• न्यायपालिका के खिलाफ टिप्पणी करने के मामले में परिवाद खारिज,क्ष्ोत्राधिकार एवं अविधिक होने के आधार पर हुआ खारिज
    जयपुर। एनडीटीवी के एंकर रविशकुमार और सीएनएन न्यूज-18 टीवी के एंकर सांकेत उपाध्याय की ओर से न्यायपालिका का मखौल उडा कर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में 3 जून को पेश किये गये परिवाद को जयपुर महानगर मजिस्ट्रेट क्रम-17 योगेश चन्द्र यादव ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने आदेश में कहा कि परिवाद पेश करने से पहले परिवादी ने सीआरपीसी के प्रावधानों का पालन नहीं किया। धारा 154 के तहत थानाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक-पुलिस उपायुक्त के समक्ष मुकदमा दर्ज कराने का प्रयास नहीं किया गया है। इसके अलावा कोर्ट ने मामले में क्षेत्राधिकार भी नहीं माना है। वकील सीसी रत्नू ने परिवाद पेश कर बताया कि हाईकोर्ट न्यायाधीश महेश चंद्र शर्मा ने अपने अंतिम कार्यदिवस पर गायों के संरक्षण को लेकर आदेश पारित किया था। सेवानिवृत्त होने के बाद शाम को न्यायाधीश ने पत्रकारो से बातचीत करते हुए उन्होंने आध्यात्मिक तौर पर मोर के प्रजजन की बात कही थी। एेंकर रविश कुमार ने सुझाव दिया कि जब कोई जज बने तो उसे ट्रेनिंग में चिडियाघर ले जाना चाहिए और बताना चाहिए कि कौनसा पशु कैसे प्रजनन करता है और कौन का पक्षी आजीवन ब्रहमचारी है व योग करता है। वहीं एक चैनल पर सांकेत उपाध्याय ने न्यायाधीश पर टिप्पणी की। पिकॉज जज और काऊ जज के फ्लेश भी चलाये। जबकि वे आध्यात्म निजी भाव थ्ो, कोई भी व्यक्ति इसे मानने या न मानने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन किसी को भी आध्यात्म का मखौल उडाने का अधिकार नहीं है। उच्चतम न्यायालय एवं अन्य हाईकोर्ट में समय-समय पर धार्मिक ग्रंथों के श्लोक आदि का न्यायिक निर्णयों में समावेश होता है। दोनों ने जन मानस में न्यायपालिका की छवि बिगाडने का काम किया है।

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