-जितेन्द्र शर्मा
जयपुर। प्रदेश के जलदाय विभाग में लंबे समय से कागजी रिग मशीनों का खेल चल रहा है। विभाग के इंजीनियर्स की मिलीभगत से ठेकेदार इन कागजी रिग मशीनों के दम पर ट्यूबवैल निर्माण के करोड़ों के काम भी हासिल कर रहे हैं। विभाग में फर्जी तरीके से कागजी और कबाड़ रिग मशीनों के दम टेंडर हासिल करने वाले ठेकेदारों द्वारा ट्यूबवैल निर्माण में भी बड़ा फर्जीवाड़ा किया जा रहा है, जिससे एक ओर जहां प्रदेश में घटिया ट्यूबवैलों का निर्माण हो रहा है, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार को बड़े राजस्व का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है।
दरअसल जलदाय विभाग में ट्यूबवैल निर्माण की निविदाओं में भाग लेने के लिए ठेकेदार के पास खुद की रिग मशीन का होना अनिवार्य है। खुद के नाम से रिग मशीन होने के बाद ही ठेकेदार निविदा प्रक्रिया में शामिल हो सकता है। निविदा शर्तों की पालना करने के लिए कई ठेकेदारों ने गली निकाल ली है। ठेकेदारों द्वारा दो करोड़ लागत की रिग मशीन की खरीद से बचने के लिए पुरानी और कंडम हो चुकी रिग मशीनों को कबाड़ के भाव खरीदकर उनका रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट खुद के नाम करवा लिया और वर्षों से इन कबाड़ रिग मशीनों की आरसी से करोड़ों रूपए के टेंडर हासिल किए जा रहे हैं। प्रदेश के कई ठेकेदारों के पास तो केवल रिग मशीनों के कागज ही है, जबकि हकीकत में इन रिग मशीनों का धरातल पर कोई अस्तित्व ही नहीं है। टेंडर शर्तों के अनुसार जलदाय विभाग इंजीनियर्स को टेंडर में लगाए गए रिग मशीनों के दस्तावेजों की जांच करने के साथ ही उनका फिजिकल वेरिफिकेशन करना भी अनिवार्य है, लेकिन ठेकेदारों से मिलीभगत के चलते इंजीनियर्स द्वारा रिग मशीनों का फिजिकल वेरिफिकेशन नहंी किया जाता और ठेकेदारों द्वारा फर्जी तरीके से कागजी रिग मशीनों के दम पर करोड़ों रूपए के टेंडर हासिल कर लिए जाते हैं। टेंडर हासिल करने के बाद ठेकेदारों द्वारा प्राईवेट रिग मशीनों से ट्यूबवैलों का निर्माण कराया जाता है। विभाग के इंजीनियर्स की मिलीभगत से पहले तो ऐसे ठेकेदारों द्वारा कागजी रिग मशीनों के दम पर फर्जी तरीके से टेंडर हासिल किए जाते हैं और फिर इन्हीं ठेकेदारों द्वारा ट्यूबवैल निर्माण में बड़ा फजीर्वाड़ा भी किया जाता है,,,,,,ठेकेदारों द्वारा कम गहराई के ट्यूबवैल निर्माण करने के साथ ही हल्के और बिना जारी के घटिया पाइप लगाए जाते हैं।
ट्यूबवैल निर्माण में न तो ग्रेवल रोड़ी का उपयोग किया जाता है और न ही पूरी तरह से कम्प्रेशर देकर ट्यूबवैल को खाली किया जाता है। नतीजन ये ट्यूबवैल एक-डेढ़ साल में ही फेल हो जाते हैं। विभाग में लंबे समय से कागजी रिग मशीनों के दम पर ट्यूबवैलों के टेंडर हासिल किए जा रहे हैं, इंजीनियर्स को ठेकेदारों के फर्जी दस्तावेजों और शपथ प़त्रों की पूरी जानकारी होने के बावजूद उन पर कार्रवाई करने की बजाए मिलीभगत कर फजीर्वाड़े को लगातार बढावा दिया जा रहा है। आॅल राजस्थान पीएचईडी कॉन्ट्रेक्टर यूनियन की ओर से जलदाय विभाग प्रमुख सचिव रजत कुमार मिश्र, मुख्य अभियंता शहरी आई.डी.खान और सभी अतिरिक्त मुख्य अभियंताओं को पत्र लिखकर निविदाओं में रिग मशीनों के स्वामित्व और फिजिकल वेरिफिकेशन की मांग भी की गई है, लेकिन अभी भी निविदाओं में रिग मशीनों के दस्तावेजों की जांच के साथ उनका फिजिकल वेरिफिकेशन नहीं किया जा रहा।
जयपुर में रिग मशीनों का वेरिफिकेशन क्यों नहीं?
जलदाय विभाग निविदा शर्तों के अनुसार ठेकेदार के पास खुद की रिग मशीन होना अनिवार्य है। यदि खुद की रिग मशीन नहीं है तो वह निविदा में भाग नहीं ले सकता। जयपुर सहित प्रदेशभर में ठेकेदारों द्वारा निविदाएं हासिल करने के लिए कबाड़ हो चुकी रिग मशीनें अपने नाम करवा रखी है और उन्हीं मशीनों के दम पर ठेकेदार निविदाएं हासिल कर रहे हैं। निविदा शर्तों के अनुसार जलदाय विभाग इंजीनियर्स द्वारा रिग मशीनों का फिजिकल वेरिफिकेशन करना अनिवार्य है, लेकिन जयपुर के इंजीनियर्स मशीनों का फिजिकल वेरिफिकेशन नहीं करते हैं। जिसके कारण जयपुर में कुछ ठेकेदारों का वर्चस्व है और वे दूसरे ठेकेदारों को निविदाओं में भाग नहीं लेने देते हैं। जलदाय विभाग द्वारा जब शर्तों की पालना ही नहीं कराई जाती तो फिर खुद की रिग मशीन होने की शर्त हटा देनी चाहिए, ताकि निविदाओं में ज्यादा प्रतिस्पर्दा हो सके।
स्टाम्प पर ठेकेदारों की झूठी शपथ, फिर भी कार्रवाई नहीं
ट्यबवैल निर्माण की निविदाओं में शामिल होने के लिए अधिकांश ठेकेदारों द्वारा स्टाम्प पर झूठा शपथ पत्र दिया जाता है। शपथ पत्र में ठेकेदारों द्वारा खुद की रिग मशीन बताई जाती है, जबकि अधिकांश ठेकेदारों के पास खुद की रिग मशीन नहीं है। जलदाय विभाग इंजीनियर्स द्वारा झूठा शपथ पत्र देने के बाद भी ठेकेदारों के खिलाफ शिकायतों पर भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती, जबकि विभाग के पास ठेकेदार के झूठे शपथ पत्र का प्रमाण होता है।
फिजिकल वेरिफिकेशन किया तो सभी ठेकेदार फेल
पिछले साल सीकर जिले में 200 एमएम व्यास के ट्यूबवैल निर्माण की निविदाएं आमंत्रित की गई थी। निविदा शर्तों के अनुसार तकनीकी बिड़ खोलने के बाद तत्कालीन सीकर अधीक्षण अभियंता शिवदयाल मीणा ने ठेकेदारों के दस्तावेजों की जांच करने के बाद रिग मशीनों का फिजिकल वेरिफिकेशन किया तो उनका दिमाग चकरा गया। निविदाओं में शामिल एक भी ठेकेदार के पास शर्तों के अनुसार रिग मशीन नहीं पाई गई। अधिकांश ठेकेदारों के पास रिग मशीनों की आरसी तो थी, लेकिन रिग मशीनें सालों से कबाड़ में खड़ी थी। इतना ही नहंी कई ठेकेदारों के पास आरसी तो थी, लेकिन रिग मशीनों का कोई अता-पता ही नहीं था। मजबूरन अधीक्षण अभियंता शिवदयाल मीणा को सभी 9 निविदाओं को निरस्त करना पड़ा था।