नयी दिल्ली। कथित ‘लव जिहाद’ के मामले में केरल में एक मुस्लिम युवक से विवाह करने से पहले इस्लाम धर्म कबूल करने वाली युवती के पिता ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया है कि उसकी पुत्री से खुले न्यायालय की बजाये बंद कमरे में बातचीत की जाये। इस महिला के पिता अशोकन के एम ने इस मामले के सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील होने का हवाला देते हुये अपने आवेदन में बंद कमरे में उससे बातचीत करने का अनुरोध किया है। पिता ने आवेदन में कहा है कि कट्टरवादी तत्व उनकी पुत्री और परिवार की सुरक्षा और निजता को खतरा पैदा कर सकते हैं। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने 30 अक्तूबर को अशोकन को निर्देश दिया था कि इस युवती को खुले न्यायालय में बातचीत के लिये 27 नवंबर को पेश किया जाये। शीर्ष अदालत ने 16 अगस्त को कहा था कि इस मामले में अंतिम निर्णय करने से पहले महिला से बंद कमरे में बात की जायेगी। परंतु बाद में इस आदेश में सुधार कर दिया गया। इसमें कहा गया, ‘‘हम यह जोड रहे हैं कि यह न्यायालय बंद कमरे की बजाये खुले न्यायालय में बात करेगा’’ अशोकन ने अपने आवेदन में कहा है कि चूंकि यह मामला पक्षकारों की सुरक्षा सहित सांप्रदायिक रूप में संवेदनशील मुद्दों से संबंधित है, इसलिए पूरी संजीदगी से यह महसूस किया जा रहा है कि प्रतिवादी और उसके परिवार की सुरक्षा और निजता के हित में बंद कमरे में बातचीत करना उचित होगा ।
आवेदन में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाले शीर्ष अदालत के फैसले का भी हवाला देते हुये अनुरोध किया गया है कि इस युवती की ही नहीं बल्कि उसके परिवार की निजता पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी न्यायालय को विचार करना चाहिए। आवेदन में कहा गया है कि केरल उच्च न्यायालय ने महिला को उसके माता पिता के पास भेजने के साथ ही कट्टरवादी तत्वों की धमकी के मद्देनजर उसके परिवार की चौबीस घंटे सुरक्षा करने का भी निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने पहले टिप्पणी की थी कि वयस्क की स्वेच्छा से विवाह के लिये सहमति के बारे में जानकारी प्राप्त करनी होगी। इस संबंध में राष्ट्रीय जांच एजेन्सी का कहना था कि सिखाया पढाया गया व्यक्ति विवाह के लिये स्वेच्छा से सहमति देने में असमर्थ होता है।
राष्ट्रीय जांय एजेन्सी ने ‘मनोवैज्ञानिक अपहरण’ का जिक्र करते हुये कहा था कि सिखाया पढाया गया व्यक्ति स्वेच्छा से सहमति देने में असमर्थ हो सकता है। उसने भी कहा था कि केरल में एक सुनियोजित तंत्र लोगों को सिखाने-पढाने और कट्टरता की गतिविधियों में संलिप्त है और इस तरह के 89 मामले सामने आ चुके हैं। जांच एजेन्सी ने दावा किया है कि यह एक ऐसा मामला है जिसमे युवती को सिखाया पढाया गया और इसलिए न्यायालय पितृ सत्ता का इस्तेमाल कर सकती है भले ही महिला वयस्क ही हो। इस महिला के पिता के वकील ने पहले दावा किया था कि उसकी बेटी का कथित पति शफीन जहां एक कट्टर व्यक्ति है ओर उसके आईएसआईएस में भर्ती कराने वाले लोगों से संबंध हैं। इस हिन्दू महिला ने इस्लाम धर्म कबूल करने के बाद जहां से शादी कर ली थी। आरोप है कि इस महिला को सीरिया में इस्लामिक स्टेट मिशन द्वारा भर्ती किया गया था और जहां तो केवल एक गुर्गा ही है। जहां ने धर्म परिवर्तन के बाद हिन्दू युवती के उसके साथ विवाह के विवादास्पद मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेन्सी को सौंपने के शीर्ष अदालत का 16 अगस्त का आदेश वापस लेने का अनुरोध करते हुये 20 सितंबर को न्यायालय में एक आवेदन दायर किया था।