मुंबई। पिछले दिनों रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर उर्जित पटेल ने जिन कारणों के चलते अपना इस्तीफा दिया था। अब रिजर्व बैंक के नए गर्वनर भी उसी राह पर चल रहे हैं । वे भी अब रिजर्व बैंक एनपीए एवं बैंकों की निगहबानी को लेकर उनके नेतृत्व में भी कोई ढिलाई नहीं देने वाला। इस बात का अंदाजा आरबीआई की ताजा रिपर्ट से लगाया जा सकता है, जिसमें फंसे कर्ज के लिए पर्याप्त प्रविजनिंग और कमजोर बैंकों को प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन लिस्ट में डालने की पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल की सोच झलकती है। केंद्रीय बैंक ने अपनी रिपोर्ट में इसे लेकर सरकार के साथ हुई खींचतान के बीच पटेल के इस्तीफे का भी जिक्र किया है। आरबीआई ने कहा है कि फंसे कर्ज की ऊंची रकम और उसके नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिए के लिए अपर्याप्त प्रावधान के परिप्रेक्ष्य में पूंजी संबंधी नियामकीय जरूरतों अथवा जोखिम की स्थिति में पूंजी की पर्याप्तता के नियमों में किसी भी तरह की ढील दिया जाना बैंकों के साथ-साथ पूरी अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है। रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में यह कहा गया है।
बासेल-तीन नियमों में विभिन्न प्रकार के कर्ज के लिए जोखिम प्रावधान की सिफारिश की गई है। ये सिफारिशें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखी गई क्युम्युलेटिव डिफॉल्ट रेट (सीडीआर) और रिकवरी रेट के आधार पर की गई हैं, हालांकि, अंतरराष्ट्रीय औसत के मुकाबले भारत में सीडीआर और लॉस गिवन डिफॉल्ट्स (एलजीडी) रेट्स काफी ऊंचे हैं। ये बातें रिजर्व बैंक की ‘बैंकिंग क्षेत्र में रुझान एवं प्रगति’ नामक रिपोर्ट में कही गई हैं।
रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि इस लिहाज से बासेल के जोखिम प्रबंधन नियमों के आधार पर ही हमारे बैंकों की लोन ऐसेट्स के वास्तविक जोखिम का सही आकलन हो सकता है। इसमें कहा गया है कि संभव है कि बैंकों की प्रविजनिंग का मौजूदा स्तर फंसे कर्ज का नुकसान पाटने के लिहाज से अपर्याप्त हो। ऐसे में संभावित नुकसान को खपाने के लिए पूंजी की पर्याप्तता एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।