– तीन दशक पुराना मालिकाना हक संबंधी विवाद खत्म, अब नगर निगम मेयर हाउस के लिए आरक्षित भूमि को नीलाम करके सुधार सकता है अपनी माली हालत।
जयपुर। तीन दशक से मालिकाना हक संबंधी विवादों में चल रहे राजधानी जयपुर के बनीपार्क इलाके मेयर हाउस का मसला सुलझ गया है। मामले की सुनवाई कर रही कोर्ट ने मेयर हाउस की जमीन को जयपुर नगर निगम की मानते हुए वादी का ना केवल दावा खारिज कर दिया है, बल्कि उस पर 21 हजार रुपए का हर्जाना लगाते हुए कडी टिप्पणी भी की है। मामला सवाई जयसिंह हाइवे बनीपार्क स्थित करीब एक सौ करोड़ रुपए की जयपुर नगर निगम के भूखण्ड संख्या बी-4 ( मेयर हाउस) से जुड़ा हुआ है। नगर निगम के हक में फैसला आने से अब नगर निगम मेयर हाउस के लिए आरक्षित भूमि को नीलाम करके अपनी माली हालत को सुधार सकता है और विकास कार्यों के लिए बजट मिल सकता है।
न्यायिक मजिस्टेट 4 जयपुर मेट्रो अमरजीत सिंह ने वादी अभिषेक घाटीवाला, सुनीशाह व दस अन्य की तरफ से पेश दावे को खारिज करते हुए इस जमीन का मालिकाना हक जयपुर नगर निगम का होना बताया है। वादियों ने जयपुर नगर निगम के खिलाफ 2011 में स्थायी निषेधाज्ञा का वाद कोर्ट में पेश करते हुए कहा था कि यह जमीन हमारी है और नगर निगम इस जमीन को नीलाम करने में लगी हुई है। वहीं नगर निगम के अधिवक्ता नाहर सिंह माहेश्वरी ने कोर्ट को बताया कि नगर निगम के उक्त भूखण्ड पर वादीगण का ना तो कोई कब्जा है और ना ही कोई स्वामित्व है। बिना किसी हक व अधिकार के गुलाब कंवर और ज्योति जगजीवन नगर गृह निर्माण सहकारी समिति ने षड्यंत्र रचकर सरकारी भूमि को हड़पने के लिए यह दावा पेश किया है। जबकि वादीगण ने वाद में कहा कि यह जमीन उनकी है और नगर निगम इसे नीलाम करने में लगा है। कोर्ट ने आदेश में कहा, कि पूर्व में दिए गए अदालतों के निर्णयों के अवलोकन से स्पष्ट है कि सम्पदा अधिकारी ने 3 अक्टूबर, 1988 के आदेश के विरुद्ध प्रस्तुत अपीलें 3 सितम्बर एवं 4 सितम्बर, 1990 खारिज हो चुकी है। फि र हाईकोर्ट ने भी 10-10 हजार का हर्जाना लगाते हुए इनकी याचिकाएं खारिज कर चुका है। एक मामले में तो हाईकोर्ट के जस्टिस अशोक परिहार ने तो ऐसे लोगों को भू-माफि याओं की श्रेणी में रखते हुए इन्हें अतिक्रमी मानते हुए इनके खिलाफ सख्त कार्यवाही की टिप्पणी की है। कोर्ट ने आदेश में कहा कि इस प्रकार की प्रवृत्ति व आचरण काफी गंभीर है। कोर्ट में मुकदमों का अंबार लगा है और अनगणित पीडि़त न्याय के इंतजार में अपना अमूल्य समय व धन लगाकर निर्णयों के इंतजार में है। ऐसे आचरण व प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने के लिए 21 हजार रुपए के हर्जाना के साथ वाद खारिज किया जाता है। यह हर्जाना राशि नगर निगम प्राप्त करने का हकदार है।