-बाल मुकुन्द ओझा
देश और दुनिया में हर साल 15 जून, विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य बुजुर्ग के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित कर उन्हें जागरूक करना और इसे रोकने के प्रयास करना। इस वर्ष 2023 की थीम सर्किल बंद करना : वृद्धावस्था नीति में लिंग आधारित हिंसा, कानून और साक्ष्य आधारित प्रतिक्रियाओं को संबोधित करना रखी गई है। बुजुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्यव्हार और अन्याय पर रोकथाम के लिए यह दिवस मनाने का निर्णय किया गया था। हमारे देश में बुजुर्गों को अपने ही घर में प्रताड़ित होने के समाचार निश्चय ही दिल दहलाने वाले है। आश्चर्य की बात तो यह है इन्हें प्रताड़ित करने वाले कोई दूसरे नहीं अपने ही है। इनमें लाखों बुजुर्गों ने अदालतों में अपने ही लोगों के खिलाफ न्याय की गुहार की है। ये बुजुर्ग अपनी बची खुची जिंदगी बिना – विघ्न बाधा परिवारजनों के साथ काटना चाहते है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया में हर 6 में से 1 बुज़ुर्ग के साथ दुर्व्यवहार होता है, जो सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है। समाज के दो तिहाई से अधिक बुजुर्गों का कहना है कि वे घर में बच्चों समेत परिवार के सदस्यों के हाथों उत्पीड़न, अपमान और दुर्व्यवहार का सामना करते हैं। ‘एजवेल फाउंडेशन’ नामक एक गैर सरकारी संगठन ने 5 हजार बुर्जुगों पर किए गए सर्वेक्षण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। यह सर्वेक्षण रिपोर्ट 15 जून के विश्व बुजुर्ग उत्पीड़न जागरूकता दिवस से दो दिन पहले मंगलवार को जारी की गयी। रिपोर्ट के अनुसार जिन बुजुर्गों से बातचीत की गयी, उनमें दो तिहाई से अधिक ने कहा कि घर में परिवार के लोग, बच्चे , रिश्तेदार या अन्य उन्हें झिड़कते हैं, उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं या उनका अपमान करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर बुजुर्गों (करीब 77 प्रतिशत) का कहना है कि उन्हें अपने मानवाधिकारों की जानकारी नहीं है तथा उनसे जब बुरा बर्ताव किया जाने लगता है तो वे उसका विरोध नहीं करते हैं और ऐसे में यह एक पैटर्न (चलन) बन जाता है। सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 बुजुर्गों को दो विशेष अधिकार देता है। पहला-अगर संतान गुजर-बसर के लिए खर्च नहीं देते हैं तो बुजुर्ग कानूनन उनसे प्रतिमाह भत्ता लेने के लिए कोर्ट जा सकते हैं। दूसरा-बच्चे बुजुर्गों को घर से नहीं निकाल सकते हैं। जबकि बुजुर्गों को यह अधिकार है कि वे परेशान करने पर बालिग संतान को घर छोड़ने के लिए बाध्य कर सकते हैं। इसके लिए बुजुर्ग को एसडीएम से शिकायत करनी होगी या कोर्ट जाना होगा।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में साल 2021 में बुजुर्गों की संख्या 13.8 करोड़ पर पहुंच गयी है। इनमें 6.7 करोड़ पुरुष और 7.1 करोड़ महिलाएं शामिल हैं। बुजुर्गों की आबादी बढ़ने की वजह मृत्यु दर में कमी आना बताई गई है। इस अध्ययन में 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र वाले लोगों को बुजुर्ग माना गया है। सांख्यिकी अध्ययन में कहा गया है कि 2011 में भारत में बुजुर्गों की आबादी 10.38 करोड़ थी, जिसमें 5.28 करोड़ पुरुष और 5.11 करोड़ महिलाएं शामिल थीं। वही साल 2031 में बुजुर्गों की संख्या 19.38 करोड़ पर पहुंचने का अनुमान है। बुजुर्गों की बढ़ती आबादी के मधे नज़र यह देखना भी जरुरी है की बुजुर्ग आज किस स्थिति में अपना जीवन यापन कर रहे है। बुजुर्ग देश और समाज के लिए एक समस्या है या गौरव है। बुजुर्गों की बढ़ती संख्या देखकर ख़ुशी होती है की व्यक्ति की औसत आयु में वृद्धि हो रही है मगर बुजुर्गों की उपेक्षा को देखकर दुःख भी होता है। हर एक को याद रखना चाहिए की बुढ़ापा एक दिन सब को आएगा। जिस दिन यह सच्चाई हम स्वीकार कर लेंगे उस दिन समाज बुजुर्गों की इज्जत और सम्मान
करना सीख लेंगा। विश्व में बुजुर्गों की संख्या लगभग 60 करोड़ है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रत्येक पांच में से एक बुजुर्ग अकेले या अपनी पत्नी के साथ जीवन व्यतीत कर रहा है। यानी वह परिवार नामक संस्था से अलग रहने को विवश है। ऐसे बुजुर्गों में महिलाओं की संख्या ज्यादा है। अशिक्षित बुजुर्गों की हालत और भी ज्यादा दयनीय है। अधिकतर बुजुर्ग डिप्रेशन, आर्थराइटिस, डायबिटीज एवं आंख संबंधी बीमारियों से ग्रस्त हैं और महीने में औसतन 15 दिन बीमार रहते हैं। सबसे ज्यादा परेशानी उन वरिष्ठ नागरिकों को होती है, जिनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। हेल्पेज इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट बताती है कि देश के लगभग 10 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों में से पांच करोड़ से भी ज्यादा बुजुर्ग आए दिन भूखे पेट सोते हैं। देश की कुल आबादी का आठ फीसदी हिस्सा अपने जीवन की अंतिम वेला में सिर्फ भूख नहीं, बल्कि कई तरह की समस्याओं का शिकार है।

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