नयी दिल्ली : महज चार फुट और दो इंच लंबा, लंगड़ा कर चलने वाला जैश ए मोहम्मद का कमांडर नूर मोहम्मद तांत्रे भीड़ में अलग नजर आता था, उसकी मानसिक तीक्ष्णता ने इस शारीरिक कमी की बहुत अच्छी तरह भरपाई की। कश्मीर में आज उसे मार गिराया गया। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। माना जाता है कि कई आतंकी हमलों के पीछे उसका ही दिमाग था। इसमें तीन अक्तूबर को श्रीनगर हवाईअड्डे के बाहर बीएसएफ के शिविर पर हुआ हमला और 21 सितंबर को त्राल में राज्य के मंत्री नईम अख्तर के काफिले पर हुए हमले के पीछे भी उसका ही हाथ बताया जाता है । दिल्ली की एक विशेष अदालत ने उसे ‘‘ मौत का सौदागर ’’ कहा था।
उसका अंत 25 दिसंबर और 26 दिसंबर की दरमियान रात दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के साम्बूरा में हुआ। यह जगह त्राल स्थित उसके घर से अधिक दूर नहीं है। अधिकारियों ने कहा कि जैश-ए-मोहम्मद के डिवीजनल कमांडर 47 वर्षीय तांत्रे के मारे जाने से आतंकवादी संगठन को बड़ा झटका लगा है। वह पैरोल पर बाहर था। एक अधिकारी ने बताया, ‘‘ पहले कई बार वह हमारे हाथ आते-आते रह गया था और मुझे भरोसा था कि जल्द ही उसकी किस्मत उसका साथ देना बंद करेगी। उसका नाटा कद उसकी सबसे बड़ी खामी थी। हर गुजरते दिन के साथ तलाश का दायरा सिमटता गया। ’’ तांत्रे लंगड़ाता था, ऐसे में भीड़ में गुम हो जाना उसके लिए मुश्किल था।
इस वर्ष अप्रैल में त्राल में हुई आरिपाल मुठभेड़ में जैश के तीन आतंकी मारे गए थे और तांत्रे बच निकला था । लेकिन तभी से वह जम्मू-कश्मीर पुलिस की विशेष इकाई की रडार पर था। एक अधिकारी ने बताया कि उसके पकड़ने के प्रयास तब फलीभूत होते दिखे जब वह भाग नहीं पाया और एक घर में फंस गया । उसके दो साथी जो ऐसा माना जाता है कि विदेशी आतंकी हैं, वह भागने में सफल रहे। तांत्रे आठ वर्षों तक तिहाड़ जेल में बंद रहा। वर्ष 2015 में पेरौल पर रिहा होने के बाद उसने गतिविधियां तेज कर दी। संसद पर वर्ष 2001 में हुए हमले के मास्टरमाइंड जैश के कमांडर गाजी बाबा का तांत्रे एक करीबी सहयोगी था। उसे 31 अगस्त 2003 में दिल्ली के सदर बाजार से गिरफ्तार किया गया था।