बाल मुकुन्द ओझा
राष्ट्रपति चुनाव ने विपक्षी एकता को चूर चूर करके रख दिया। एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू के रूप में लगाए गए आदिवासी और महिला दांव ने विपक्ष की एकता तार-तार कर दी। विपक्ष में पड़ी फूट के कारण मुर्मू बड़ी जीत की ओर बढ़ रही हैं। मुर्मू की उम्मीदवारी से जहां यूपीए में फूट पड़ गई, वहीं दूसरे विपक्षी दलों ने भी द्रोपदी मुर्मू का साथ देने की घोषणा की है। विपक्षी नेताओं के अरमान धरे रह गए। किसी को समझ में नहीं आ रहा की यह कैसे हुआ। ममता, शरद पवार, सोनिया और राहुल की चौकड़ी अपने ही बुने जाल में फंस कर रह गई। एक के बाद एक विपक्षी पार्टी एनडीए के साथ हो गई और विपक्षी के महारथी हाथ मलते रह गए। बीजू जनता दल और वाई एस आर कांग्रेस पार्टी तो पहले से ही विपक्षी खेमे से अलग थी। मायावती की बसपा, देवेगौड़ा का जनता दल, बादल की अकाली पार्टी, तेलगु देशम पार्टी, ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सहित कई छोटी पार्टियों ने विपक्ष का साथ छोड़ते देर नहीं की। रही सही कसर शिवसेना और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा जैसी कांग्रेस की अलाइंस की पार्टियों ने भी उसका साथ छोड़ने में अपनी भलाई समझी। यशवंत सिन्हा को प. बंगाल में प्रचार करने से ही मना कर दिया गया। जबकि ममता बनर्जी ने ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष की अगुवाई की थी। ममता बनर्जी ने कहा कि बीजेपी ने यदि अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा पहले कर दी होती तो उस पर सर्वसम्मति बन सकती थी। अब वो मजबूर हैं कि चाहकर भी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन नहीं कर पाएंगी। इस भांति देखते देखते विपक्षी गठबंधन का तिलिस्मी महल ताश के पतों की तरह धराशाही हो गया। इस भांति एनडीए प्रत्याशी एक बड़ी जीत की ओर अग्रसर हो गया।
मोदी सरकार के आने के बाद अक्सर विपक्षी एकता को लेकर समय समय पर सवाल खड़े होते रहे हैं। विपक्ष की ओर से कई बार कोशिश की जाती है कि विपक्ष एकजुट दिखे। हालांकि ऐसा हो नहीं पाया। लोकसभा चुनाव में भी नहीं हो पाया और इस बार राष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है। राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के सामने विपक्ष ने यशवंत सिन्हा के रूप में अपना उम्मीदवार तो उतारा है लेकिन समर्थन को लेकर कई दल पीछे हट रहे हैं। पहले उम्मीदवार चयन को लेकर विपक्ष की ओर से जो नाम सुझाए गए उनमें से बारी-बारी से सबने असमर्थता जता दी। आखिरकार यशवंत सिन्हा के नाम पर रजामंदी हुई। लेकिन जैसे- जैसे चुनाव की तारीख करीब आ रही है उनका समर्थन बढ़ने की बजाय घटता ही जा रहा है। अब हालत यह हो गयी है की विपक्षी उम्मीदवार एक बड़ी हार की ओर लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
इसी के साथ उप राष्ट्रपति चुनाव भी एनडीए के लिए महज एक औपचारिक चुनाव रह गया है। मोदी ने एक बार फिर सबको चौंकाते हुए प बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ पर अपना विश्वास व्यक्त किया है। संसद में एनडीए के बहुमत को देखते हुए उनका जीतना निश्चित है। उपराष्ट्रपति संसद के उच्च सदन राज्यसभा के सभापति के तौर पर भी काम करते हैं। अब रही बात 2024 के लोकसभा चुनाव की। इस चुनाव के लिए अभी से सभी सियासी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली हैं। चुनाव जीतने के लिए जोर शोर से तैयारियां शुरू कर दी गई है। विपक्षी नेताओं के मुकाबले मोदी लगातार शक्तिशाली होते जा रहा है। विपक्ष की एकता छिन भिन्न होने की स्थिति में है। ममता कभी नहीं चाहती है की राहुल गाँधी विपक्ष की ओर से प्रधान मंत्री का चेहरा बने। उधर भाजपा ने अभी से अगले चुनाव को जीतने की रणनीति तैयार कर उसपर अमल भी शुरू कर दिया है। 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी ने अपनी रणनीति का खाका तैयार करते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की एक टीम बनाई है। पार्टी ने ने देश भर में लगभग 74,000 बूथों की पहचान की है, जहां पार्टी को अपनी पकड़ मज़बूत कर ज़मीनी स्तर पर जगह बनानी है।