार अनिवार्य आॅनलाइन टेंडर भरने के काम में भी योग्य एल-1 कोई भी हो उसके साथ ही नेगोसिएशन करना होता है। एक कंपनी के साथ एक से अधिक साइट पर प्रतिस्पर्धा करने में कोई रोक नहीं है।
जनप्रहरी एक्सप्रेस का खुलासा – अमृत के टेंडरों का ठेका कंपनियों ने विभाग के आलाधिकारियों के साथ मिलकर टेंडर डालने से पहले ही बटवारा कर लिया था। एल-1 फर्म के साथ नेगोसिएशन और फायनेंस कमेटी में 20 प्रतिशत ऊंची दरों का काउंटर आॅफर तो सिर्फ इस मिलीभगत के खेल को सही ठहराने का एक जरिया था।
5. प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र का कहना है कि – तीन मुख्य अभियंताओं और वित्तीय सलाहकार द्वारा की गई विस्तृत सिफारिश के आधार पर दिए गए काउंटर आॅफर 18 से 20 प्रतिशत में 6 से 7 प्रतिशत जीएसटी का प्रभाव जुड़ा हुआ है, इसलिए माइनस टैक्स की प्रभावी दर 12 से 13 प्रतिशत है।
जनप्रहरी एक्सप्रेस का खुलासा – अमृत के अलावा इन्हीं शहरों में समान नेचर के अन्य कार्यों की दरें 5 से 19 प्रतिशत तक कम आई और वे भी काम कर रहे हैं। क्या उन टेंडरों के कार्य और आइटमों पर जीएसटी नहीं लग रहा, जो विभाग के 3 इंजीनियर्स और वित्तीय सलाहकार ने अमृत टेंडरों में फर्मों की ऊंची दरों को जस्टीफाई ठहराने के लिए जीएसटी और अन्य प्रकार की गलियां निकालकर 20 प्रतिशत ऊंची दरों को उचित ठहरा दिया।
6. प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र का कहना है कि – जो रेट कोट की गई थी, वो काफी हाई थी, 38 प्रतिशत के करीब जो 18 से 20 प्रतिशत नीचे आ गई थी, इसमें जीएसटी शामिल था। स्टेण्डिंग नेगोसिएशन कमेटी के काफी नगोसिएशन के बाद संतोषजनक कमी की।
जनप्रहरी एक्सप्रेस का खुलासा – सबसे बड़ी बात तो ये कि अमृत के टेंडरों की ऊंची दरों का खेल विभाग के ंइजीनियर्स की मिलीभगत से ही खेला गया। अमृत टेंडर के पाइप, सिल्यूश वॉल्व सहित अन्य आइटमों की बीएसआर रेट होने के बाद भी इन्हें नॉन बीएसआर आइटमों में दुगनी दरे ली गई। ठेका फर्मों से कोट करवाकर उनमें 4 से 5 प्रतिशत कमीं करवाकर आलाधिकारियों से इसे एप्रूव्ड करवा लिया। सवाल ये है कि जब जलदाय विभाग की बीएसआर बनीं हुई है तो फिर उससे दरें क्यों नहंी ली गई।
7. प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र का कहना है कि – हम अच्छे से जानते हैं कि सारे शहरों में मिट्टी, चट्टान, निर्माण की स्थिति और कार्य की जगह एक जैसी नहीं होती। निविदा में आॅफर किए टेंडर्स की साइट भी विशिष्ट होती है। ाीकानेर-जोधपुर और हिण्डौन-धौलपुर की स्थिति में बड़ा अंतर है।
जनप्रहरी एक्सप्रेस का खुलासा – इन्हीं शहरों में अमृत के टेंडर के अलावा अन्य टेंडर, जिनमें समान नेचर के कार्य हैं फिर भी उनकी दरें टेंडर लागत या उससे कम आने के बाद भी फर्म का कर रही है, तो फिर अमृत टेंडर में हालात कैसे बदल सकते हैं। क्या गलिया सकड़ी हो गई, या ट्रेफिक बढ़ गया या फिर मिट्टी की जगह अचानक से चट्टान बन गई। ये कारण सिर्फ अमृत टेंडरों की ऊंची दरों को जस्टीफाई करने के लिए बनाए गए हैं।
8. प्रमुख शासन सचिव रजत मिश्र का कहना है कि – फायनेंस कमेटी की एप्रूव्ल या फैसला, विभाग की सर्वोच्च टेक्निकल और फायनेंसियल टीम की जांच और सिफारिश के अनुसार लिया जाता है। अमृत टेंडर में कोई अपवाद नहंी है।
जनप्रहरी एक्सप्रेस का खुलासा – फायनेंस कमेटी की इन्हीं बैठकों में अमृत टेंडरों में अलग-अलग शहर में पाइप, वाल्व और अन्य आइटमों की दरें अलग-अलग ली गई, जबकि इन सभी आइटमों की पीएचईडी बीएसआर तो एक ही थी, फिर फायनेंस कमेटी ने इस खेल को नजरअंदाज क्यों किया। पीएचईडी की बीएसआर होने के बाद भी पाइप, वाल्व जैसे आइटमों की नॉन बीएसआर में दुगनी दरें लगाई गई और फायनेंस कमेटी को ये खेल भी नजर नहंी आया। जलदाय विभाग में अमृत टेंडरों का घोटाला ठेका कंपनियों ने इंजीनियर्स और अधिकारियों के अलावा स्टेण्डिंग नेगोसिएशन कमेटी और फायनेंस कमेटी के लोगों को शामिल करके ही खेला है, और यह जलदाय विभाग का एक संस्थागत भ्रष्टाचार है।
ठेका कंपनियों ने मिलीभगत से किया अमृत का घोटाला
दअरसल वर्ष 2016 में अमृत टेंडरों की दरें निविदा लागत से काफी कम आ रही थी। जीएसटी लगने के बाद ठेका कंपनियों ने आपस में मिलीभगत कर अमृत टेंडर्स को पूल करने का प्लान किया। पूलिंग के इस खेल में 8 फर्म शामिल हुई और मैसर्स डारा कंस्ट्रक्शन जोधपुर, मैसर्स देवेन्द्र कंस्ट्रक्शन जोधपुर, मैसर्स एस.बी. एंटरप्राइजेज जोधपुर और लाहौटी बिल्डकॉन जयपुर ने लीड किया। राजनीतिक प्रभाव और जलदाय विभाग का दबाव बनाकर कर अन्य फर्मों को टेंडर से दूर रहने के लिए धमकाया गया। इसके बाद अमृत टेंडर की दरों को 28 से 38 प्रतिशत ज्यादा रखा गया। दो बार टेंडर होने के बाद विभागीय अधिकारियों का खेल शुरू हुआ और अमृत ऊंची दरों को जस्टीफाई ठहराने के लिए अमृत टेंडर से जुड़े सारे अधिकारी एक हो गए। पीएचईडी बीएसआर को साइड में रखकर मनमर्जी की दरों से टेडर तैयार किए गए और ठेका फर्मों से कोट करवाकर उन दरों को फायनेंस कमेटी की बैठक में जस्टीफाई करवा लिया गया।
अमृत टेंडरों में 20 प्रतिशत ऊंची दरों के पीछे ये था खेल
जलदाय विभाग में डीआई पाइपों की बीएसआर होने के बाद भी अमृत के टेंडरों में ऊंची दरें देने के लिए विभाग के अधिकारियों ने डीआई पाइपों की नॉन बीएसआर आइटमों में दुगनी दरें ली गई। जब विभाग की सभी पेयजल योजनाओं में डीआई पाइपों की रेट विभाग की बीएसआर से ली जा रही है, तो अमृत में क्यों नहीं ली गई। जलदाय विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र भले ही इसका जवाब नहीं दे पाएं, लेकिन जनप्रहरी एक्सप्रेस की टीम ने जब इस पूरे मामले की पड़ताल की तो बड़ा घोटाला सामने आया। विभाग के इंजीनियर्स ने डीआई पाइपों की रेट विभागीय बीएसआर से लेने की बजाए मनमर्जी से ले ली, जो कि दुगनी के बराबर है। अमृत टेंडरों में डीआई पाइपों की रेट विभाग के इंजीनियर्स ने कहां से ली ये तो वे ही जाने, लेकिन पाइपों की ज्यादा रेट देने में 70 करोड़ का घोटाला हुआ है। इसी प्रकार डीआई सिल्यूश वॉल्व की पीएचईडी में बीएसआर बनीं हुई है, लेकिन अमृत टेंडरों में डीआई सिल्यूश वॉल्व रेट बीएसआर से करीब तीन गुना ज्यादा ली गई। कनेक्शन एएमआर मीटर की रेट भी दुगनी ली गई। हाउस कनेक्शन की रेट भी दुगनी से ज्यादा दी गई। बीएफएम इंस्टालेशन की विभाग की बीएसआर और अमृत टेंडरों में ली गई दरों में पांच गुना का अंतर है। विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र से लेकर अधिकारी और इंजीनियर्स भले की अमृत टेंडर की ऊंची दरों को लेकर लाख अपनी सफाई दे, लेकिन हकीकत ये ही है कि अमृत टेंडरों में मिलीभगत से करोड़ों का घोटाला हुआ है और इसमें सबकी हिस्सेदारी रही है।
अधिशाषी अभियंताओं ने नहीं किए हस्ताक्षर
अगर अमृत टेंडरों की दरें ज्यादा नहीं है, तो कई शहरों के रेट जस्टिफिकेशन पर संबंधित खण्ड अधिशाषी अभियंताओं के हस्ताक्षर क्यों नहीं हैं। राजधानी जयपुर की ही बात करें तो शहर के कई खण्ड कार्यालयों में बल्क फ्लो मीटर रिपेयर करने, उपभोक्ता मीटर लगाने और स्काड़ा जैसे काम होने हैं, लेकिन इनकी दरें दुगनी से भी ज्यादा होने के कारण उन खण्ड कार्यालयों के इंजीनियर्स ने इन पर साइन नहीं किए। अधिशाषी अभियंताओं ने साइन नहीं किए तो मुख्य अभियंता शहरी ने संबंधित अधीक्षण अभियंताओं पर दबाव बनवाकर साइन करवा लिए। जब अमृत की ऊंची दरों पर खुद विभाग के ही कई इंजीनियर्स ने सवाल खड़े कर दिए, तो फिर आलाधिकारी क्यों घोटाले को सही ठहराने में जुटे हैं।