नई दिल्ली। बैसाखी का पर्व यूं तो देश में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। फिर भी आज ही के दिन 13 अपे्रल 1919 को अमृतसर के जलियावाला बाग में पंजाब के जनरल डायर ने जो कहर बैसाखी पर आए लोगों पर ढहाया और निहत्थे लोगों पर बंदूकों से गोलियां चलाकर निर्मम जनसंहार किया। उसे देशवासी नहीं भूले। यह दिन भारतीय इतिहास के काले दिनों में एक था। जलियावाला बाग में बैठे हजारों निहत्थे मासूमों पर जनरल डायर ने एकाएक अंधाधूंध गोलिया बरसाई। अचानक गोलियां चली तो लोगों को भागने के लिए रास्ता नहीं मिला। जान बचाने के लिए लोग कुंए में कूदे, गोलियों से छलनी हुए। इस घटना में करीब दो हजार लोग मारे गए। करीब 10 मिनट में 1650 राउंड फायर करा दिए गए। ब्रिटिश सरकार ने घटना की जांच के लिए हंटर कमेटी का गठन किया। जहां लाहौर में 19 नंवबर 1919 को सुनवाई के दौरान डायर ने सर चिमनलाल सीतलवाड़ के सवालों का चौंकाने वाले जवाब दिया। इन जवाबों को खुद सीतलवाड़ ने अपनी आत्मकथा रिकलेक्शनंस एंड रिफ्लेक्शंस में जिक्र कहा। बताया कि डायर ने कहा कि वो सजा देने के लिए गया था। मौका मिलता तो न केवल अमृतसर वरन पूरे पंजाब में भारतीयों का हौंसला तोडऩे के लिए ऐसा ही कुछ करता। जलियावाला बाग में हथियारबंद गाडिय़ां नहीं पहुंच पाई। अगर गाडिय़ां आ जाती तो वो मासूमों पर मशीनगन से फायर कराता। इस नरसंहार का उस पर प्रभाव नहीं पड़ा, उसने कहा कि अगर ओर गोलियां होतीं तो देर तक फायरिंग करता, ब्रिटिश साम्राज्य के दूरगामी प्रभाव के लिए यह नरसंहार आवश्यक था। इस घटना के बाद देश में व्यापक विरोध ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देखने को मिला। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने नाइटहुड की उपाधि त्यागी तो व्यापक आंदोलन उठ खड़ा हुआ। देश के हर शख्स और बच्चे के मन में अंग्रेजी दास्तां को उखाड़ फैंकने की आग मन में सुलग उठी।
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