राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (एनएमसी) विधेयक, 2019 को लेकर प्राय: पूछे जाने वाले प्रश्न
1. धारा 32 : सामुयिक स्वास्थ्य प्रदाता के रूप में मध्यम स्तर पर कार्य करने के लिए सीमित लाईसेंस :
विश्व स्वास्थ्य संगठन के 1:1000 की तुलना में भारत में डॉक्टर और आबादी का अनुपात 1:1456 है। इसके अतिरिक्त शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले डॉक्टरों की उपलब्धता में भी काफी अंतर है। शहरी-ग्रामीण डॉक्टर संघनता अनुपात 3.8:1 है। इसके परिणाम स्वरूप हमारी अधिकतर ग्रामीण और गरीब आबादी गुणवत्ता सम्पन्न स्वास्थ्य देखभाल सेवा से वंचित है और झोलाछाप डॉक्टरों के चंगुल में है। यह महत्वपूर्ण है कि एलोपेथी औषधि क्षेत्र में काम करने वाले 57.3 प्रतिशत के पास चिकित्सा (मेडिकल) योग्यता नहीं है।
भारत सरकार द्वारा इस वर्ष के बजट में घोषित महत्वकांक्षी आयुष्मान भारत कार्यक्रम के अंतर्गत व्यापक, प्राथमिक और रोकथाम सेवा के लिए अगले 3 से 5 वर्षों के अंदर 1,50,000 मध्यम स्तर के स्वास्थ्य प्रदाताओं की आवश्यकता होगा। डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने में सात से आठ वर्ष लगेंगे, इसलिए अंतरिम अवधि में हमारे पास स्वास्थ्य और आरोग्य केन्द्रों के नेतृत्व के लिए योग्य मध्यम स्तर के विशेष रूप से प्रशिक्षित कैडर पर निर्भर होने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।
इस तरह के सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मियों की अनुमति देने वाली स्वास्थ्य प्रणाली के अनेक उदाहरण हैं- थाईलैंड, ब्रिटेन, चीन और यहां तक कि न्यूयार्क में भी सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मियों/नर्सों को स्वास्थ्य सेवायें देने के लिए अनुमति दी गई है। हमारे पास डॉक्टरों/विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के कारण स्वस्थ देखभाल की जिम्मेदारी मध्यम स्तर के प्रदाताओं को देने से अधिक कार्यभार वाले विशेषज्ञ डॉक्टरों को राहत मिलेगी। यह केवल वैसे व्यक्तियों को प्राथमिक और रोकथाम स्वास्थ्य में सेवा प्रदान करने वालों को सीमित लाईसेंस में सहायक है जो डॉक्टरों के भारी प्रतिनिधित्व वाले नियमन व्यवस्था द्वारा निर्दिष्ट मानकों को पूरा करते हैं। छत्तीसगढ़ तथा असम में सामुदायिक स्वास्थ्यकर्मियों की सेवा ली है। एक स्वतंत्र मूल्यांकन के अनुसार (हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा किये गये) मध्यम स्तर के स्वास्थ्यकर्मियों ने अच्छे कार्य किये हैं और कर्मियों की गुणवत्ता को कठोरता से नियंत्रित करने पर कोई चिंता की बात नहीं होती।
2. धारा 15 : एनईएक्सटी परीक्षा
चिकित्सा शिक्षा विशेषज्ञता का क्षेत्र में जिसमें तकनीकी कुशलता पर अधिक फोकस होता है। राष्ट्रीय स्तर पर डॉक्टरों के लिए ज्ञान और कुशलता के समान मानकों वाली समान अंतिम स्नातक परीक्षा (नेक्सट) आयोजित की जायेगी।
समान मानकों को सुनिश्चित करने के लिए एक सहायक प्रावधान किया गया है। एनईएक्सटी के संचालन के लिए उचित समय पर नियम बनाये जायेंगे, जिसमें स्नातक स्तर पर आवश्यक थ्योरिटिकल तथा क्लिनिकल कुशलता को ध्यान में रखा जायेगा। राष्ट्रीय मेडिकल आयोग के गठन में केन्द्र तथा राज्यों के संस्थानों/काउंसिलों और स्वास्थ्य विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले 75 प्रतिशत डॉक्टर हैं। इस तरह राष्ट्रीय मेडिकल आयोग के गठन से थ्योरिटिकल के साथ-साथ क्लिनिकल कुशलता का पालन सुनिश्चित होगा। एनईएक्सटी लागू होने से पहले तीन वर्ष का समय है जिसमें परीक्षा ढांचे पर व्यापक विचार करने की गुंजाईश है।
3. क्लॉज 10 (1) (i) : फीस नियंत्रण
आईएमसी अधिनियम 1956 में फीस के नियमन के लिए कोई प्रावधान नहीं है। परिणामस्वरूप कुछ राज्य कॉलेज प्रबंधन के साथ समझौता ज्ञापन करने निजी मेडिकल कॉलेजों में कुछ सीटों की फीस का नियमन करते हैं। इसके अतिरिक्त अंतरिम व्यवस्था के रूप में उच्चतम न्यायालय ने निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस निर्धारित करने के लिए सेवानिवृत हाईकोर्ट जजों की अध्यक्षता वाली समितियों का गठन किया है। मानित(डीम्ड्) विश्वविद्यालय दावा करते हैं कि वे इन समितियों के दायरे में नहीं आते। देश में एमबीबीएस की लगभग 50 प्रतिशत सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हैं, जिनमें बहुत कम फीस देनी पड़ती है। सिर्फ 50 प्रतिशत सीटों को राष्ट्रीय मेडिकल आयोग नियंत्रित करेगा। इसका अर्थ यह है कि देश में कुल सीटों की 75 प्रतिशत सीट उचित फीस पर उपलब्ध होगी। संघवाद की भावना के अनुसार राज्य सरकारें निजी मेडिकल कॉलेजों के साथ समझौते के आधार पर निजी मेडिकल कॉलेजों में शेष सीटों की सीट निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हैं।
सरकार जहां चिकित्सा क्षेत्र में निजी निवेश और निजी मेडिकल कॉलेज चाहती है वहीं दूसरी ओर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीटें बढ़ाने की जिम्मेदारी से सरकार पीछे नहीं हटती। हमने पिछले पांच वर्षों में सरकारी सीटें बनाने में 10 हजार करोड़ रूपये का निवेश किया है और चिकित्सा क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए 30 हजार करोड़ रूपये से अधिक लागत से 21 नये एम्स स्थापित कर रहे हैं।
हमारे सुधारों ने चिकित्सा शिक्षा में काले धन की भूमिका समाप्त कर दी है और राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक शुरू किये गये सुधारों को वैधानिक शक्ति प्रदान करेगा।
यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि प्रस्तावित व्यवस्था में मेधा और योग्यता की अनदेखी की जायेगी। यह सच नहीं है। पहले 12वीं कक्षा में 50 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिला पा जाते थे। निजी मेडिकल कॉलेज विद्यार्थियों से बात करके गैर-पारदर्शी तरीके से अपनी प्रवेश परीक्षा लेते थे। परिणाम स्वरूप बहुत अयोग्य विद्यार्थियों को प्रवेश मिला। अब नीट परीक्षा पास करने वाले विद्यार्थियों को ही दाखिला मिलेगा।