नई दिल्ली। मेरे तेलुगु भाई-बहनों ने कर भोगी त्योहार मनाया। उत्तर भारत के मित्रों खासकर पंजाब के लोगों ने लोहड़ी मनाया। आज मकर संक्रांति है। गुजरात में इस दिन आसमान पतंगों से भर जाता है जिसे उत्तरायण के रूप में जाना जाता है। असम के लोग माघ बिहू उत्सव मना रहे हैं। और तमिलनाडु में, जहां आप हैं, पोंगल मनाया जा रहा है।पोंगल कृतज्ञता का त्योहार है। इसके जरिये हम सूर्य भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं, कृषि कार्यों में मदद के लिए पशुओं को धन्यवाद देते हैं और हमारी जिंदगी के लिए जरूरी प्राकृतिक संसाधन प्रदान करने के लिए प्रकृति को धन्यवाद देते हैं।प्रकृति के प्रति सद्भाव हमारी संस्कृति, हमारी परंपराओं की ताकत है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक, हम यह देख सकते हैं कि देश भर में त्योहारी भावना कैसी है।त्योहार हमारे जीवन के उत्सव हैं। त्योहार के साथ एकजुटता की भावना आती है। वह हमें एकता के सुंदर धागे में पिरोती है। इन सब त्योहारों के लिए मैं देशभर के लोगों को शुभकामनाएं देता हूं।मकर संक्रांति खगोलीय पथ पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करता का द्योतक है। अधिकतर लोगों के लिए मकर संक्रांति का मतलब भयावह ठंड से निजात पाने और अपेक्षाकृत गर्म दिनों में प्रवेश करना होता है।आज मनाये जाने वाले कुछ त्योहार फसलों का त्योहार है। हम प्रार्थना करते हैं कि ये त्योहार हमारे किसानों, जो हमारे देश को खिलाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, के जीवन में समृद्धि और खुशियां लाएं।
मैं व्यक्तिगत तौर पर आपके समक्ष उपस्थित होना चाहता था लेकिन काम की अनिवार्यता के कारण ऐसा नहीं हो सका। मैं तुगलक के 47वें वर्षगांठ पर अपने मित्र श्री चो रामास्वामी को श्रद्धांजलि देता हूं। चो के निधन से हम सब ने एक ऐसा मित्र खो दिया है जिन्होंने अपने तरीके से अपने अमूल्य ज्ञान की पेशकश की। मैं व्यक्तिगत तौर पर उन्हें करीब चार दशक से जानता था। यह मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है।वह बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वह एकसाथ अभिनेता, निर्देशक, पत्रकार, संपादक, लेखक, नाटककार, राजनेता, राजनीतिक चिंतक, सांस्कृतिक आलोचक, जबरदस्त प्रतिभाशाली लेखक, धार्मिक एवं सामाजिक समालोचक, वकील और भी बहुत कुछ थे।उनकी इन सभी भूमिकाओं में तुगलक पत्रिका के संपादक के तौर पर उनकी भूमिका ताज के हीरे की तरह थी। अपने 47 साल की यात्रा में तुगलक पत्रिका ने राष्ट्रीय हितों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में जबरदस्त भूमिका निभाई है।तुगलक और चो की एक-दूसरे के बिना कल्पना करना मुश्किल है। करीब पांच दशक तक वह तुगलक के कर्ताधर्ता रहे। यदि कोई भारत का इतिहास लिखना चाहेगा तो वह चो रामास्वामी और उनकी राजनैतिक टिप्पणी के बिना नहीं लिख सकता।चो की प्रशंसा करना आसान है लेकिन चो को समझना उतना आसान नहीं है। उन्हें समझने के लिए उनकी साहस, दृढ़ विश्वास, उनकी राष्ट्रीयता की भावना जो संकीर्णता से परे है, क्षेत्रीय, भाषाई एवं अन्य मुद्दों पर उनके विचार को समझना होगा।
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने तुगलक को सभी विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ एक हथियार बनाया। उन्होंने साफ-सुथरी और भ्रष्टाचार मुक्त राजनीतिक प्रणाली के लिए लड़ाई की। उस संघर्ष में उन्होंने कभी भी किसी को नहीं बख्शा।वह उन लोगों के भी आलोचक रहे जिनके साथ उन्होंने दशकों काम किया, उन्होंने उन लोगों की भी आलोचना की जो दशकों तक उनके दोस्त रहे थे और वह उन लोगों के भी आलोचक रहे जो उन्हें अपना संरक्षक मानते थे। उन्होंने किसी को भी नहीं बख्शा। उन्होंने व्यक्तित्व पर नहीं बल्कि मुद्दों पर ध्यान दिया।