जयपुर। देश में आज (9 फरवरी) भगवान विश्वकर्मा की जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। भगवान विश्वकर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक व अद्वितीय शिल्पी माना जाता है। यही वजह है कि इस दिन हस्तशिल्प के काम से जुड़े लोग विशेषकर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, मोटर वाहनों के शोरुम, सर्विस सेंटर, लौहे की दुकान, कम्प्यूटर सेंटर, हार्डवेयर दुकानों सहित अन्य प्रतिष्ठानों में भगवान विश्वकर्मा की विधिविधान से पूजा-अर्चना की गई। साथ ही औजारों, मशीनों की साफ-सफाई कर पूजन किया गया। वहीं भगवान विश्वकर्मा के भक्तों ने कल-कारखानों में अवकाश रखकर दिनभर उनका ध्यान किया। अनेक स्थानों पर तो प्रभु की झांकियों से सजी शोभायात्रा निकाली गई। यूं तो भगवान विश्वकर्मा को अद्वितीय शिल्पी माना जाता है। जिन्होंने अपने ज्ञान और विवेक के बल पर इंद्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी, पुष्पक विमान, कर्ण का कुण्डल, विष्णु का चक्र, शंकर का त्रिशुल, यमराज का कालदण्ड सहित देवों के भवनों का निर्माण कराया। वे अपने ज्ञान में इस तरह पारंगत थे कि जल पर चल सकने योग्य खडऊ का निर्माण भी वे कर सकते थे। आखिर भगवान विश्वकर्मा का जन्म कैसे हुआ और उन्होंने इस सृष्टि की रचना कैसे की।
वास्तु के पुत्र थे विश्वकर्मा
कहा जाता है कि सृष्टि की रचना के प्रारंभ में भगवान विष्णु क्षीर सागर में प्रकट हुए। विष्णु की नाभि कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा का पुत्र हुआ धर्म, जिसका विवाह वस्तु नामक स्त्री से हुआ। उनसे सात पुत्रों का जन्म हुआ। उनका सातवां पुत्र जिसका नाम वास्तु रखा गया वह शिल्पकला में बड़ा ही पारगंत था। इसी वास्तु से विश्वकर्मा नाम से पुत्र का जन्म हुआ। जिसने वास्तुकला में महारथ हासिल कर एक मिशाल कायम की। अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही वे मानवों और देवगणों में पूजनीय हैं। धर्मशास्त्रों और गं्रथों में विश्वकर्मा के 5 स्वरुपों और अवतारों का वर्णन मिलता है। विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा, सुधन्वा विश्वकर्मा और भृंगुवंशी विश्वकर्मा। भगवान विश्वकर्मा के सबसे बड़े पुत्रों में मनु ऋषि थे। जिनका विवाह अंगिरा ऋषि की कन्या कंचना से हुआ। इन्होंने मानव सृष्टि का निर्माण किया। इनके कुल में अग्निगर्भ, सर्वतोमुख, ब्रम्ह आदि ऋषि हुए। विश्वकर्मा को गृहस्थी के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माता और प्रवत्र्तक माना गया है। विश्वकर्मा को देव बढ़ई कहा गया। जबकि स्कंदपुरा में इन्हें देवायतनों के सृष्टा की संज्ञा दी गई। विश्वकर्मा के विचारों और उनके कार्यों का जीवंत ग्रंथ विश्वकर्मा प्रकाश है।
जीवनसंगिनी के साथ करें विश्वकर्मा की पूजा
भगवान की पूजा जीवन को सफल बनाती है तो व्यापार में दिन दुगनी रात चौगुनी वृद्धि करने वाली साबित होती है। प्रात: स्नान आदि से निवृत्त होकर व्यक्ति को जीवन संगिनी साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करनी चाहिए। पत्नी सहित यज्ञ के लिए पूजा स्थान पर बैंठे। हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर भगवान विश्वकर्मा का नाम लेकर घर में अक्षत छिड़कना चाहिए। इस दौरान दीप, धूप, पुष्प, गंध, सुपारी का प्रयोग करना चाहिए। कलश में जल व विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। इसी तरह व्यापार, कारखाने व प्रतिष्ठानों पर सभी औजारों को तिलक लगा पूजा करनी चाहिए। बाद में प्रभु का प्रसाद सभी में वितरित करना चाहिए। भगवान विश्वकर्मा को प्रसन्न कर व्यक्ति व्यवसाय में वृद्धि प्राप्त कर करता है तो उसकी इच्छित मनोकामना पूरी होती है।

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