नयी दिल्ली। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरने वाली चीन प्रायोजित ‘वन बेल्ट, वन रोड’ :ओबोर: परियोजना पर सवाल उठाते हुए सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञों ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि इससे पाकिस्तान अनजाने में ही कर्ज के जाल में फंस सकता है क्योंकि चीन कोई काम धर्मार्थ नहीं करता है। विशेषज्ञों ने एक रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान को इस बारे में भी सचेत रहने की जरूरत है क्योंकि चीनी लोग कोई भी काम धर्मार्थ नहीं करते और इस ऋण की ब्याज दर काफी उच्च हो सकती है। पाकिस्तान को इस निवेश के एवज में कई तरह का भार करदाताओं पर डालना पड़ सकता है। स्वीडन, कजाख्स्तान, लातविया में भारत के राजदूत रहे और इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस (आईडीएसए) से जुड़े एक सुरक्षा विशेषज्ञ अशोक साझनहार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन ने वन बेल्ट, वन रोड परियोजना से जिन 68 देशों को जोड़ने की पहल की है, उनमें से 42 देश ऐसे हैं जिनकी रेटिंग निवेश के संदर्भ में निम्नतर है और रेटिंग एजेंसी मूडीज ने इनमें से कुछ देशों की रेटिंग तक नहीं की है । उन्होंने कहा कि इस परियोजना को आगे बढ़ाकर चीन कनेक्टिविटी को मजबूत तो कर ही रहा है, साथ ही अल्पकाल में अपनी आर्थिक वृद्धि को आधार प्रदान करना चाहता है, साथ ही आगे चलकर इन देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर भी उसकी नजर है। चीन इस परियोजना के माध्यम से भविष्य के लिये अपने कारोबार एवं रोजगार के अवसर को मजबूती प्रदान करना चाहता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीलंका के हबनटोटा बंदरगार से जुड़ी परियोजना, मालदीव के साथ कुछ ही समय पहले हुई मुक्त व्यापार सहमति, म्यामां और नेपाल के साथ आर्थिक रिश्ते तथा कई अफ्रीकी देशों के साथ चीन के ऐसे आर्थिक संबंध इसके कुछ महत्वपूर्ण उदाहण है। आईडीएसए से जुड़े एक अन्य विशेषज्ञ जैनब अख्तर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सीपीईसी को लेकर स्थानीय लोगों में असंतोष भी है क्योंकि पाकिस्तान सरकार द्वारा इस परियोजना को लेकर कोई स्पष्ट खाका और नीति पेश नहीं की गई है। विभिन्न आकलनों और पूर्वानुमानों से स्पष्ट हो रहा है कि इस परियोजना के लिए करीब 50 अरब डालर के अनुमानित निवेश की बात कहे जाने के बावजूद इस क्षेत्र को इसकी तुलना में काफी कम लाभ होगा । रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी बातें भी सामने आ रही हैं कि इस परियोजना के संबंध में निवेश का बड़ा हिस्सा पंजाब प्रांत से लगे क्षेत्रों में किये जाने की योजना है। विशेषज्ञ के अनुसार, अनेक अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के पास इतने बड़े आधारभूत संरचना विकास की जरूरतों को समाहित करने की क्षमता ही नहीं है और वह अनजाने में बड़े कर्ज के जाल में फंस सकता है ।