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जयपुर। फिल्म व टीवी इंडस्ट्री में पब्लिसिटी के लिए महिलाओं द्वारा #metoo कैम्पेन का दुरुपयोग किया जा रहा है। जिन महिलाओं ने वास्तव में उत्पीड़न का सामना किया है, उन्होंने इसके बारे में बात नहीं की है क्योंकि वे अपने पैरेंट्स व बच्चों को परेशान नहीं करना चाहती हैं। आज, बैंकों और कॉरपोरेट्स के अपने आंतरिक कानून हैं, जिसके तहत महिलाओं को किसी भी दुर्व्यवहार की एक साल के भीतर रिपोर्ट करनी होती है और यह सही तरीका है। होटल ग्रांड उनियारा में वुमन अप! समिट के अंतिम दिन ‘अनस्टॉपेबल अचिंत‘ सेशन में लोकप्रिय टीवी व फिल्म अभिनेत्री, अचिंत कौर ने यह बात कही। तीन दिवसीय यह समिट सियाही की ओर से आयोजित की गई।

अभिनेत्री, निर्माता एवं सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन की सबसे युवा सदस्य, वाणी त्रिपाठी टिक्कू के साथ बातचीत में अचिंत ने मेरठ से मुम्बई तक का अपना सफर साझा किया। लोकप्रिय धारावाहिक ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में विरोधी की भूमिका के लिए पहचाने जाने वाली अचिंत ने कहा कि इंडस्ट्री दर्शकों के मनोरंजन का ध्यान रखती है और वह सब बनाती है, जो लोग देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि मल्टीप्लेक्स व वेब सीरिज के साथ अब सिनेमा व टीवी शो की पहुंच काफी बढ़ गई है। दर्शक अब और अधिक जागरूक हो गए हैं और ऐसे में सफल कलाकार बनने के लिए सिर्फ अच्छा चेहरा होना ही काफी नहीं है, बल्कि कड़ी मेहनत और अभ्यास करने की आवश्यकता होती है।

इनके अलावा समिट के अंतिम दिन क्यूलिनरी, बॉलीवुड, हैल्थकेयर, एनजीओ जैसे विभिन्न क्षेत्रों के कई प्रतिष्ठित वक्ताओं के दिलचस्प सैशन भी आयोजित किए गए। ‘लिविंग एंड लीडिंग विद बैलेंस’ विषय पर भावना तूर का मेंटरिंग सेशन हुआ। अभिनेत्री, शाश्विता शर्मा द्वारा इस्मत चुगतई की लघु कहानी ‘छुईमुई‘ की मनमोहक स्टोरीटेलिंग परफॉर्मेंस दी गई। अंत में वुमन अप! समिट की संस्थापक, क्यूरेटर व निर्माता, मीता कपूर द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

सैशन ‘मेन एट वर्कः एशेन्शल पार्टनरशिप्स‘ –

‘मेन एट वर्कः एशेन्शल पार्टनरशिप्स‘ विषय पर आयोजित सैशन में एंटरप्रिन्योर व एक्टिविस्ट, खातून बेगम और वर्ल्ड विजन मेन केयर प्रोग्राम के अनिल वर्मा श्रोताओं से रूबरू हुए। सोश्यल एंटरप्रिन्योर, मेजर डॉ. मीता सिंह ने उनसे बातचीत की। अपने बचपन के बारे में बात करते हुए खातून बेगम ने कहा कि वे अपने स्कूल में एकमात्र मुस्लिम स्टूडेंट थीं। शादी होने के बाद वे बुर्का पहनने लगी और हमेशा घर पर ही रहीं। उनके समाज ने विवाहित महिलाओं को कभी भी अपने घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी। उनके पति के गलत निर्णयों के कारण उनके बिजनेस में गिरावट आई, जिसके बाद बाद खातून ने अपने पति से घर से बाहर निकलने और कुछ काम करने का अनुरोध किया। इसके बाद वे वर्ल्ड विजन केयर से जुड़ीं और एक स्वयं सहायता समूह बनाया और चार वर्षों में अपने ऋणों को पूरा चुकाने में सफल रही। 2500 रूपए प्रतिमाह की सैलरी में वे अपना घर चलाती थीं और बच्चों को स्कूल भी भेजती थीं। वर्तमान में खातून सुंदर रजाईयां बना रही हैं और अन्य महिलाओं को अपने स्वयं सहायता समूह में शामिल होने व रोजी-रोटी कमाने के लिए और अधिक एसएचजी बनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

राजस्थान के राजनट समुदाय की कहानियां साझा करते हुए अनिल वर्मा ने बताया कि वे अपने समुदाय की माताओं व बेटियों को देह व्यापार में काम करते देखते हुए बढ़े हुए हैं। हालांकि इसमें बहुओं को शामिल नहीं किया जाता है। अनिल वर्मा ने बताया कि पढ़ाई करने के लिए जब वे अपने गांव से बाहर निकले तो उन्होंने महिलाओं के सम्मान, धर्म व पूजा और स्वच्छता जैसे विभिन्न मूल्यों के बारे में सीखा। गांव में उन्हें छुआछूत की समस्या का भी सामना करना पड़ा था। उनके सुदाय के लोगों को दूसरी जाति के लोगों के घरों में जाने की अनुमति नहीं थी। अनिल वर्मा ने बताया कि उन्होंने अपने समुदाय के काम पर शर्म महसूस की और इसमें बदलाव लाने की दिशा में काम करने की ठानी। वर्ल्ड विजन केयर से जुड़ने के बाद उन्होंने लोगों को सैक्सुअल वेलनेस व एसटीडी के बारे में जागरूक व शिक्षित करने की दिशा में काम किया। उन्होंने अपने समुदाय के अन्य पुरुषों को भी इस दिशा में करने के लिए प्रेरित किया। अनिल इस पहल में जुड़े लोगों को कोलकाता में सैक्स वर्कर्स के लिए आयोजित नेशनल कॉन्फ्रेंस में ले गए, जिसमें शामिल होने के पश्चात समुदाय के इन लोगों ने पुरुषों का समूह, बच्चों का समूह और महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाने की इच्छा जताई। आज राजनट समुदाय के पुरुष पेंटिंग में अत्यंत कुशल काम के लिए जाने जाते हैं। समय के साथ इस समुदाय में देह व्यापार करने वाली महिलाओं की संख्या में 50 प्रतिशत की कमी आई है। पुरुषों ने भी अपनी बेटियों को इस व्यापार में धकेलने के बजाय उनकी शादी करना शुरू कर दिया है।

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