आदिवासी विकास परिषद के राष्ट्रीय सम्मेलन में कांग्रेस-भाजपा नेताओं की मौजूदगी में बांटी गई विवादित पुस्तक अधूरी आजादी
जयपुर। आदिवासी विकास परिषद के राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन बुधवार को भाजपा व कांग्रेस के नेताओं की मौजूदगी में बांटी गई एक किताब अधूरी आजादी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु, ब्राह्मण व कांग्रेस के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियां लिखी हुई है। इस किताब में ब्राह्मणों को बाहरी बताते हुए यूरेशिया से आए आक्रांता बताया तो महात्मा गांधी के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए रुढीवादी, नस्लवादी बताया। पंडित जवाहर लाल नेहरु को ब्राह्मणवाद और परिवादवाद को बढ़ाने वाला बताया।
बुधवार को सम्मेलन में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बुलाया था, लेकिन वे नहीं गए। सम्मेलन में मुख्य अतिथि के तौर पर मुख्यमंत्री के बड़े बड़े पोस्टर लगे हुए थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरु आदि के बारे में आपत्तिजनक बातों वाली उक्त किताब रिटायर्ड आईआरएस रूपचंद वर्मा द्वारा लिखी गई है। इस सम्मेलन का उद्घाटन राज्य के स्वास्थ्य मंत्री परसादीलाल मीणा ने किया था। पहले दिन मंगलवार को केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते मुख्य अतिथि थे। कुलस्ते ने सरकारी कंपनियों के निजीकरण को देखते हुए प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू करने की वकालत करते हुए आंदोलन छेडऩे की बात कही थी। दो दिवसीय सम्मेलन में कांग्रेस व भाजपा समेत अन्य दलों के सांसद, पूर्व सांसद, विधायक, पूर्व विधायक समेत अन्य जनप्रतिनिधि, परिषद कार्यकर्ता व पदाधिकारी मौजूद रहे।
– महात्मा गांधी पर आपत्तिजनक टिप्पणी
किताब के पेज नंबर 8, 9 में महात्मा गांधी को लेकर आपत्तिजनक बातें लिखी हुई हैं। गांधी के बारे में लिखा है कि अंग्रेज गांधी को काइयां और दोहरी बात कहने वाला राजनीतिज्ञ मानते थे। बाबा साहेब अंबेडकर ने भी गांधी को दोहरे चरित्र का व्यक्ति बताया है। किताब में महात्मा गांधी के चरित्र पर गंभीर सवाल उठाते हुए पेज नंबर 9 पर लिखा है कि लंगोटी पहनकर फकीरी के दावेदार गांधी को उद्योगपति बिरला के दिल्ली स्थित आलीशान बंगले में निवास करने और ब्रह्मचर्य का प्रयोग करने के लिए अपनी जवान पोती के साथ सोने में कोई परहेज नहीं था। अरुंधति रॉय ने गांधी और अंबेडकर में गांधी के महात्मा के चोले को उतारकर उन्हें तथ्यों के आधार पर नस्लभेदी और रुढिवादी इंसान बताया है। गांधी मनुस्मृति की सीढीनुमा जाति व्यवस्था को बनाए रखना चाहते थे।
– ब्राह्मणों ने बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम किया।
किताब के पेज 13 पर लिखा है कि मुट्ठीभर ब्राह्मणों ने अपने वर्चस्व के लिए रणनीतियां और चालें बदलते रहे हैं। बौद्धकाल से लेकर आज तक यह सिलसिला चालू है। बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव से घबराकर ब्राह्मणों ने अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम किया। धर्म ग्रंथों को जलाया। किताब के पेज 15 पर ब्राह्मण समाज के बारे में लिखा हुआ है कि ब्राह्मण ऐसे आक्रांता आर्य लोगों का समूह है जो करीब पांच हजार साल पहले यूरेशिया से भारत में घुसे थे। पेज 11 पर जयपाल सिंह के संविधान सभा में बोले गए बयान का हवाला देते हुए लिखा है कि सिंधु घाटी सभ्यता और वहां के लोगों को नवागंतुक आर्यों ने नष्ट किया और मूल निवासियों को जंगलों में खदेड़ दिया।
– नेहरु ने परिवार और ब्राह्मणवाद को हवा दी
किताब में पंडित नेहरु के बारे में लिखा है कि आजाद भारत की बागडोर संभालते ही पंडित नेहरु ने ब्राह्मणवाद और परिवारवाद को बढ़ाया। 1952 के आम चुनाव में 3.5 प्रतिशत ब्राह्मणों को 60 प्रतिशत टिकट देकर 47 प्रतिशत को जिताया। नेहरू चार दशकों तक देश की सत्ता पर काबिज रहे। इस दौरान ब्राह्मणों ने देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, संपत्ति पर वर्चस्व कायम किया। किताब में पेज 6 पर लिखा है कि ब्राह्मणवादी इतिहासकारों ने यह भ्रम फैलाया कि आजादी गांधी और ब्राह्मणवादी कांग्रेस के प्रयासों से मिली थी। जबकि आजादी विश्व युद्ध से बर्बाद ब्रिटिश साम्राज्य की कमजोर आर्थिक स्थिति, सुभाष बोस की आजाद हिंद फौज, नौ सेना विद्रोह जैसे कारणों से मिली थी। किताब में लिखा है कि गांधी, नेहरु ने भीमराव अंबेडकर और जयपाल सिंह को धोखा दिया। नेहरू ने केबिनेट में किसी आदिवासी को मंत्री नहीं बनाया।