Jaipur Literature Festival, child labor
Jaipur Literature Festival, child labor

जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल 2019 में बाल अधिकारों पर काम करने वाले नेताओं और लेखकों ने बाल मजदूरी के उन्मूलन के लिए स्थायी समाधानों पर डाली रोशनी
जयपुर. जयपुर में बाल मजदूरी को समाप्त करने के प्रयास में हाल ही में लॉन्च की गई पहल चाइल्ड लेबर फ्री जयपुर (CLFJ) ने प्रतिश्ठित जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल के दौरान एक पैनल चर्चा का आयो जन किया, जिसमें जयपुर शहर में चल रही वर्कशॉप्स एवं घरेलू युनिट्स में काम करने वाले बाल मजदूरों को बचाने और इस मुद्दे पर जागरुकता फैलाने पर ज़ोर दिया गया। चाइल्ड लेबर फ्री जयपुर ;ब्स्थ्श्रद्ध विभिन्न हितधारकों के बीच एक सामुहिक साझेदारी है जिसे राज्य एवं ज़िला सरकारों, कारोबारों, सिविल सोसाइटी संगठनों तथा स्थानीय समुदायों का समर्थन प्राप्त है। इस पहल के माध्यम से जयपुर को बाल मजदूरी से मुक्त बनाकर एक ऐसे मॉडल शहर के रूप में विकसित करने का प्रयास कियाा रहा हैजहां बच्चे पूरी तरह से सुरक्षित हों तथा यह शहर अन्तर्राश्ट्रीय रीटेलरों एवं भारतीय कंपनियों के लिए कारोबार हेतु दुनिया का सबसे सुरक्षित स्थान बन जाए।

पैनल चर्चा में बाल अधिकारों पर काम करने वाले नेताओं और लेखकों ने हिस्सा लिया जैसे हर्श मंदेर, डायरेक्टर, सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज़; श्योराज सिंह बेचैन, जाने माने दलित लेखक एवं प्रोफेसर, दिल्ली युनिवर्सिटी; रमेश पालीवाल, संस्थापक सदस्य एवं सचिव, टाबर; मिस पारो आनंद, बच्चों की पुस्तकों के जाने-माने लेखक एवं हैड ऑफ लिट्रेचर इन एक्शन; तथा संजय रॉय, संस्थापक, सलाम बालक ट्रस्ट एवं प्रबंध निदेशक, टीमवर्क आटर््स। इन सभी दिग्गजों ने समाज में बाल मजदूरी की समस्या को समाप्त करने के लिए स्थायी समाधानों पर रोशनी डाली।

सत्र का संचालन करते हुए हिशम मुंदोल, कार्यकारी निदेशक, इण्डिया एण्ड चाइल्ड प्रोटेक्शन, चिल्ड्रन्स इन्वेस्टमेन्ट फंड फाउन्डेशन ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बच्चों से मजदूरी कराना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है। उन्होंने अन्तर्राश्ट्रीय लेबर ऑफिस द्वारा किए गए एक अध्ययन पर बात करते हुए कहा कि बाल मजदूरी के फायदों की तुलना में इसके कारण समाज को पहुंचने वाले नुकसान की लागत सात गुना अधिक होती है। एक अनुमान के मुताबिक यह लागत विकासशील एवं बदलावपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में 5.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, जहां ज़्यादातर बाल मजदूर पाए जाते हैं।

पैनलिस्ट्स ने इस बात पर सहमति जताई कि गरीबी और बाल मजदूरी के बीच सीधा संबंध है, लेकिन इसका इस्तेमाल बाल मजदूरी को तर्कसंगत बनाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। अपने अनुभवों के आधार पर प्रतिभागियों ने बाल मजदूरी और सड़कों से बचाए गए बच्चों की चुनौतियों पर भी रोशनी डाली। उन्होंने इस विशय पर सामाजिक अवधारणाओं को बदलने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें समाज को इस बारे में जागरुक बनाना होगा कि सभी बच्चों को अपना भविश्य चुनने का अधिकार मिलना चाहिए।
प्रवक्ताओं ने कहा कि इस समस्या को प्रभावी रूप से हल करने के लिए आम जनता सहित सभी हितधारकों का सहयोग अपेक्षित है।
अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए मिस पारो आनंद, हैड ऑफ लिट्रचर इन एक्शन ने कहा, ‘‘हमें बच्चों के इस दर्द को समझना होगा। हमें बच्चों की आवाज़ को सुनना होगा। ये सभी बच्चे हमारे अपने बच्चे हैं।’’

हिशम मुंदोल, कार्यकारी निदेशक, इण्डिया एण्ड चाइल्ड प्रोटेक्शन, चिल्ड्रन्स इन्वेस्टमेन्ट फंड फाउन्डेशन ने कहा, ‘‘जयपुर में कुछ खास हो रहा है। चाइल्ड लेबर फ्री जयपुर ;ब्स्थ्श्रद्ध लोगों को बताने का प्रयास कर रहा है कि किसी का कल्याण करने से कारोबारों का फायदा होगा। क्या यह बच्चों के लिए उम्मीद की नई किरण है, जयपुर को उम्मीद की नई किरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।’’
रमेश पालीवाल, टाबर ने कहा ‘‘हम बाल मजदूरी से उबरे बच्चों की मदद कर रहे हैं। वे डरे हुए हैं। यह डर स्वाभाविक है। वे अंदर से टूट चुके हैं। हम अलग अलग तरीकों से उन्हें इस डर से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं ताकि वे खुशी और उदासी महसूस कर सकतें। हम उन्हें अतीत से बाहर निकाल एक अच्छे वर्तमान में लाना चाहते हैं।’’
अंत में प्रतिभागियों ने कहा कि सरकार, कारोबारों, सिविल सोसाइटी संग्ठनों एवं स्थानीय समुदायों के सहयोग से चाइल्ड लेबर फ्री जयपुर पहल एक लम्बी दूरी तय करेगी और जयपुर को उस रूप में स्थापित करेगी जिसका सपना जयपुर के राजा जय सिंह ने शहर की नींव रखते हुए देखा था।

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