Public hearing, chief minister residence Rajasthan, CM Vasundhara Raje
Public hearing, chief minister residence Rajasthan, CM Vasundhara Raje
 – राजेन्द्र राज
 जयपुर। मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने अपने कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे कर लिए हैं। पांच वर्ष के शासन का आधे से ज्यादा समय बीत चुका है। यानी ढलान शुरू हो गया है। राजे भारी बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई थी। जनता ने राजे से खूब उम्मीदें बांधी। गांवों ने कायाकल्प की। युवाओ ने रोजगार की। जनमानस ने भ्रष्टाचार से निजात की। इन सालों में सरकार के समक्ष कई चुनौतियां आईं। सरकार कई योजनाएं लाईं। उसके विकास के दावे हैं और विपक्ष के अपने आरोप हैं। इन दोनों rajendra-raj-20161219_211114के बीच जनता है। वह देख और समझ रही है। और भविष्य के प्रति अपना मन भी बना रहीं है। उसके मन का खुलासा तो दो साल बाद होगा। इस दरम्यान सरकार के कामकाज का आंकलन तो किया ही जाना चाहिए। मुख्यमंत्री की हैसियत से राजे का यह दूसरा कार्यकाल है। स्वाभाविक है कि उन्होंने पिछले कार्यकाल के खट्टे मीठे अनुभव से अपनी दूसरी पारी की शुरूआत की। इस बार वे अधिक परिपक्व राजनेता के तौर पर नजर आईं। संगठन पर वे हावी रही। सत्ता के सामने संगठन पंगु ही नजर आया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति ने यह साबित किया। हांलाकि पार्टी कार्यालय पर मंत्रियों से कार्यकर्ताओं की सुनवाईं की व्यवस्था उन्होंने की। लेकिन, इसमें कार्यकर्ताओं की समस्याओं को लेकर उपस्थिति नगण्य रही। यह चर्चा का विषय बना। इससे सरकार की एक अच्छी छवि पेश करने की कोशिश साकार नहीं हो पाईं।
-स्वास्थ्य सेवाओं में राहत
हर पार्टी का चुनावी वादा होता है, बिजली, पानी, सड़क, चिकित्सा, शिक्षा, सुशासन, कानून व्यवस्था आदि की बेहतर व्यवस्था करना। इनमें से शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में भाजपा सरकार के प्रयास काफी सार्थक सिद्ध हुए हैं। चिकित्सा में भाभाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के माध्यम से गरीबों को निशुल्क इलाज मिल रहा है। योजना के तहत 30 हजार से तीन लाख रुपए तक की कैशलेस उपचार की सुविधा है। पहले साल करीब 6 लाख मरीजों को सरकारी और निजी अस्पतालों में इलाज मिला। सरकार का दावा है कि योजना से राज्य की 68 फीसदी जनता को लाभान्वित किया जा रहा है। सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर ध्यान दिया। वहीं उसे सबसे बड़ी सफलता ऑगर्न  ट्रांसप्लांट  के क्षेत्र में मिली। यह उपलब्धि प्रदेश के निजी अस्पतालों ने ही हासिल की। सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं के अभाव में नए प्रयोग नहीं हो सके। किडनी को छोड़कर सभी बड़े कैडेवर ट्रांसप्लांट निजी क्षेत्र में हुए। घोषणा के बावजूद राज्य के सबसे बड़े एसएमएस अस्पताल में लीवर  ट्रांसप्लांट नहीं हो पाया। ऐसे ही प्रदेश में आठ मेडिकल कॉलेज खोले जाने थे, वे भी अब तक नहीं खुले है।
– 24 घंटे निर्बाध बिजली का सपना अधूरा
बिजली के मामले में सरकार का निजीकरण पर जोर रहा हैं। फिर चाहे वो बिजली आपूर्ति का सिस्टम हो या उत्पादन निगम। हांलाकि इस दौरान बिजली के घाटे व आपूर्ति में जरूर सुधार हुआ हैं। लेकिन, 24 घंटे निर्बाध बिजली मिलना आज भी जनता के लिए सपना बनी हुई है। वहीं छीजत का आंकड़ा कम नहीं हो सका है। प्रदेश में छीजत का औसत आंकड़ा अभी 28 प्रतिशत है। कुछ इलाकों में यह 50 फीसदी तक है। सरकार की कोशिश हैं कि वर्ष 2018 तक इसे 15 प्रतिशत तक लाया जाए। किसानों को खेती के लिए अधिकतम 7 घंटे का ब्लाक  ही दिया है। इसमें भी व्यवधान बना रहता है। सरकार ने इस मामले में नीति जारी करने की घोषणा की थी, जो अधूरी है। तीन लाख किसान अब भी कनेक्शन की कतार में है। केन्द्र सरकार की उदय योजना के तहत 60 हजार करोड़ का बिजली कम्पनियों का कर्ज सरकार के वहन करने से काफी हद तक घाटा कम हुआ हैं। वहीं बिजली उत्पादन में 1750 मेगावाट का इजाफा होना, सुकून की बात है।
-शिक्षा में बढ़ी पारदर्शिता
राज्य 7 लाख कर्मचारियों में सबसे बड़ी संख्या शिक्षा विभाग की है। इनमें से आधे कर्मचारी इसी विभाग से है। तबादलों के लिए बदनाम स्कूल शिक्षा में पिछले दो सालों में पारदर्शिता बढ़ी है। असन्तोष बड़े पैमाने पर नजर नहीं आया। हांलाकि आदर्श विद्यालय बनाने के चलते 13 हजार स्कूल समायोजन के नाम पर बंद कर दिए गए है। इससे कुछ इलाकों में छात्रों को परेशानी हुई। सरकार ने स्कूल शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव कर एक और बड़ा काम किया हैं। अब बच्चों को प्रदेश के महान योद्धा महाराणा प्रताप की महानता से अवगत कराया जाएगा। वहीं, वर्ष 1975 से 1977 तक लोकतंत्र खत्म कर लागू किए गए आपातकाल के बारे में भी पढ़ाया जाएगा। देश में यह दूसरा स्वातंत्र्य आंदोलन है। इससे युवा पीढ़ी अनजान है।
-खान घूसकांड व आनन्दपाल से किरकिरी
प्रदेश की 70 फीसदी आबादी गांवों से जुड़ी है। राज्य में 9894 ग्राम पंचायतों में से 2925 के भवनों में बिजली कनेक्शन नहीं हैं। इससे सरकार के डिजिटलाइजेशन की असलियत का पता चलता है। शहरी क्षेत्रों  को छोड़ दे तो गांवों में ई-गवर्नेंस की हालत खराब हैं। खाद्य विभाग के लिए राशन कार्ड को लागू करना, बड़ी चुनौती रही है। प्रदेश में करीब दो करोड़ कम्प्यूटराइज्ड राशन कार्ड बनाए गए है। राशन की दुकानों पर कालाबाजारी रोकने के लिए पोस मशीन और 12 लाख 88 हजार दोहरे राशन कार्डों को निरस्त करने को लेकर सरकार वाहवाही ले रही है। लेकिन, खामियों के चलते विभाग विपक्ष के निशाने पर है। सरकार की प्रमुख चुनौती खाद्य सुरक्षा योजना के 4 करोड़ 43 लाख लोगों को लाभ दिलाना और खाद्य वस्तुओं में बड़े पैमाने वर होने वाली मिलावट पर नियंत्रण पाना है। कानून व्यवस्था के मामले में सरकार पर गैंगस्टर आनंदपाल को छोड़ कर स्थिति सामान्य ही रही। भ्रष्ट अधिकारियों की पकड़ के मामले मे विभाग चर्चित रहा। इसमें सबसे बड़े घूसकांड के नाम से खान, जलदाय और एनएचएम शामिल रहा। हांलाकि बीते छह माह के दौरान ऐसी कार्रवाइयों में एकाएक धीमापन आया है। मोटे तौर पर देखा जाए तो विपक्ष के धारदार नहीं होने से राजे को सरकार चलने में खासी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा है। भाजपा में भी बड़ा असन्तोष नजर नहीं आता। जनता कितनी सन्तुष्ट है, यह तो दो साल बाद होने वाले चुनाव से ही ज्ञात होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक है।)

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