टोंक। साहित्यकारों की तीर्थ स्थली के रुप में विख्यात मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी फारसी शोध संस्थान को केंद्रीय संस्थान का दर्जा दिलाएं जाने के लिए राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजे गए हैं। इससे अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान रखने वाली इस शोध संस्थान के विकास एवं महत्व को बढावा मिल सकेगा। उल्लेखनीय है कि 4 दिसंबर 1978 को राजस्थान सरकार के एक ऐतिहािसक निर्णय द्वारा इस संस्थान की स्थापना की गई थी। कई जगह संचालित होने के बाद भव्य इमारत में पहुंची इस शोध संस्थान में अब तक देश विदेश के कई विद्वान शोध कार्य कर चुके हैं। साथ ही अमेरिका,ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, मिस्र, इजराईल, आस्ट्रेलिया, ईरान सहित करीब 50 देशों के शोधकर्ता एवं पर्यटक यहां पहुंच चुके हैं। साथ ही इस संस्थान को पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानीजेल सिंह, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, कई राज्यों के मंत्रियों, राज्यपालों, न्यायिक एवं अन्य आईएएस, आरएएस सहित लाखों लोग देखकर अभिभूत हो चुके हैं। संस्थान को पटना की खुदा बख्श लाइब्रेरि, हैदराबाद की सालार जंग म्यूजियम, रामपुर की रजा लाइब्रेरी की भांति केंद्रीय संस्थान का दर्जा दिलाकर विकास किए जाने का प्रस्ताव रखा गया है। शोध संस्थान में गत वर्ष उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी अवलोकन पहुंचे, उन्होंने यहां के दुर्लभ ग्रंथ एवं यहां की कला संग्रह को देखकर वह अभिभूत हो गए तथा उन्होंने इसके विकास के लिए केंद्रीय संस्थान बनाए जाने तथा अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके महत्व को देखते हुए इसके विकास के लिए आवश्यक प्रस्ताव तैयार करने पर भी जोर दिया था। उसके बाद कलेक्टर डा. टीना कुमार ने इसको केंद्रीय संस्थान बनाए जाने के लिए प्रिंसिपल सेक्ट्री टूरिज्म, आर्ट एंड कल्चर डिपार्टमेंट राजस्थान जयपुर को प्रस्ताव भेजे हैं। एडीएम एवं शोध संस्थान के कार्यवाहक निदेशक एनके स्वर्णखार ने बताया कि इस संस्थान को केंद्रीय संस्थान बनाए जाने की स्थिति में संस्थान और अधिक उन्नति की ओर अग्रसर हो सकेगा एवं इसकी सभी स्कीमें अधिक प्रभावशाली ढंग से संचालित हो सकेंगी।
क्या होगा फायदा
संस्थान को केंद्रीय संस्थान का दर्जा मिलने के बाद देश की इस प्रकार की तीन सर्वश्रेष्ठ संस्थान की भांति इसका विकास हो सकेगा। साथ ही बजट अधिक मिलने, स्टाफ की कमी दूर होने के साथ ही कई प्रकार की समस्याएं हल हो सकेंगी। साथ ही इसको अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर ओर अधिक दमदार तरीके से देखा जा सकेगा।
क्या है संस्थान का हाल
वर्तमान में संस्थान का हाल ये हैँ कि यहां पर निदेशक का पद सहित कई महत्वपूर्ण पद रिक्त होने के कारण कई कार्य प्रभावित हो रहे हैं। साथ ही संस्थान को जिस गति से विकास होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है।
संस्थान में विभिन्न विषयों पर आधािरत अमूल्य संग्रह है, जिनमें मुख्य रुप से कुरआन, हदीस, विधि शास्त्र, खगोल शास्त्र, साहित्य, इतिहास, गणित, आध्यात्मिक विज्ञान, औषध् विज्ञान, शास्त्रीय संगीत, सूफीज्म आदि के ग्रंथों के साथ ही कई ग्रंथ ऐसे है जो दुनियां में कहीं नहीं है। इससे भारतीय सभ्यता का दर्शन होने के साथ ही कौमी एकता आदि की भी झलक नजर आती है।
इस तरह चला इस विरासत का कारवां
टोंक के तीसरे नवाब मोहम्मद अली खां ने बनारस में अदीबों से पुस्तकें लिखवाने का कार्य करवाया। नवाब साहब ने पश्चिम एशिया के मुल्कों, ईरान, ईराक, मि,ि अरब सल्तनतों, देश के विभिन्न शहरों से समय समय पर विद्वानों को बुलवाया और किताबों, धार्मिक ऐतिहासिक पुस्तकों के लेखन एवं अनुवाद करवाएं तथा कई पुस्तकों को संग्रहित किया। उस संग्रह को उनके पुत्र अ. रहीम खां टोंक लाए। उसके बाद 4 दिसंबर 1978को राज्य सरकार के निर्णयानुसार अरबी फारसी शोध संस्थान की स्थापना हुई। वहां उक्त संग्रह आदि रखी गई। इसकी स्थापना में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरुसिंह शेखावत व संस्थापक निदेशक साहबजादा शौकत अली खां का अहम रोल रहा।