jaipur. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो जयपुर की टीम ने हाल ही नगर निगम जयपुर ग्रेटर के वित्त सलाहकार अचलेश्वर मीणा समेत दो दलालों को लाखों रुपयों की ठेकेदारों से वसूली और वसूली गई राशि के बंटवारे के दौरान रंगे हाथ धरा है। दोनों दलाल भी नगर निगम में ही काफी पुराने ठेकेदार हैं और इनके पास ही जनता से जुड़े ठेका कार्यों की दलाली का काम भी था। चार महीने से एसीबी इनके पीछे लगी हुई थी। एक दलाल के घर पर 27 लाख रुपये नकद मिले हैं। जमीन खरीद फरोख्त के दस्तावेज भी पकड़े गए हैं। यह पहली बार नहीं है, जब एसीबी ने निगम के आला अफसर व उनके दलालों को पकड़ा है। कुछ महीने पहले नगर निगम ग्रेटर की महापौर सौम्या गुर्जर, उनके पति राजाराम गुर्जर का सफाई कंपनी बीबीजी का लेन-देन का वीडियो काफी चर्चा में रहा।
मेयर पति राजाराम गुर्जर व कंपनी के अधिकारी अरेस्ट हुए। इससे पहले नगर निगम जयपुर के पूर्व सीईओ लालचंद असवाल, वरिष्ठ अभियंता भी पकड़े जा चुके हैं। दो पार्षद भी कुछ दिनों पहले ही रिश्वत लेते धरे गए हैं। निगम में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी पुरानी है। बिना लिए दिए जनता के जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र तक नहीं बनते। अरबों रुपयों के ठेकों कार्यों में दलाली कैसे थमेगी। वैसे तो नगर निगम हेरिटेज और ग्रेटर सीधे तौर पर जयपुर और जयपुर की जनता से जुड़ा हुआ है। शहर की सफाई, सड़क निर्माण, कॉलोनियों, उद्यानों का रखरखाव आदि जनता से जुड़े कार्य नगर निगम के मार्फत होते हैं। उक्त कार्यों के लिए हर साल अरबों रुपयों का बजट पारित होता है। सरकार भी शहर के सौन्दर्यन व विकास कार्यों के लिए अलग से बजट देती है।
ये कार्य निविदा निकालकर करवाए जाते हैं। लेकिन निगम के जिम्मेदार अधिकारी ही जनता से जुड़े कार्यों के ठेकों में घालमेल करके सरकारी खजाने को तो लूट रहे हैं, वहीं ठेका कार्यों में भ्रष्टाचार के चलते जनहित के कार्य भी घटिया हो रहे हैं। इस वजह से ही सड़कें टिकाऊ नहीं है। बनने के कुछ महीने बाद ही खराब होने लगती है। पार्कों के हालात खराब है। सीवरेज लाइन चॉक है तो सफाई में देशव्यापी रैकिंग में काफी फिसडडी है। जबकि इन कार्यों के लिए नगर निगम हर साल अरबों रुपयों खर्च कर रहा है। आला अधिकारियों को सिर्फ दलाली से मतलब है। इन्हें ना तो जयपुर की साफ सफाई और ना ही शहर के विकास, सौन्दर्यन से मतलब है। कोई सफाई कंपनी से वसूली में लगा है तो कोई उद्यान, बिजली, सीवरेज, सड़क जैसे जनहित के ठेकों से। हालात इतने खराब है कि मेयर, मेयर पति, पार्षद तक भी रिश्वत व दलाली के दलदल में फंसे हुए हैं। इन्हें तो जन हित में भ्रष्ट अधिकारियों की खिलाफत करनी चाहिए। बेईमान ठेकेदारों को निगम से कैसे बाहर किया जाए, इस पर काम करना चाहिए, जबकि हो रहा है उलट है। जनप्रतिनिधि भी भ्रष्ट अधिकारियों, ठेकेदारों के साथ मिलकर जनता को लूटने में लगे हैं। यहीं कारण है कि जयपुर में घटिया निर्माण कार्य हो रहे हैं। सफाई में पिछड़ा हुआ है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की ताबडतोड कार्यवाहियों के बावजूद निगम के भ्रष्ट अफसरों, ठेकेदारों व कर्मचारियों में भय नहीं है। भ्रष्टाचार के इस मकडज़ाल में जनता पीस रही है तो शहर बर्बाद हो रहा है। ऐसे में जनता को चाहिए कि भ्रष्टाचार के इस गठजोड को तोडऩे के लिए वह आगे आए। जहां भी गलत कार्य दिखे, उसकी शिकायत निगम प्रशासन के साथ एसीबी को भी करें। जो रिश्वत मांगे उसकी जानकारी एसीबी को देकर बेईमान अधिकारी व कर्मचारी को जेल भिजवाए। तभी नगर निगम में भ्रष्टाचार पर लगाम लग पाएगी।