नई दिल्ली। अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत ने सोमवार को एक लंबी छलांग लगाई। आंध्रप्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से भारत के वैज्ञानिकों ने जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रक्षेपण किया। वैज्ञानिकों ने इसे मास्टर रॉकेट नाम दिया। इस रॉकेट के प्रक्षेपण में क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग किया गया। इसरो के सफल अभियान पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के वैज्ञानिकों को बधाई दी। वहीं राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने वैज्ञानिकों व देशवासियों को बधाई देते हुए कहा कि इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर देश को गर्व है। बता दें करीब 15 वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद 300 करोड़ की लागत से जीएसएलवी मार्क-3 का निर्माण किया गया है।
यह रॉकेट 13 मंजिला उंची इमारत के बराबर है। साथ ही 4 टन वजनी सेटेलाइट को अपने साथ ले जाने में सक्षम है। हाल की स्थिति को देखे तो 2.3 टन वजन के संचार सेटेलाइट को लांच करने के लिए भारत को लेकर भारत को बाहरी देश्खों पर निर्भर रहना पड़ता है। जीएसएलवी मार्क-3 अपने साथ करीब 4 टन वजनी जीसैट-19 को अपने साथ ले जाएगा। इस सफल प्रक्षेपण के बाद भारत अब खुद पर ही निर्भर हो गया है। वहीं अब व्यावसायिक इस्तेमाल भी हो सकेगा। इसरो के पूर्व अध्यक्ष डा. के कस्तुरीरंगन ने कहा कि जियो सिंक्रोनस मिशन को सफल बनाने की दिशा में भारत का यह पहला कदम है। इस सफल अभियान के बाद अब इसरो ने स्पेस में मानव को भेजने के लिए केन्द्र से 12,500 करोड़ रुपए की मदद मांगी है। इसरो की इस मांग को यदि केन्द्र सरकार स्वीकार कर लेती है तो आगामी 7 वर्ष में इसरो मानव को अंतरिक्ष रख सकेगा। अब तक रुस, अमेरिका व चीन ही अंतरिक्ष में मानव को भेज चुके हैं।
सबसे पहले रुसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन वोस्टोक ने अंतरिक्ष में कदम रखा था। जबकि भारत के रमेश शर्मा वर्ष 1984 में इसरो व रुस के संयुक्त मिशन के तहत स्पेस में गए थे। इसरो ने जीएसएलवी मार्क-3 की तैयारी वर्ष 2000 के दशक से ही करना शुरू कर दी थी। इसका प्रक्षेपण वर्ष 2009-10 में होना प्रस्तावित था। लेकिन यह टलता रहा। तीन रॉकेट स्टेज वाले इस रॉकेट का दिसंबर 2014 में क्रायोजेनिक इंजन के साथ पहला सब ऑर्बिटल परीक्षण हुआ। बाद में इसके कई तकनीकी परीक्षण हुए। क्रायोजेनिक इंजन का सबसे लंबा परीक्षण 640 सेकेंड तक 18 फरवरी को पूरा हुआ। जिसमें रॉकेट की क्षमताओं को परखा गया। जानकारों के अनुसार इस सफल प्रक्षेपण के बाद अब भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान में दबदबा बढ़ेगा। वहीं भारत अंतरिक्ष में मानव जाति को भेजने में कामयाब हो सकेगा।
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