जयपुर। जलदाय विभाग में अमृत के टेंडरों में हुए 150 करोड़ के घोटाले पर ऊपर से नीचे तक सारे अधिकारी और इंजीनियर्स एक हो गए हैं और अब खुद को बचाने में जुट गए हैं। विभाग के प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र भी अब तक अमृत की 20 प्रतिशत ऊंची दरों को सही ठहराने के साथ ही बोल रहे थे कि अमृत टेंडरों में कुछ भी गड़बड़ी नहीं हुई है। अमृत के 8 टेंडरों में 20 प्रतिशत ऊंची दरें शहरों की तंग गलियों, ट्रेफिक की समस्या, रात के समय काम करने, डामर और सीमेंट की सड़कों और पथरीली जमीन के कारण आई है। लेकिन जनप्रहरी एक्सप्रेस द्वारा अमृत के 8 टेंडरों में हुए घोटाले परत दर परत खुलासा किए जाने के बाद प्रमुख शासन सचिव रजत कुमार मिश्र ने मुख्य अभियंता शहरी आई.डी.खान से टेंडरों की फेक्चुअल रिपोर्ट मांगी है। प्रमुख शासन सचिव ने अमृत के 8 टेंडरों की 20 प्रतिशत ऊंची दरों को सही ठहराने के लिए विभाग के मास्टर माइंड इंजीनियर्स की सपोर्टिंग टीम भी साथ में लगाई है।
मुख्य अभियंता शहरी आई.डी.खान और उनकी सपोर्टिंग टीम की ओर से तैयार की गई फेक्चुअल रिपोर्ट में अमृत के 8 टेंडरों की 20 प्रतिशत ऊंची दरों को सही ठहराने के लिए वो ही जीएसटी का भार, सभी काम शहरी क्षेत्र में होने के कारण शहरों की 8-10 फीट की तंग गलियों में काम कम निकलने, मशीनों की बजाए मैनपावर से ज्यादा काम होने, ज्यादा ट्रेफिक की समस्या, रात के समय काम करने, डामर और सीमेंट की सड़कें, और पथरीली जमीन होने का कारण गिनाकर अमृत की 20 प्रतिशत ऊंची दरों को सही ठहराया गया है। अमृत की 20 प्रतिशत ऊंची दरों के लिए विभाग जिन कारणों को गिना रहा है उनकी लागत टेंडर में 5 से 7 प्रतिशत है, जबकि अमृत के 8 टेंडरों में असली घोटाला डीआई पाइपों की दुगनी रेट, डीआई सिल्यूश वॉल्व की चार गुना रेट, मीटर व इंस्टालेशन की दुगनी रेट, हाउस कनेक्शन की दुगनी रेट और बीएफएम इंस्टालेशन की चार गुना रेट देकर किया गया है। जबकि इनमें से अधिकांश आइटमों की विभाग की बीएसआर रेट है, लेकिन इंजीनियर्स ने जानबूझकर नॉन बीएसआर रेट ली ताकि अमृत की 20 प्रतिशत ऊंची दरों को जस्टिफाई किया जा सके।
जनप्रहरी एक्सप्रेस के सवाल
सवाल-1
जलदाय विभाग की बीएसआर होने के बाद भी अमृत के अधिकांश टेंडरों में डीआई पाइप, वॉल्व, मीटर, हाउस कनेक्शन, बीएफएम की दरें नॉन बीएसआर लेकर दुगनी से चार गुना तक क्यों दी गई। सवाल ये है कि जब विभाग की बीएसआर बनीं हुई है तो अमृत के टेंडरों में बीएसआर होने के बाद भी मुख्य अभियंता द्वारा नॉन बीएसआर आइटमों को एप्रूव्ड क्यों किया, जबकि अन्य योजनाओं में नॉन आइटम लेने पर मुख्य अभियंता द्वारा फाइल लौटा दी जाती है।
सवाल-2
धौलपुर, सवाईमाधोपुर, हिण्डौनसिटी, गंगापुरसिटी, भरतपुर, कोटा, चित्तौड़गढ़ और जयुपर शहर में अमृत की 20 प्रतिशत ऊंची दरों को सही ठहराने के लिए जलदाय विभाग जीएसटी का भार, सभी काम शहरी क्षेत्र में होने के कारण शहरों की 8-10 फीट की तंग गलियों में काम कम निकलने, मशीनों की बजाए मैनपावर से ज्यादा काम होने, ज्यादा ट्रेफिक की समस्या, रात के समय काम करने, डामर और सीमेंट की सड़कें, और पथरीली जमीन होने का कारण गिना रहा है, तो फिर इन्हीं शहरों में अमृत के टेंडरों के साथ-साथ इसी नेचर के अन्य कार्य 19 से 21 प्रतिशत तक बिलो (कम) रेट पर कैसे किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए जयपुर के चारदीवारी क्षेत्र के उन्हीं डिविजनों में वर्तमान में अमृत के समान नेचर के 5 काम 19 प्रतिशत तक बिलो (कम) रेट पर चल रहे हैं। इसी तरह कोटा शहर में भी उसी डिविजन में अमृत का कार्य 20 प्रतिशत ऊंची दरों पर चल रहा है और उसी डिविजन के उसी क्षेत्र की गलियों में 21 प्रतिशत बिलो (कम) रेट पर साथ-साथ काम चल रहा है। अब इसे अमृत का घोटाला कहें या फिर ठेकेदारों पर अमृत वर्षा कहेंगे।
सवाल-3
राजधानी जयपुर में ही अमृत का कार्य 4-5 डिविजनों में चल रहा है। अमृत की ऊंची दरों का रेट जस्टिफिकेशन तैयार किया, तो उन पर सभी संबंधित अधिशाषी अभियंताओं को हस्ताक्षर क्यों नहीं है। हकीकत ये है कि जब अधिशाषी अभियंताओं ने ज्यादा रेट देखकर जस्टिफिकेशन पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया तो मुख्य अभियंता शहरी द्वारा अधीक्षण अभियंताओं से दबाव बनाकर हस्ताक्षर करवाए गए थे।
सवाल-4
स्टेण्डिंग नेगोसिएशन कमेटी और फायनेंस कमेटी ने काफी मंथन के बाद अमृत टेंडरों में 20 प्रतिशत ऊंची दरों का काउंटर आॅफर दिया। जनप्रहरी एक्सप्रेस द्वारा भी यही बात कही जा रही है कि अमृत के 8 टेंडरों में मिलीभगत से पूल हुआ है। धौलपुर, सवाईमाधोपुर, हिण्डौनसिटी, गंगापुरसिटी, भरतपुर, कोटा, चित्तौड़गढ़ और जयुपर शहर में अमृत की ऊंची दरें आने का कारण ही पूलिंग था। जोधुपर के छोटे टेंडर और बीकानेर में तत्कानीन एसीई के अडियल रवैए की वजह से टेंडर पूल नहीं हुए। विभाग के अमृत से जुड़े इंजीनियर्स की मिलीभगत और टॉप लेवल के दबाव के कारण ठेका कंपनियों को अमृत के 8 टेंडरों की पूलिंग करने में आसानी रही। पूलिंग के कारण नए ठेकेदारों को टेंडरों में शामिल नहीं होने दिया और इन्हीं ठेकेदारों ने हर बार ऊंची दरे डाली, ताकि मजबूर होकर फायनेंट कमेटी को ऊंची दरों पर टेंडर प्रपूव्ड करने पड़े। लेकिन अब फायनेंस कमेटी और स्टेण्डिंग नेगोसिएशन कमेटी पर सवाल उठते हैं कि उन्होंने इन्हीं शहरों में उन्हीं गलियों में उसी नेचर के काम 10 से 21 प्रतिशत तक कम और अमृत के कार्यों की 20 प्रतिशत ऊंची दरों को जस्टिफाई कैसे ठहरा दिया, जबकि आइटम तो एक जैसे ही थे। क्या स्टेण्डिंग नेगोसिएशन कमेटी और फायनेंस कमेटी की भी इस पूरे खेल में मिलीभगत रही है ?