नई दिल्ली। केन्द्र की पीए नरेन्द्र मोदी सरकार राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए प्रयासरत है। वहीं राज्यसभा में विपक्ष ने सरकार को करारा झटका दे डाला। सोमवार को राज्यसभा में कई मंत्रियों के गैर हाजिर होने के कारण राज्यसभा में विपक्ष संशोधित प्रस्ताव पारित कराने में सफल हो गया। इस प्रस्ताव पर विपक्ष ने नियम तीन को विधेयक से हटवाने के बाद अपनी राजमंदी दी। इसके साथ ही विधेयक स्वीकृति को मंजूरी दे दी। अब यह विधेयक वापस लोकसभा में भेजा जाएगा।
बता दें 123वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए ओबीसी के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाना है। विपक्ष की ओर से लाए गए इन संशोधनों में धार्मिक आधार पर आरक्षण की बात कही गई। जहां विपक्ष अपनी संख्याबल के आधार पर इस संशोधन को पारित कराने में कामयाब हो गया। इस मामले में सरकार ने कहा था कि ऐसा कोई भी संशोधन आयोग को कानूनी तौर पर कमजोर कर देगा और यह अदालत में टिक नहीं पाएगा। ऐसे में अब साफ है कि सरकार को अब नए सिरे से तैयारी करते हुए लोकसभा में बिल लाना होगा। वहीं आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की पुरानी मांग अटक ही जाएगी।
-समर्थन में पड़े 124 वोट, एक भी खिलाफ नहीं
यह विधेयक लोकसभा में पहले ही स्वीकृत हो चुका है। जबकि प्रवर समिति की रिपोर्ट सोमवार को राज्यसभा में पेश हुई। इस विधेयक को पास कराने के लिए सदन में उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत की जरुरत थी। लेकिन अनेक मंत्रियों की गैर हाजिरी मुसीबत बनकर उभरी। जिस समय मतदान हुआ उस समय कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह और बीके हरिप्रसाद ने तीसरे अनुच्छेद में संशोधन की मांग उठाई। जिसमें पहला संशोधन आयोग में सदस्यों की संख्या के विषय में था। विपक्ष तीन के बजाय 5 सदस्यों की संख्या पर जोर देर रहा था। जबकि दूसरे में राज्यों के हितों को सुरक्षित रखने का था। बाद में 10 मिनट के लिए कार्यवाही स्थगित हो गई। कार्यवाही शुरू हुई तो नियम 3 को हटाकर विधेयक पर वोटिंग कराई गई। जिसके समर्थन में 124 वोट पड़े। इसके खिलाफ एक भी वोट नहीं पड़ा।
-शुरू हो गई जुबानी जंग
इधर राज्यसभा में विपक्ष के सफल होने के साथ ही जुबानी जंग देखने को मिली तो क्रिम लेयर को लेकर पक्ष विपक्ष में नोंकझोंक हुई। विपक्ष ने सरकार पर दोष मढ़ते हुए कहा कि सरकार पिछड़ा वर्ग आयोग को कमजोर करना चाहती है। जबकि संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि विपक्ष की मंशा है कि इस बिल को अदालत में चुनौती दी जा सके। जदयू के शरद यादव बोले मौजूदा स्वरुप में यह बिल असरकारक साबित नहीं होगा। वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह बिल अदालत में नहीं ठहर पाएगा।