जालंधर। पांच सौ और एक हजार रुपए की नोटबंदी से जहां जनता पैसे निकालने के लिए घंटों लाइनों में लगी हुई। वहीं व्यापार भी असर दिखाई देने लगा है। वहीं पंजाब व दूसरे राज्यों से यह सुखद समाचार भी है कि नोटबंदी से नशा कारोबार भी काफी कम हो गया है। एक तरह से नोटबंदी से नशे पर भी पाबंदी लग गई है। नशा बेचने वालों ने पुराने नोट लेने बंद कर दिए हैं और नए नोट अधिक न होने से नशा नहीं खरीद पाने के कारण नशेड़ी हारकर नशा मुक्ति केन्द्रों में भर्ती हो रहे हैं। नशा नहीं मिलने के चलते बिगड़ती तबीयत का हवाला देते हुए परिजन भी उन्हें समझाइश करके इसे छोडऩे का दबाव बनाकर इसकी लत छुड़ा रहे हैं। पंजाब के एक ऐसे ही केन्द्र में भर्ती बलविन्दर सिंह (बदला हुआ नाम) ने बताया कि नशे के चलते घर में जमा पूंजी खर्च हो चुकी है और बैंकों से पैसे मिल नहीं रहे हैं। अब तो पुराने नोट भी खर्च हो चुके हैं। नशा बेचने वालों ने पुराने नोट लेने बंद कर दिए हैं। घर का गुजारा भी चलाना है। सरकार के फ रमान ने पूरी जेब खाली कर करवा दी है। उधार में नशा मिल नहीं रहा है। नशा मिलने के तकरीबन सभी रास्ते बंद हो गए हैं। इसके बाद उन्होंने नशा छोडऩे का मन बना लिया है। अस्पताल में दाखिल होकर इलाज करवाने के पैसे भी नहीं हैं। केंद्र के प्रभारी डॉ. निर्दोष गोयल का कहना है कि सोमवार को नए व पुराने 100 के करीब मरीजों की ओपीडी हुई है। पांच नए मरीजों को दाखिल किया गया है। कुछ मरीज जेब में पैसे न होने की वजह से नशा छोडने की दवा पर्चा लिखवा कर ले गए हैं और दो-तीन दिन बाद आकर दाखिल होने की बात कह गए हैं। नशे का इलाज करा रहे एक युवक के पिता सुरिंदर सिंह ने कहा कि मोदी ने तो कमाल कर दिया। उनका बेटा रोज करीब एक हजार रुपये का नशा करता था। कई बार हमने समझाया पर कुछ असर नहीं हुआ। अब पुराने नोटों से नशा नहीं मिल रहा है। नए नोट हैं नहीं जिनसे नशा खरीद सके। अब हारकर बेटा नशा छोडऩे के लिए तैयार हुआ है। इलाज के लिए जिद कर रहा था। उसका इलाज शुरू करवाया गया है।

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