Radha song, poem collection,Dr.parishit singh,
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जयपुर। काव्या फाउण्डेशन जयपुर के तत्वावधान में सोमवार को यहां रवीन्द्र रंगमंच के ओपन एयर थियेटर पर देश के सुप्रसिद्ध कवियों डाॅ. मकरन्द परांजपे, डाॅ. परीक्षित सिंह, डाॅ. मोहम्मद हसन और सुश्री अरवा कुतबुद्दीन ने अपनी अंग्रेजी कविताओं का पाठ किया। प्रारम्भ में जस्टिस पानाचंद जैन, जस्टिस विनोद शंकर दवे, डाॅ. सत्यनारायण सिंह, डाॅ. परीक्षित सिंह ने दीप प्रज्ज्वलित कर ‘काव्या‘ की अगे्रंजी ‘पोएट्री रीडिंग‘ का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर वीर सक्सेना और लोकेश साहिल ने डाॅ. सिंह की एक-एक महत्वपूर्ण कविता का पाठ किया।

प्रारम्भ में डाॅ. परीक्षित के अंग्रेजी कविता संग्रह ‘राधा‘ज गीत‘ और सुश्री लावण्या कविता संग्रह का लोकार्पण किया गया। इसके बाद हुए पाठ के पश्चात कविता पर सारगर्भित चर्चा हुई। डाॅ. परीक्षित सिंह ने कहा कि भारतीय साहित्य में कविता का अस्तित्व पुरातन काल से है। कविता सर्वकालिक होती है और पीढ़ी दर पीढ़ी इसका महत्व देखा जा सकता है। देश का समृद्ध साहित्य कविता के रूप में मिलता है जो जटिल भी हो सकता है और सरल भी किन्तु सरलता अच्छी कविता का पैमाना नहीं है। शेक्सपियर, कालिदास, हूमर, मिल्टन, दान्ते, गायेटे को हमने नहीं पढ़ा या नहीं समझा तो यह हमारी कमजोरी है। उन्होंने यह भी कहा कि अंग्रेजी में होने से कोई कविता इलीट वर्ग के लिए नहीं हो जाती। अगर इनमें धरातल है, भारतीयता है तो फिर उसे इलीट नहीं कहा जा सकता। हमें राष्ट्रीय भाषा में भी लिखना चाहिए। कठिन से कठिन कविता को सरल बना सकें तो उसमें सार्थकता है। हमारी संस्कृति चहंु ओर फैलेगी। भाषा को तराशने की जरूरत है। कविता को लोकप्रिय बनाने के साथ उसे उच्चतम कोटि का बनाए रख सके तभी अच्छी कविता होगी।
सुश्री अरवा कुतबुद्दीन ने अपनी कविताएं सुनाते हुए कहा कि कविता में भाषा, जाति, लिंग का भेद नहीं होता जो कविता हृदय को छूती है और गहरा प्रभाव डालती है वही अच्छी कविता होती है।

डाॅ. परांजपे ने ‘काव्या‘ फाउण्डेशन द्वारा वरिष्ठ कवियों के संग उदीयमान कवियों को मंच प्रदान करने की सराहना करते हुए अपनी कविता ‘होली‘, ‘सुबह के रंग‘ ‘एण्ड आॅफ कलर‘, मिड-डे-सन‘ एवं अन्य कविताएं प्रस्तुत की जिनमें आध्यात्मिकता का पुट दिखाई दिया। डाॅ. परांजपे ने कहा कि सोशियल मीडिया और कुछ मंचों पर कविता का आज जो स्वरूप दिखाई देता है उससे कविता को क्षति पहुंच रही है किन्तु ‘काव्या‘ जैसे मंच नई आशा जगाते हैं। उन्होंने कहा कि कविता और अनुवाद की अपनी एक भाषा होती है जो भाषाओं के संबंधों को सुदृढ़ बनाती है। उनमें एक आलिंगन का सा अनुभव होता है।

कवि प्रो. मोहम्मद हसन ने जल, समुद्र और भौगोलिक संदर्भों की अपनी कई कविताएं सुनाई और कहा कि एक कविता संसार को समेट सकती है। कविता स्वांतः सुखाय के लिए लिखी जाती है लेकिन उनमें विश्व को व्यापक अर्थों में देखा जा सकता है। गोपालदास ‘नीरज‘ की कविता पोपुलर पोएट्री थी। सामुदायिक कविता को कमजोर नहीं आंका जा कसता।
काव्या के कविता सत्र में प्रदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकारों के साथ न्यायिक सेवा एवं प्रशासनिक सेवा के महानुभाव तथा गणमान्यजन मौजूद थे।

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